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मन्नणी जी हमेशा शूद्रों की चिंता में जागते रहते है उनकी बातचीत के अंश ;

20वी सदी के श्रेष्ठ हिन्दू महात्मा गाँधी की हत्या RSS से जुड़े कट्टर जातिवादी ब्राह्मण युवाओ द्वारा क्यों की गई?

28 जून 2014 पर 07:17 पूर्वाह्न
                             महात्मा गाँधी की  हत्या क्यों की गई?
                    31 जनवरी 2007 के गुजराती दैनिक "दिव्य भास्कर" के पहले पृष्ठ पर प्रकाशित अहेवाल के अनुसार महात्मा गाँधी के पौत्र तुषार गांधीने अपनी पुस्तक "लेट्स किल गाँधी" के विमोचन अवसर पर कहा था  कि, "देश के टुकड़े करने के बदले में पाकिस्तान को 55 करोड रूपये देने की मांग गांधीजी ने भारत सरकार से की, इस कारण गांधीजी की हत्या की गई.  संघ परिवार के ऐसे कथन को में झिटक देना चाहता हु. ये सब बहाने है इनमे सच्चाई नहीं है. देश को हिंदू राष्ट्र बनाने की चाहना करनेवाला ब्राह्मण गिरोह ही  उनकी हत्या के सभी प्रयासों के लिए उतरदायी है."
                     "गांधीजी की हत्या केवल हत्या नहीं थी, यह पूर्वनियोजित हत्या थी. ब्राह्मणों ने गांधीजी को निशाना बनाया था. हिंदू राष्ट्र के नाम पर वे अपना जाति वर्चस्व स्थापित करना चाहते थे. गांधीजी की हत्या के पहले भी कई बार उनकी हत्या के प्रयास हो चुके थे. उन सभी में पूना किसी ना किसी रूप से जुड़ा था."
                     आर.एस.एस. के पुरातन पंथी ब्राह्मण नेताओ के कहने के अनुसार गोडसे ने गांधीजी की हत्या, पाकिस्तान को 55 करोड रूपये देने के लिए गांधीजी की उपवास पर बैठने की घोषणा से उतेजित होकर कियी थी. देश के टुकड़े होते समय हिंदूओ पर जो अत्याचार हुए उससे गोडसे जैसे हिंदूवादी दुखित थे. और यह उनका प्रत्याघात था.
                     ऊपर के सिद्धांत के विरुध कई प्रश्न खडे होते है. जैसे कि देश के विभाजन के समय हिंदू पर जो अत्याचार हुए, वे अत्याचार करने वाले क्या गांधीजी थे जिससे गोडसे ने उनकी हत्या कि? यदि पाकिस्तान को 55 करोड रूपये देने के लिए गांधीजी के उपवास की घोषणा के कारण गांधीजी की हत्या कराइ गई हो तो पूना में हरिजन यात्रा के समय 1935 में बम किसलिए फैका गया था ? उसके बाद पंचगनी और वर्धा में गांधीजी की हत्या के प्रयास किस लिए किए गए ?
                     उपरोक्त प्रश्नों के उतर खोजने पर संघ के ब्राह्मण नेताओ के गांधीजी की हत्या के सिद्धांत के परखचे उड़ जाते है. गांधीजी की हत्या के कारणों को जानने के लिए दूसरे भी कई प्रश्नों के उतर खोजने होगे जैसे कि,
                     गांधीजी की हत्या का षड्यंत्र करने वाले तथा उसे कार्य रूप से परिणित करने वाले पांच ब्राह्मण महाराष्ट्र के हि क्यों थे?
                     दूसरा प्रश्न उठता है की गांधीजी की हत्या ब्राह्मणों ने हि क्यों कि ? क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र अथवा अतिशुद्र में से किसीने यह हत्या क्यों नहीं की ?
                     तीसरा प्रश्न होता है कि गांधीजी की हत्या में पुरातन पंथी ब्राह्मण ही क्यों जुड़े हुए थे ? प्रगतिशील और उदारवादी ब्राह्मण गांधीजी के समर्थक क्यों  रहे ?                   
                     चौथा प्रश्न होता है की पुरातन पंथी ब्राह्मणों ने गांधीजी की हत्या कट्टर हिंदूवादी होने के कारण की या कट्टर जातिवादी होने के कारण की ?
                     पांचवा प्रश्न होता है की गांधीजी की हत्या के पूर्व और आजादी मिलने के पूर्व गांधीजी की हत्या के प्रयास पूना, पंचगनी तथा वर्धा में हुए थे और ये सभी स्थान महाराष्ट्र के है क्या ये संयोगवश है ?
                     ऊपर के प्रश्नों के सच्चे उतर दिए जाए तो ये स्पष्ट हो जाता है कि गांधीजी की हत्या न पाकिस्तान को 55 करोड रूपये देने के आशय के कारण और न ही देश के विभाजन के समय हिंदूओ पर हुए अत्याचारो के कारण हुई. यदि ये कारण है तो 1935 में पूना में हरिजन यात्रा के समय गांधीजी को लक्ष्य बनाकर बम क्यों फैका गया ? तब न तो देश के टुकड़े हुए थे और न पाकिस्तान को 55 करोड रूपये देने की बात थी. संघ के ब्राह्मण नेताओ का गांधीजी की हत्या का सिद्धांत इतना कमजोर है, उसे समजा जा सकता है.    

गांधीजी की हत्या महाराष्ट्र के कट्टर जातिवादी ब्राह्मणों ने क्यों और किन  उदेश्यों से की थी? 
                     (1) पुरातन पंथी ब्राह्मणों ने बाल गंगाधर की मृत्यु के पश्चात अंग्रेजी शासन के सामने चल रही जंग को छोड़कर महाराष्ट्र में फुले-शाहूजी महाराज तथा डॉ. बाबासाहब आंबेडकर द्वारा चलाये जा रहे सामाजिक समानता के आन्दोलन के सामने ब्राह्मणवादी प्रभुत्व बनाये रखने के लिए हिंदू महासभा और आर.एस.एस. ऐसे दो संगठन शुरू किये थे.
                    महात्मा गांधीजी ने भी उदारमतवादी ब्राह्मण नेताओ के साथ शुद्रो, अतिशुद्रो के मानवीय सामाजिक अधिकारों के लिए प्रवृतिया चलानी आरंभ की थी. गांधीजी का प्रभाव राष्ट्रिय स्तर पर देश के सभी सामाजिक वर्गों पर व्यापक रूप से बढ़ता जा रहा  था जो पुरातनपंथी कट्टर जातिवादी ब्राह्मणों के लिए खतरा था.
                    (2) संघ तथा हिंदू महासभा के ब्राह्मण नेताओ  मनु स्मृति के प्रावधानों के अनुरूप देश का संविधान बनवाना चाहते थे. 1947 में डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के बीच कांग्रेस और डॉ. आंबेडकर के बीच अनेक मतभेदों के होते हुए भी गांधीजी ने किन्ही कारणों से, संविधान प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में डॉ. बाबासाहब आंबेडकर को रखने की सिफारिश की थी. कांग्रेस के नेता पं. जवाहरलाल नेहरू तथा सरदार पटेल ने डॉ. बाबासाहब आंबेडकर को संविधान प्रारुप समिति के अध्यक्ष बनाये थे.
                    डॉ. बाबासाहब आंबेडकर समतावादी संविधान बनाएंगे, ऐसा जानने वाले महाराष्ट्र के पुरातनपंथी जातिवादी ब्राह्मणों गांधीजी के कांग्रेस पर प्रभाव के कारण गांधीजी को खतरनाक मानते थे.
                    (3) शुद्र, अतिशूद्र जातियो में से ही धर्मान्तरित मुस्लिम, इशाई आदि धार्मिक अल्प संख्यक अस्तित्व में आए थे. हिंदू मुस्लिम के नाम पर  उन्हें आपस में लड़ाकार पुरातन पंथी जातिवादी ब्राह्मण नेताओ ने  शुद्रो-अतिशुद्रो पर अपना वर्चस्व बनाने  की रणनीति बनाई थी.  भारत, पाकिस्तान के रूपमें  विभाजित होने के बाद में उठ खड़ा हुआ सांप्रदायिक उन्माद, संघ तथा हिंदू महासभा के कट्टर जातिवादी ब्राह्मण नेताओ के लिए सुअवसर था.
                     देश का विभाजन होने के बाद उठ खडे हुए साम्पदायिक तनाव के कारण नोआखली में सांप्रदायिक दंगे हुए. हिंदूओ और मुस्लिमो के बीच भाईचारा स्थापित कराने तथा सांप्रदायिक दंगे बंद कराने के लिए गांधीजी ने अनसन  किये और प्रेरक नेतृत्व दिया था. हिंदू-मुस्लिम के नाम पर गैर-ब्राह्मणों पर सनातनी ब्राह्मण प्रभुत्व स्थापित करने का अवसर नोआखली शांति स्थापित होने से संघ और हिंदू महासभा के ब्राह्मण नेता ओ के हाथ से निकाल गया. ब्राह्मणवाद के विरुध्ध  गैर-ब्राह्मणों की चुनोती को मुस्लिमो के विरुध्ध  खड़ा कर देने का अवसर गांधीजी के कारण नहीं मिलने से वे गांधीजी को कट्टर शत्रु समजने लगे थे.
                    (4) 1948 में देश के प्रधानमंत्री पं. नेहरू ब्राह्मण, देश के गवर्नर जनरल चक्रवर्ती राजगोपालचारी ब्राह्मण और देश की प्रांतीय सरकारों के मुख्यमंत्री भी ब्राह्मण ही थे. सरकार में एक ही ब्राह्मण जाति के प्रभुत्व को लेकर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए गांधीजी ने 1948 में कहा था कि भारत के प्रधानमंत्री पद पर इसके बाद किसान और राष्ट्रपति पद पर अछूत आना चाहिए.
                    ब्राह्मण जन्मजात श्रेष्ठ तथा धरती के भूदेव है और शुद्र(किसान), अतिशूद्र(अछूत) जन्मजात नीच, अयोग्य तथा ब्राह्मणों के सेवक है, ऐसा मानने वाले संघ और हिंदू महासभा के कट्टर पुरातनपंथी जातिवादी ब्राह्मण नेताओ और कार्यकर्ताओ को गांधीजी की ऐसी बात कैसे स्वीकार्य हो  सकती थी? किसान शुद्र प्रधानमंत्री और अछूत अतिशूद्र राष्ट्रपति, ऐसी बात उन के लिए  कैसे सह्य हो सकती थी?

                    गांधीजी का प्रभाव केवल कांग्रेस पर ही बही वरन गावों से लेकर शहरो तक सारे देश में, जनमानस में एक महात्मा के रूप में स्थापित हो चूका था. गांधीजी का अस्तित्व भविष्य में और भी भयानक बन जायेगा, ऐसी आशंका से पीड़ित महाराष्ट्र के RSS और हिन्दू महासभा  से जुड़े कुछ कट्टर ब्राह्मणों ने गांधीजी की हत्या का षड्यंत्र रचा और षड्यंत्र को हत्या कर के सफल बनाया था. RSS तथा हिंदू महासभा द्वारा फैलाई गयी मानसिकता से ग्रस्त हुए ब्राह्मण युवको ने 20वी सदी के एक श्रेष्ठ हिंदू व्यक्ति की हत्या की ये हिंदू हित में थी या ब्राह्मण जाति हित में थी?

                                                        -साभार : तिन ब्राह्मण सर संघचालक राष्ट्रवादी या जातिवादी 

  • Manish RanjanAshish S. Dhurwey और 24 और को यह पसंद है.
  • Dr.Lal Ratnakar मन्नानी साहब मोदी के प्रति उन ब्राह्मणों का नजरिया क्या रहेगा ।
  • Jayantibhai Manani -
    एक कट्टर ब्राह्मण का जो नजरिया एक शुद्र सेवक के प्रति होता है ऐसा ही नजरिया RSS के कट्टर जातिवादी ब्राह्मण नेताओ का शुद्र-ओबीसी नेताओ के प्रति रहा है. नरेंद्र मोदी कोई अपवाद नहीं है. PMO पर RSS से जुड़े ब्राह्मण अधिकारी और कर्मचारियो ने एकाधिकार स्थापित कर लिया है.
  • Dr.Lal Ratnakar क्या मोदी ब्राह्मणों के चाल को नहीं समझते या जान बूझकर उनके इषारों पर सबकुछ करेंगे।
  • Jayantibhai Manani -
    मोदी अनुकूल थे इसीलिए गुजरात के मुख्यमंत्री बन सके. मुख्यमंत्री के रूप में अति अनुकूल रहे तो PM के उमीदवार भी बने और प्रधानमंत्री भी बन गए. सेवक स्वतन्त्र विचार से व्यवहार नहीं कर सकता...
  • Jayantibhai Manani महात्मा गाँधी की हत्या ब्राह्मणों ने क्यों किई ? ब्राह्मणों में भी महाराष्ट्र के कुछ कटटर जातिवादी ब्राह्मणों ने क्यों की? गांधीजी के हत्यारे ब्राह्मणों आरएसएस से क्यों जुड़े थे? गांधीजी की हत्या के बाद तुरत महाराष्ट्र में आरएसएस के कट्टरपंथी ब्राह्मणों...और देखें
  • Jayantibhai Manani -
    मुझे लगता है की गाँधीजी २०-वी सदी के श्रेष्ठ हिंदू तो होने ही चाहिए. अगर संघ के ब्राह्मण स्वंयसेवक जातिवादी नहीं होते और हिंदूवादी होते तो वे गांधीजी को नहीं परंतु प्रधानमंत्री नेहरू की हत्या करते.
    ...और देखें
  • Dr.Lal Ratnakar सेवक स्वतन्त्र विचार से व्यवहार नहीं कर सकता...
    मन्नानी साहब आपका विचार अति उपयुक्त ! लेकिन आप यह भूल रहे हैं की राजा की जाति नहीं होती !
    जिस तरह से मोदी आएं है ! यह इतिहास है आप इस द्रिष्टी से देखिये की कोई 'बैकवर्ड' अपने बुते देश की गद्दी लिया है !
    ...और देखें
  • Dr.Lal Ratnakar "हमारे देश में सब से कट्टर जातिवादी कोई है, तो वे संघ, विहिप और भाजपा के ब्राह्मण नेता है. देश को सब से ज्यादा खतरा उन्ही लोगो से है."
    हम आप से सहमत हैं 'गाली देने से तो बात बनेगी नहीं' क्या जिसे आप सेवक कह रहे हैं विल्कुल विचार शून्य है, मेरे भी एकाध 
    ...और देखें
  • Jayantibhai Manani -
    Dr.Lal Ratnakarजी,, मोदी संघ परिवार से अलग हो कर स्वतन्त्र लडे तो MP की तो क्या MLA की सिट भी जित सकते नहीं... मोदी RSS के कट्टर जातिवादी ब्राह्मण नेताओ के रोबोट बनकर रह गए है..
  • Imran Siddique @ Dr. lal pata nahi kyun aap itane aswashth hai modi ko lekar , gujrat me hum sab ne dekha hai ki daliton ke utthan ke liye aisa kuchh nahi kiya usane. haan so called duffer class ke liye bahoot kuchh kiya usane jisake kai udaharan mil jayenge aapko....
  • Imran Siddique LALU MULAYAM MAYA jaise netaon ke wajah se barahmanvadi shaktiyan kamjor ho rahi thi, samaj ko lagne laga tha ki satta sirf duffer class ke logo ki bapauti nahi hai, lekin modi namak yantra se brahman dubara apni khoi hui jameen pane me kamyab ho rahe hai.....
  • Dr.Lal Ratnakar मन्नानी साहब / इमरान भाई आपकी बातों में दम है पर फिर क्या हो 'क्रान्ति का क्या रास्ता है' माँना की ये ब्राह्मणों के रोबोट हैं फिर शूद्रों का नेतृत्व कर क्या रहा है ! किसको दोष दिया जाय आप विचार करें आप ब्राह्मिणों के तरफ खड़े नज़र आएंगे आप क्यों नहीं खड़े होते अपने अजेंडे के साथ। 
    ऐसा पागलपन शूद्रों में ही हो सकता है, मायावती आती हैं तो उन्हें 'द्विज' चाहिए सत्ता चलाने के लिए मुलायम लालू नितीश का काम बिना इनके नहीं चलता। आपकी बात में दंम तो है पर क्या आपको नहीं लगता की 'शूद्रों' की पहचान इनमें खत्म कर दी जायेगी / कर दी गयी है ! पर यदि ऐसा एक नेता शूद्रों का होता तो क्या आज भारत पर उनका राज्य न होता, तो हम कैसे कह सकते हैं की मोदी रोबोट हैं, अब तो आप जैसे सजग बुद्धिजीविओं को करना है की इस रोबोट में भावनात्मक सेन्स भी पैदा हो जाय ! जिससे वो शूद्रों के प्रति ईमानदार हो सके !
    लेकिन जो माहौल दिल्ली में है उसमें वे कितने सफल हो पायेंगे ये विचारणीय है, सरकार के गठन के समय ही से अक्सर ऐसे हुजुम दिल्ली की सडकों पर, संसद और सांसदों के आसपास मडरा रहे होते हैं जो नीतियां बनाने के लिए नहीं नियति खराब करने के लिए ‘‘गिद्धों की भांति मडराना षुरू कर देते हैं, ऐसे कांग्रेसियों ने पूरी कांग्रेस को निगल लिया जो अब सधे हुए गिद्धों के रूप में दिल्ली फिजा में मडराना आरम्भ भी कर दिए हैं जो किसी तरह से मौजूदा सरकार में अपना स्थान जुगाड़ रहे हैं।’’
    अब देखना ये है कि ए प्रधानमंत्री जी के चारों ओर कवच खड़ा करने में कामयाब हो पाते हैं या नहीं, ए भनक पीएमओ तक जा भी रही है या नहीं ये वही जानें पर हूजुम दिल्ली आ गया है जो पूरे देश को सवर्ण साम्राज्य के लिए मजबूत कंधा देने में कैसे कामयाब हो, इनके बयानात सामाजिक सरोकारों को अपने दुःकर्मों के लिए नहीं बल्कि अदृष्य ताकतवर शक्ति के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं।
    राश्ट््रीय स्वयं सेवक संघ के सिपाही जिस रक्षक की भूमिका में हैं उनसे निकलकर किसी का भेद पाना या वहां बने रहना सामाजिक सरोकारों के नए रूप को कितना आसान कर पाएगा यह तो आजतक के परिणामों के आधार पर देखा जा सकता है। इस मंत्र को यदि मोदी जी उलट सके तभी वे कांग्रेस को बौना कर पाएंगे, यदि मोदी न आते तो सोनिया जी आती या कोई ब्राह्मिन आता तो देश का प्रधानमंत्री कोई शूद्र बने यह ब्राह्मण समाज कैसे स्वीकार करेगा ! सवाल तो यह भी है पर ऐसा हुया तो है !
    रही बात माननीय प्रधानमंत्री जी के सपनों की तो उसमें सामाजिक सरोकार कितने परिवर्तित हो पाएंगे, जिस हिंदुत्व को माननीय प्रधानमंत्री जी ने पीछे कर स्वंय आगे कर लिया हैं उसे इनके साथ खड़े लोग कितने दूर तक ले जा सकेंगे। ये जो कुछ भी देख पा रहे हैं या समझ पा रहे हैं उसे समर्थन तो चाहिए वह कहाँ से आएगा !क्या आपको यह भी रोबोट की भाषा लगती है- 
    "इमरजेंसी के संदर्भ में उन्होंने लिखा है, ''यदि हम बोलने और विचार रखने की आज़ादी की गारंटी नहीं दे सकते तो हमारा लोकतंत्र बना नहीं रह सकता.''
    उन्होंने लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करने की अपनी प्रतिबद्धता को दोहराते हुए लिखा है कि अच्छे प्रशासन से लोकतांत्रिक संस्थाओं को मज़ूबत किया जाएगा ताकि वे बुरे दिन दोबारा न लौटें.
    पर मुझे आप पर भरोसा है की आप का आंदोलन बड़ा है पर उसपर कितने लोग एकजुट हैं ! इसी फुट का लाभ मोदी के सहारे संघ लिया है ये बात तो मैं शुरू से ही कह रहा हूँ देखें मेरा ब्लॉग "बदलाव - 2014" http://badalav-2014.blogspot.in/पर कुछ भी नहीं हुआ सारे अपनी तलवारें खींचे खड़े थे जनता ने इन्हे चुन दिया !
    badalav-2014.blogspot.com
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'दंगों को लेकर मिला मुलायम को इनाम'

misuse of cbi in mulayam disproportionate assets case
मुजफ्फरनगर के दंगों को लेकर भाजपा ने कांग्रेस और सपा पर जमकर हमला बोला है।
भाजपा प्रवक्ता निर्मला सीतारमन ने कहा कि आय से अधिक संपत्ति मामले में सीबीआई की क्लीन चिट देकर कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने वास्तव में मुलायम सिंह यादव को मुजफ्फरनगर दंगों को लेकर इनाम दिया है।
वहीं पार्टी महासचिव अमित शाह पर उंगली उठाने वाली सपा पर भाजपा ने पलटवार किया।
शाह के समर्थन में उतरी भाजपा ने कहा कि सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव को किसी पर आरोप लगाने से पहले अपनी पार्टी के नेता आजम खां की दंगों में रही भूमिका पर जवाब देना चाहिए।
भाजपा ने कहा कि मुजफ्फरनगर के दंगों को लेकर हुए स्टिंग ऑपरेशन से आजम खां की भूमिका सभी को पता चल गई है। इसलिए अब मुलायम को आजम खां को लेकर जवाब देना चाहिए।
उन्होंने कहा कि सपा सरकार आने के बाद से उत्तर प्रदेश में 100 से ज्यादा दंगे हो चुके हैं, जबकि तब अमित शाह भाजपा के प्रदेश प्रभारी नहीं थे।
उन्होंने कहा कि कांग्रेस के शासन में भी उत्तर प्रदेश में सैकड़ों दंगे हुए, तब तो अमित शाह वहां नहीं थे। दिल्ली के सिख विरोधी दंगों के समय भी शाह दिल्ली में नहीं थे। इसलिए कांग्रेस व सपा को जवाब देना चाहिए कि ये दंगे क्यों हुए थे।

दंगे में पुलिस से कहीं न कहीं हुई गलती: डीजीपी

dgp visit muzaffarnagar
उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक देवराज नागर ने कहा कि मुजफ्फरनगर फसाद में कहीं न कहीं पुलिस की गलती रही है। कुछ दोषियों पर कार्रवाई हो गई है, शेष लोगों पर जांच के बाद कार्रवाई होगी।
उन्होंने कहा कि सुरक्षा का माहौल पैदा करने के लिए दंगा प्रभावित इलाकों में अस्थायी पुलिस चौकियों के साथ सीआरपीएफ की तैनाती की जाएगी।
सोमवार को दंगा प्रभावित क्षेत्रों में पहुंचे नागर ने देर रात पत्रकारों से बातचीत में कहा कि दंगे से बदनामी हुई है। वर्षों पुरानी एकता कमजोर हुई है। दंगे के दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने के साथ ही शिविरों में रह रहे लोगों को वापस घर भेजने की कवायद की जाएगी।
उन्होंने कहा कि लोगों में असुरक्षा की भावना है। इसे दूर करने के लिए गांव-गांव में पर्याप्त सुरक्षा इंतजाम किए जा रहे हैं। उन्होंने सपा नेता राशिद सिद्दीकी के मामले में कहा कि जांच चल रही है। रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई की जाएगी।
डीजीपी नागर सोमवार रात चुपचाप दंगाग्रस्त शाहपुर क्षेत्र में पहुंच गए। कुटबा में हुई आगजनी और तोड़फोड़ का अवलोकन करने के साथ शिविरों में रह रहे लोगों को उन्होंने पूर्ण सुरक्षा का भरोसा दिया।
उन्होंने शिविर में रह रहे लोगों से कहा कि वे घरों को लौटें। गांव में पुलिस चौकी खोलने के साथ सुरक्षा बल तैनात किए जाएंगे। हालांकि लोग घर लौटने को राजी नहीं हुए। डीजीपी देर रात मुजफ्फरनगर के डाक बंगले पहुंचे। मंगलवार को वह दंगों पर समीक्षा करेंगे और बाद में पत्रकारों से बातचीत भी करेंगे।


मुजफ्फरनगर दंगों के लिए ज‌िम्मेदार नहीं: आजम

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यूपी सरकार में वरिष्ठ मंत्री और सपा के मुस्लिम चेहरे आजम खान ने कहा कि मुजफ्फरनगर दंगों के लिए वो ज‌िम्मेदार नहीं हैं क्योंकि वे सरकार के मुखिया नहीं हैं।
मंगलवार को दिल्ली में बीबीसी से एक ख़ास बातचीत में जब उनसे पूछा गया कि इतना बड़ा दंगा हुआ तो आख‌िर चूक कहां हो गई।
तो उनका जवाब था, ''इस बारे में सीएम साहब (मुख्यमंत्री अखिलेश यादव) ज़्यादा बेहतर बता पताएंगे क्योंकि वो ही एक्ज़क्यूटिव हेड(सरकार के मुखिया) हैं।''
जब मैंने फिर पूछा कि क्या उस ज‌िले के प्रभारी मंत्री होने के नाते आपकी कोई ज‌िम्मेदारी नहीं बनती, उन्होंने अपनी बात दोहराते हुए कहा, ''एक्जक्यूटिव हेड मैं नहीं हूं, इसलिए इस तरह की मेरी ज़िम्मेदारी नहीं बनती।''
'मीडिया है ज‌िम्मेदार'
अखिलेश यादव के इस्तीफ़े या फिर राज्य सरकार की बर्ख़ास्तगी की मांगों के बारे में पूछे जाने पर आजम खान का कहना था, ''मांग तो कोई भी कर सकता है।
आप इस हैसियत में हैं जैसा चाहें माहौल बना दें। यहां भी आप इस्तीफा ले लें और इसे भी बीजेपी के हवाले कर दें।''
कई विपक्षी पार्टियां और मानवाधिकार कार्यकर्ता 2002 में गुजरात में हुए दंगों के लिए मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को ज‌िम्मेदार ठहराते रहे हैं और उनके इस्तीफे की मांग करते रहे हैं।
मुजफ्फरनगर दंगों के बाद यही सवाल जब अखिलेश सरकार से किए जाने लगे तो इसका सीधा जवाब देने से बचते हुए आजम खान ने इसके लिए मीडिया को ज‌िम्मेदार ठहराया।
उनका कहना था, ''जैसा माहौल आप चाहेंगे वैसा बन जाएगा। एक कैमरा, एक व्यक्ति पूरे मुल्क को आग की लपेट में झोंक दे। क्या कर लेगा कोई।''
राहत शिविरों में रह रहे हजारों लोगों के बारे में उन्होंने कहा कि वहां किसी चीज की कमी नहीं है।
हालांकि सामाजिक कार्यकर्ता और मीडिया के लोग उन शिविरों का दौरा करने के बाद कह रहे हैं कि वहां के हालात बहुत खराब हैं और सरकार की तरफ से मदद न के बराबर है।
आजम खान ने कहा कि सरकार की यही कोशिश है कि राहत शिविरों में रह रहे लोगों को शांतिपूर्ण तरीके से उनके घरों तक पहुंचाया जाए और उनकी पूरी हिफाजत की जाए।
गौरतलब है कि दंगों के बाद अपने गांवों को छोड़ने पर मजबूर हुए लगभग 50 हजार लोग इस समय विभिन्न राहत शिविरों, मस्जिदों, मदरसों और स्कूल-कॉलेज में रह रहे हैं।
'सिफारिशें लागू होंगी'
दंगा पीड़ितों को इंसाफ़ दिलाने के बारे में पूछे जाने पर आजम खान का कहना था, ''हुकूमत की सतह पर जितने भी क़दम उठाए जाने थे।
उनमें कोई कसर नहीं उठाई गई है और कोशिश यही की गई है कि ज्यादा से ज़्यादा लोगों पर मरहम लगे। बाकी अदालत से जुड़े मामले हैं उनको वहीं देखेगी, उनमें हमलोग दखल नहीं दे सकते हैं।''
उन्होंने यकीन दिलाया कि मुजफ्फरनगर दंगों की जांच के लिए जो न्यायिक कमेटी बनाई गई है उनकी सभी सिफारिशों को उनकी सरकार लागू करेगी।
अखिलेश सरकार के सत्ता में आने के लगभग डेढ़ साल में उत्तर प्रदेश में सौ से भी ज्यादा दंगे होने की वजह पूछे जाने पर आजम खान ने कहा कि ये एक तफसीली बहस है जिस पर कभी और बातचीत होगी।
लेकिन ये पूछे जाने पर की आम तौर पर लोगों की ये धारणा है कि सांप्रदायिक दंगे राजनीतिक तौर पर समाजवादी पार्टी के लिए फायदेमंद हैं, इसके जवाब में उन्होंने पहले कहा कि ये केवल आरोप हैं जो साबित नहीं हुए हैं।
उन्होंने इतना जरूर स्वीकार किया कि एक हादसा हुआ तो है जिससे इनकार नहीं किया जा सकता है।
दंगों के राजनीतिक लाभ के बारे में दोबारा पूछे जाने पर उन्होंने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया।

मुजफ्फरनगर में दंगा मुलायम की देन'

beni statement on muzaffarnagar riot
केंद्रीय इस्पात मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा ने कहा है कि भाजपा और सपा एक दूसरे के पूरक हैं। इनकी राजनीति साठगांठ से चलती है। हाल में हुए मुजफ्फरनगर के दंगे मुलायम सिंह यादव की देन है।
ढांचा विध्वंस भी लालकृष्ण आडवाणी और मुलायम सिंह की साठगांठ से हुआ था। उन्होंने कहा कि प्रदेश की सपा सरकार देश के इतिहास में अब तक की सबसे नकारा सरकार साबित हुई है।
इस्पात मंत्री एलआरपी निरीक्षण भवन में पत्रकारों से रू-ब-रू थे। उन्होंने कहा कि समाजवादी पार्टी जनता को गुमराह करने वाली राजनीति कर रही है। चुनाव से पहले सरकार ने तमाम वादे किए लेकिन उनको पूरा नहीं कर रही है।
प्रधानमंत्री बनने का ख्वाब देखने वाले मुलायम सिंह को धोखे की राजनीति से बाज आना चाहिए। उन्होंने कहा कि सपा सिर्फ जालसाजी करती है और कुछ नहीं।
वर्मा ने कहा कि भाजपा देश की सबसे कायर पार्टी है। उसे कुछ भी करने के लिए सत्ता का सहारा चाहिए। गुजरात में मोदी को सरकार का सहारा न होता तो गोधरा में दंगा नहीं करा पाती। भाजपा अल्पसंख्यकों को डरा रही है।
उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश के केंद्रीय मंत्रियों को संगठन मजबूत करने के लिए 12-12 जिले आवंटित किए हैं। इसी सिलसिले में वह यहां आए हैं।
उन्होंने कहा कि देश में कांग्रेस अपने मूल्यों और सिद्धांतों को लेकर लोकसभा चुनाव में उतरेगी।

खतरे में सपा की मुस्लिम सियासत!

sp muslim politics in danger
मुजफ्फरनगर में हुई सांप्रदायिक हिंसा का असर समाजवादी पार्टी की मुस्लिम सियासत पर पड़ने लगा है। दंगों में प्रदेश सरकार की भूमिका से खफा आल इंडिया तंजीम उलेमा-ए-हक ने सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव को पत्र भेजकर उन्हें दिया गया सम्मान वापस मांगा है।
मुलायम सिंह को संस्था की ओर से नई दिल्ली में ‘राम मनोहर लोहिया’ नामक यह अवार्ड वर्ष 2010 में दिया गया है। संस्था द्वारा सामाजिक कार्यों और अल्पसंख्यक हितैषी विचारों के लिए वर्ष 2008 से यह अवार्ड प्रदान किया जाता है और अब तक पूर्व केंद्रीय मंत्री समेत पांच हस्तियां इससे सम्मानित हो चुके हैं।
सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव की मुस्लिम सियासत को मुजफ्फरनगर दंगे की आंच झुलसाने लगी है। दंगे को लेकर देवबंदी उलेमा मुलायम से पहले से ही खफा दिख रहे थे। अब दूसरी मुस्लिम जमातों ने भी मुलायम सिंह के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।
इसी क्रम में अब आल इंडिया तंजीम उलेमा-ए-हक संस्था ने मुलायम सिंह को पत्र भेजकर उन्हें वर्ष 2010 में प्रदान किया गया ‘राम मनोहर लोहिया’ अवार्ड वापस मांग लिया है। अवार्ड वापस लिए जाने को मुजफ्फरनगर दंगों में सरकार की भूमिका से जोड़कर देखा जा रहा है।
सोमवार को दारुल उलूम पहुंचे आल इंडिया तंजीम उलेमा-ए-हक संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना ऐजाज उर्फी कासमी ने कहा कि यूपी विशेषकर मुजफ्फरनगर दंगे में सपा की जो भूमिका निकलकर सामने आई है, उससे साफ है कि सपा सरकार ने योजनाबद्ध तरीके से मुसलमानों पर अत्याचार किए।
दंगों के दौरान मुलायम सिंह का चेहरा नरेंद्र मोदी की शक्ल में सामने आया और उन्होंने अल्पसंख्यक शत्रुता में मोदी को भी पछाड़ दिया। उन्होंने बताया कि मुसलमानों के बलबूते यूपी में सत्ता पर काबिज होने वाली सपा सरकार में मुसलमानों पर जुल्म की इंतहा हो गई है।
इसे देखते हुए उन्होंने मुलायम सिंह को रविवार को पत्र भेजकर अपने दिए सम्मान के लिए उन्हें अयोग्य करार दिया है। इसीलिए मुलायम सिंह से 18 अप्रैल 2010 को नई दिल्ली में हुए अखिल भारतीय शिक्षा सम्मेलन में उन्हें दिए गए ‘राम मनोहर लोहिया’ अवार्ड को लौटाने को कहा है।
उन्होंने बताया कि मुलायम सिंह को अवार्ड के तहत दिए गए स्मृति चिह्न तथा प्रमाण पत्र दस दिन के भीतर वापस लौटाने को कहा गया है। यदि तय समय के भीतर सम्मान नहीं लौटाया जाता तो संस्था द्वारा प्रेस कांफ्रेंस कर उनसे यह सम्मान वापस लिए जाने की विधिवत घोषणा की जाएगी।
ये है सम्मान
संस्था द्वारा वर्ष 2008 में सामाजिक कार्यों और अल्पसंख्यक हितैषी विचार रखने वाली हस्तियों को सम्मानित करने के लिए ‘राम मनोहर लोहिया’ अवार्ड की घोषणा की गई थी। स्थापना वर्ष में ही सबसे पहले यह सम्मान कांग्रेस के पूर्व केंद्रीय मंत्री आस्कर फर्नांडीज को दिया गया था।
इसके बाद वर्ष 2009 में सपा के तत्कालीन राष्ट्रीय महासचिव अमर सिंह, वर्ष 2010 में सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव को, वर्ष 2011 में अल्पसंख्यक आयोग के चेयरमैन सुहैल ऐजाज सिद्दीकी तथा वर्ष 2012 में वरिष्ठ पत्रकार डा. अजीज बर्नी को प्रदान किया जा चुका है।
अवार्ड के तहत नई दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम में सम्मानित हस्ती को संस्था की ओर से स्मृति चिह्न तथा प्रमाण पत्र प्रदान किया जाता है।
अमर सिंह का जान से मारने की धमकी मिलने का दावा
आजमगढ़, एजेंसी
First Published:28-07-13 08:59 PM
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किसी जमाने में समाजवादी पार्टी मुखिया मुलायम सिंह यादव के खास विश्वासपात्रों में रहे राज्य सभा सांसद अमर सिंह ने आज यहां दावा किया कि उन्हें एसएमएस के जरिये धमकी दी गयी थी कि अगर वह मारे गये नेता सर्वेस सिंह के परिवार से मिलने गये तो उनका भी वही हश्र होगा। हाल ही में अज्ञात लोगों की गोली का शिकार हुए पूर्व विधायक सर्वेश कुमार सिंह उर्फ सीपू सिंह के परिजनों से मिलने उनके गांव अमवारी नारायणपुर पहुंचे अमर सिंह ने आरोप लगाया कि उन्हें एसएमएस पर धमकी दी गयी थी कि सीपू के घर गये तो उनका भी वही हाल होगा, मगर किसी में इतनी हिम्मत नहीं कि उन्हें डरा सके।
उन्होंने उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ सपा सरकार पर करारा हमला बोला और कहा कि अब यहां आम आदमी कौन कहे जनप्रतिनिधि तक सुरक्षित नहीं रह गये हैं। राज्य सभा सांसद और निकट सहयोगी जयाप्रदा के साथ यहां आये सिंह ने कहा कि प्रदेश में कानून एवं व्यवस्था इतनी बिगड़ गयी है कि आम आदमी के जनप्रतिनिधि तक सुरक्षित नहीं रह गये हैं।
उन्होंने बिना कोई नाम लिए कहा कि सपा सरकार में एक सोची समझी चाल के तहत एक जाति विशेष के बड़े नेताओं की हत्याएं करायी जा रही हैं। सिंह ने सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव पर पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर सिंह, वी़पी़सिंह, रघुराज प्रताप सिंह तथा सीपू के पिता स्व रामप्यारे सिंह का उपयोग करके किनारे लगा देने का आरोप लगाया और उन नामों में अपना भी नाम शुमार किया।

आईएएस अफसर को मिली ईमानदारी की सजा, सस्पेंड

लखनऊ/ब्यूरो | अंतिम अपडेट 29 जुलाई 2013 1:25 AM IST पर
ias officer got punishment to honesty suspended
खनन माफियाओं के खिलाफ अभियान चलाने के बाद सुर्खियों में आईं आईएएस अधिकारी दुर्गा शक्ति नागपाल को अपनी ईमानदारी की कीमत चुकानी पड़ी है। अखिलेश सरकार ने शनिवार रात उन्हें निलंबित कर दिया है।
सूत्रों के मुताबिक खनन माफिया लॉबी के दबाव में यह कार्रवाई की गई है। लेकिन सरकार का कहना है कि उनके खिलाफ यह कार्रवाई एक धार्मिक स्थल की दीवार को गिराने का आदेश देने की वजह से की गई है।
सूत्रों के मुताबिक इस अधिकारी ने माफिया की नाक में दम कर रखा था। सरकार ने नागपाल को अब राजस्व परिषद से संबद्ध कर दिया है और इसे एक प्रशासनिक कार्यवाही बताया है। लेकिन उसकी मंशा पर सवाल उठने लगे हैं।
28 वर्षीय नागपाल पंजाब कैडर की 2009 बैच की आईएएस अफसर हैं। नागपाल को पिछले साल सितंबर में गौतमबुद्ध नगर (सदर) का एसडीएम नियुक्त किया गया था।
नागपाल ने पिछले दिनों अवैध खनन को रोकने के लिए अभियान चलाया था, जिसके कारण खनन माफिया उनके खिलाफ थे।
पिछले हफ्ते ही उन्होंने अवैध खनन के आरोप में 15 लोगों को सलाखों के पीछे पहुंचाया था और 22 के खिलाफ सीजेएम के यहां से गिरफ्तारी वारंट जारी हुए।
अप्रैल से लेकर अब तक अवैध खनन में इस्तेमाल की जा रही करीब 297 गाड़ियों और ट्रैक्टरों को सीज कर खनन पर रोक लगा दी थी। इस दौरान करीब 82.34 लाख रुपये का राजस्व भी सरकारी खजाने में आया।
दरअसल यमुना और हिंडन नदी में अवैध खनन माफियाओं का दबदबा है। इससे एक तरफ सरकार को हर साल करोड़ों रुपये के राजस्व का नुकसान होता ही है, साथ ही इससे पर्यावरण पर भी असर पड़ता है।
प्रशासन माफिया के दबाव और राजनीतिक दखल केचलते उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं पर पाता है लेकिन नागपाल ने सारे दबाव दरकिनार कर अभियान चलाया।
'ईमानदारी का इनाम निलंबन'
बसपा नेता सतीश चंद्र मिश्रा ने कहा कि दुर्गा शक्ति नागपाल को इसलिए निलंबित किया गया क्योंकि उन्होंने वहां पर खनन माफिया के खिलाफ अभियान चला रखा था। खनन माफिया से उसने लाखों का राजस्व वसूला।
मीडिया और जनता जहां उनकी तारीफ कर रही थी, वहीं मुख्यमंत्री ने उन्हें निलंबित कर इसका इनाम दिया। इससे पूर्व गोंडा में पशु तस्करी को रोकने वाले एसपी को वहां से हटा दिया गया था और तस्करी के आरोपी को राज्यमंत्री का दर्जा दे दिया।
'यह तो खनन माफिया की जीत है'
भाजपा नेता कलराज मिश्रा ने कहा कि नागपाल के खिलाफ प्रदेश सरकार की कार्रवाई साबित करती है कि वह माफिया के खिलाफ कार्रवाई करने वाले अधिकारियों को पसंद नहीं करती है।
आखिर उसने कौन सी गलती की थी। यह समझ से परे है लेकिन यह महसूस होता है कि उन्हें माफिया के दबाव के चलते निलंबित किया गया।
'शिकायत आएगी तो गौर करेंगे'
नागपाल के निलंबन पर उत्तर प्रदेश आईएएस संघ अध्यक्ष आलोक रंजन का कहना हैं कि मैं इस मामले को देखूंगा। रविवार होने के कारण मेरे पास पूरी जानकारी नहीं है। अगर नागपाल इस मामले की शिकायत लेकर आती हैं, तो हम जरूर रास्ता निकालेंगे।
यह प्रशासनिक फैसला है। उन्होंने एक धार्मिक स्थल की दीवार को गिराने का आदेश दिया था।--मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, ट्विटर पर लिखा

'मोदी को प्रधानमंत्री बनाना चाहते हैं लालू'

पटना/एजेंसी | अंतिम अपडेट 28 जुलाई 2013 9:39 PM IST पर
jd() claims lalu wants to make prime minister narendra modi
बिहार में सत्तारूढ़ जदयू ने कहा कि अब इसमें कोई शक बाकी नहीं रहा कि राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव गुजरात के मुख्यमंत्री और भाजपा के चुनाव प्रचार अभियान के प्रमुख नरेंद्र मोदी का प्रधानमंत्री पद के लिए समर्थन कर रहे हैं।
पार्टी ने कहा कि ऐसा वह इसलिए कर रहे हैं क्योंकि उनके मन में कांग्रेस को लेकर भय पैदा हो गया है। लिहाजा राजनीतिक भविष्य तलाशने के लिए अब वह भाजपा की तरफ आकर्षित हो रहे हैं।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के करीबी माने जाने वाले वरिष्ठ जेडीयू नेता संजय झा ने कहा कि जेडीयू के एनडीए से अलग होने के बाद कांग्रेस की नीतीश से बढ़ती नजदीकी से लालू भयभीत हैं और इसके चलते उनका अब भाजपा के प्रति झुकाव बढ़ रहा है।
झा का यह बयान लालू प्रसाद द्वारा शनिवार को मोदी की प्रशंसा किए जाने के बाद आया है।
जदयू नेता ने दावा किया कि राजद प्रमुख के गुरु ने उन्हें मोदी का प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी के लिए समर्थन करने का निर्देश दिया है।
झा ने कहा कि लालू खुद इस बात को कह चुके हैं कि वह पगला बाबा के परम भक्त हैं तो ऐसे में क्या वह उनके आदेश को मानने से इंकार कर देंगे।

Dilip C Mandal-मायावती और मुलायम सिंह ब्राह्मण तुष्टिकरण कर रहे हैं. नीतीश कुमार सवर्ण तुष्टिकरण कर रहे हैं. लालू प्रसाद भी सवर्ण तुष्टिकरण करना चाहते हैं...यह सब भारतीय लोकतंत्र के बड़े चमत्कार हैं. ऐसे मौके पर भारतीय राजनीति के अब तक के सबसे बड़े कीमियागर या रसायनशास्त्री कांशीराम साहब को याद किया जाना चाहिए. पाने वाले का, देने वाला बन जाना कोई मामूली बात नहीं है.
Dilip C Mandal-पहले आदिवासियों का तुष्टिकरण होता था, दलितों का तुष्टिकरण होता था, मुसलमानों का भी होता था, लेकिन भारतीय राजनीति अब 180 डिग्री घूम चुकी है. उत्तर प्रदेश, बिहार जैसे राज्यों में जिस तरह सवर्ण और खासकर ब्राह्मण तुष्टिकरण हो रहा है, सत्ताधारी पार्टियां परशुराम सम्मेलन कर रही हैं, उससे साफ है कि कभी जो देने वाले थे, वे अब पाने वाले बन कर तुष्ट हो रहे हैं. अच्छा है कि कलियुग का प्रकोप बढ़ता जा रहा है. लोकतंत्र की जय हो.

बीते रविवार (२१ अप्रैल ) को पूर्वांचल के मऊ जिले के एक गाँव में डॉ. आंबेडकर को निम्मित बनाकर बहुजन समाज में नयी सामाजिक और वैज्ञानिक चेतना के प्रसार का अभियान देखने का सुयोग जुटा .अवसर था कुछ दलित प्रबुद्ध जनों द्वारा संचालित "सम्यक समाज सेवा संस्थान " का डॉ. आंबेडकर की स्मृति को समर्पित वह वार्षिक आयोजन जिसमें 'डॉ. आंबेडकर सामान्य ज्ञान एवं निबंध प्रतियोगिता ' के माध्यम से आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों के छात्रों में समानता और जातिगत भेदभाव से मुक्त समाज बनाने का सन्देश दिया जाता है .इस अवसर पर ७२ छात्रों को सम्मानित और पुरस्कृत किया गया .इस प्रतियोगिता में जोतिबा फुले ,आंबेडकर ,पेरियार ,राहुल संकृत्यायन ,डॉ.लोहिया ,पेरियार ललई सिंह यादव आदि के जीवन व् योगदान व् वैज्ञानिक चेतना से सम्बंधित प्रश्न पूछे गए थे .इस आयोजन में हजारों की संख्या में लोग देर रात तक मौजूद रहे .इस अवसर पर "दलित और पिछड़ा वर्ग आन्दोलन की दशा और दिशा " पर आयोजित परिसंवाद में भी शिरकत करने का अवसर मिला .सचमुच यह अपने अलग ढंग का आयोजन था जिसमें दलित ,पिछड़े और ,अल्पसंख्यक समाज की व्यापक हिस्सेदारी थी .समारोह में सवर्ण समाज की कम लेकिन प्रतीक उपस्थिति जरूर थी , समारोह को देखकर यह लगा कि यदि हाशिये के समाज के प्रबुद्धजन पहलकदमी करें तो दलित और पिछड़ों के नाम पर मात्र सत्ता की राजनीति करने वालों को सवालों के घेरे में खड़ाकर परिवर्तन की उस नयी चेतना को जागृत किया जा सकता है जो मार्क्स ,आंबेडकर और लोहिया के सपनों को पूर्ण करने का पथ प्रशस्त कर सकती है .
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भारत सरकार के आँकड़ों के अनुसार देश का कुल कृषि क्षेत्रफल लगभग 125 मिलियन हैक्टेयर है. भारत की कुल आबादी 1 अरब 21 करोड़ है. देश की आबादी का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा कृषि पर निर्भर है. इस प्रकार लगभग 72 करोड़ लोग कृषि पर निर्भर हैं. अगर सिर्फ 72 करोड़ लोगों में कृषि योग्य भूमि का वितरण किया जाए तो भी प्रतिव्यक्ति कृषि योग्य भूमि आएगी मात्र 0.17 हैक्टेयर. पाँच लोगों के एक औसत परिवार में कुल कृषि योग्य भूमि होगी 0.17x5=0.85 हैक्टेयर.
अब आप बताइए कि एक हैक्टेयर से भी कम भूमि के एक औसत भारतीय किसान परिवार की आर्थिक और शैक्षिक स्थिति क्या है? क्या वह बहुत सुखी और समृद्ध है?
इसीलिए कहती हूँ कि भूमि के समान वितरण से समानता का हल खोजने वाले दिन में तारे देखने के आदी हैं. जब तक नीति-निर्धारण में भागीदारी नहीं होगी, बहुजनों की स्थिति सुधरने वाली नहीं है. इसलिए नीति निर्धारण करने वाले सत्ता प्रतिष्ठानों पर कब्जा बहुजनों का पहला लक्ष्य होना चाहिए. इसके लिए शिक्षित बनो, संगठित हो, संघर्ष करो.
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किसी जाति का प्रतीक अगर फरसा जैसा घातक अस्त्र बन जाए, जिससे मात्र हत्या ही की जा सकती है, तो निःसंदेह उसके वाहकों (समर्थकों और महिमामंडि़त करने वालों) के आचरण और खैाफ के दब-दबेपन को स्वीकार करने की विवशता के समाजशास्त्र को समझने की असफलता स्वीकार करनी चाहिए । चाकू से हत्या के अलावा दूसरे काम जैसे सब्जी काटने से लेकर झाड़ियों की कटाई-छंटाई भी हो सकती है । तलवार से भी इनमें से कुछ काम लिए जा सकते है...See More

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  • दिनेशराय द्विवेदी परशु और परशुराम सांप्रदायिक राजनीति का एक हिस्सा बन चुके हैं।
    6 hours ago · Like · 2
  • Dr.Lal Ratnakar ये सरकार जिन ब्राह्मणों के चक्कर में सारा समय लगा रही हैं, हो सकता है इसे यह भ्रम बना हो की इनके बूते ये सत्ता में बने रहेंगे, जो सत्य नहीं है यह इनकी भ्रम है, अभी वह एक दौर था जब सभी इनके खिलाफ हो गए थे, इसलिए कि इन्होंने देश के अधिसंख्य संस्थानों पर अन्य लोगों कों रोककर अपना वर्चस्व बनाया हुआ है, जिससे इनको लगता है की इनके बिना राज्य चलाना मुश्किल है। जो वास्तव में ऐसा नहीं है। पर ये इसको कैसे बदलेंगे यह करने की वजाय ये इनकी वंदना में लग गए हैं,जो इनकी सत्ता का सर्वनाश कर देगा।
    6 hours ago · Like · 1
  • Mani Ram Singh फरसा धारण किये रौद्र रूप वाले जिन परशुराम के वंशजों की राजनितिक दल वंदना करके महिमामंडित कर रहे हैं वे ब्राह्मनत्व के तथाकथित उच्च शिखर से फिसलकर गन्दगी के ऐसे दल-दल में अपने को स्थापित कर लिए हैं कि देख कर घिन्न आती है.अपने आदर्श को भुला कर वे आज दुनियां के हर कुकर्म करके अपने को गौरवान्वित समझते हैं.मांस,मदिरा, लूट-पाट,चोरी डकैती,अपहरण बलात्कार,क़त्ल इत्यादि इनमे गाँव से लेकर मंदिरों,मठों,शासन,प्रशासन सब जगह ब्याप्त है,राजनितिक दलों का सह पाकर क्या इनका और पतन नहीं होगा.आज भी कुछ ब्राह्मण बचे हुए हैं जो अपने आदर्श पर कायम हैं.क्या उनका कर्त्तव्य नहीं बनता कि अपने समाज की अवनति पर अंकुश लगाये.वर्ण ब्यवस्था के आधार पर वैश्यों एवं शूद्रों पर जो ज़ुल्म शदियों तक ढाए गए क्या पुनः उनमें बढ़ोतरी नहीं होगी.एक ज़माना था जब बसपा और सपा दोनों इनसे दूरी बनाये थे परन्तु चालाकी और कूटनीति के तहत ये दोनों ही दलों में अपना बर्चस्व स्थापित कर लिए हैं जो देश के पतन में सहायक होंगे.
    3 hours ago · Edited · Like · 1
  • Anil Janvijay दर‍असल सबसे ज़्यादा हिंसक कौन हिन्दुओं की है। कोई हिन्दू देवता आजतक हथियारहीन नहीं दिखा।
    4 hours ago · Like · 1
  • Mani Ram Singh ब्रह्मा,विष्णु महेश,गणेश,दुर्गा,काली इत्यादि किनका किनका नाम लूं सभी हिंसक हथियारों से लैश हैं.यही नहीं सब विकलोंग,कोई पांच मुखवाला,कोई गजानन,कोई षडानन,कोई लम्बोदर,कोई चतुर्भुज,कोई अष्टभुज,कोई त्रिनेत्र इत्यादि इत्यादि.सब काल्पनिक,कमाल है अन्धविश्वास...See More
    3 hours ago · Like · 1
  • Tahira Hasan विडंबना है की अब ब्राम्हण वोटों के लिए चाटुकारिता की होड़ बी जे पी और काँग्रेस जैसी पार्टियों में नही बल्कि समाजवाद और दलित , उपेक्षित समाज के अलम्बरदारो में है जो इसी वर्ग को अपनी दरिद्र्ता के लिए जिम्मेदार मानते है .. वोट की राजनीति हमे कहा ले जाएगी कितना झूट बोल्वाएगी इस का अंदाज़ लगाना भी मुश्किल है
    2 hours ago · Like · 1
  • Subhash Chandra Kushwaha मित्रों को यह तो पता ही होगा की परशुराम ने आपनी मां का क़त्ल किया था वो भी बिना किसी गंभीर कारन के . २१ बार पृथ्वी को क्षत्रियों से खाली कराया थ. इनमें से कौन सा काम महानता लायक है ? उनका जन्म कब हुआ कही कोई इतिहास नहीं, फिर भी जयंती . सुभाष चन्द्र बोस, भगत सिंह की जयंती पर तो अवकाश होता नहीं
    27 minutes ago · Edited · Like · 1
  • Ramji Yadav असल में फरसा किसानों का यंत्र है जिससे वे सबके मुंह के लिए चारा उपराजते हैं लेकिन परसुराम के नाम पर इसका मिथकीकरण हमारे इस औज़ार को कलंकित करना है जो कि एकदम गलत है । पारसुराम का हथियार गंडासा है जो आज भी हत्यारों और कसाइयों के पास मिलता है । अगर किसी ने गंडासे की तरह फरसा कहीं देखा हो तो बहस करे !
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    माननीय मुलायम  सिंह ने इस 'कसाई' के जन्मदिन पर छुट्टी की है। जिसने 'यादव' वंशीय राजा की भी ह्त्या की  है . मित्रों को यह तो पता ही होगा की परशुराम ने आपनी मां का क़त्ल किया था वो भी बिना किसी गंभीर कारन के . २१ बार पृथ्वी को क्षत्रियों से खाली कराया थ. इनमें से कौन सा काम महानता लायक है ? उनका जन्म कब हुआ कही कोई इतिहास नहीं, फिर भी जयंती . सुभाष चन्द्र बोस, भगत सिंह की जयंती पर तो अवकाश होता नहीं लेकिन वोट के चक्कर  में 
'कबीर कला मंच' के कलाकारों की रिहाई के लिए संस्कृतिकर्मियों-बुद्धिजीवियों का

प्रतिवाद मार्च -2 मई 2013, 2 बजे दिन, श्रीराम सेंटर (मंडी हाउस) से महाराष्ट्र सदन


साथियो,



पुणे (महाराष्ट्र) की चर्चित सांस्कृतिक संस्था ‘कबीर कला मंच’ के संस्कृतिकर्मियों पर पिछले दो वर्षों से राज्य दमन जारी है। मई 2011 में एटीएस (आतंकवाद निरोधक दस्ता) ने कबीर कला मंच के सदस्य दीपक डेंगले और सिद्धार्थ भोसले को दमनकारी कानून यूएपीए के तहत गिरफ्तार किया था। दीपक डांगले और सिद्धार्थ भोसले पर आरोप लगाया गया कि वे माओवादी हैं और जाति उत्पीड़न और सामाजिक-आर्थिक विषमता के मुद्दे उठाते हैं। इस आरोप को साबित करने के लिए उनके द्वारा कुछ किताबें पेश की गईं और यह कहा गया कि कबीर कला मंच के कलाकार समाज की खामियों को दर्शाते हैं और अपने गीत-संगीत और नाटकों के जरिए उसे बदलने की जरूरत बताते हैं। राज्य के इस दमनकारी रुख के खिलाफ प्रगतिशील-लोकतांत्रिक लोगों की ओर से दबाव बनाने के बाद गिरफ्तार कलाकारों को जमानत मिली। लेकिन प्रशासन के दमनकारी रुख के कारण कबीर कला मंच के अन्य सदस्यों को छिपने के लिए विवश होना पड़ा था, जिन्हें ‘फरार’ घोषित कर दिया गया था। विगत 2 अप्रैल को कबीर कला मंच की मुख्य कलाकार शीतल साठे और सचिन माली को महाराष्ट्र विधानसभा के समक्ष सत्याग्रह करते हुए गिरफ्तार कर लिया गया। उसके बाद गर्भवती शीतल साठे को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया और सचिन माली को पहले एटीएस के सौंपा गया, बाद में न्‍यायिक हिरासत में भेज दिया गया। उन पर भी वही आरोप हैं, जिन आरापों के मामले में दीपक डेंगले और सिद्धार्थ भोसले को जमानत मिल चुकी है।



साथियो, इस देश में साम्राज्यवादी एजेंसियां और सरकारी एजेंसियां संस्कृतिकर्म के नाम पर जनविरोधी तमाशे करती हैं। वे संस्‍कृतिकर्मियों को खैरात बांटकर उन्‍हें शासकवर्ग का चारण बनाने की कोशिश करती हैं। ऐसे में गरीब-मेहनतकशों के बीच से उभरे कलाकार जब सामाजिक भेदभाव, उत्पीड़न, आर्थिक शोषण, भ्रष्टाचार, प्राकृतिक संसाधनों की लूट और राज्‍य-दमन के खिलाफ जनता के लोकतांत्रिक अधिकारों के पक्ष में प्रतिरोध की संस्कृति रचते हैं, तो उन्हें अपराधी करार दिया जाता है। कबीर कला मंच के कलाकार भी इसीलिए गुनाहगार ठहराए गए हैं।

शीतल और सचिन ने एटीएस के आरोपों से इनकार किया है कि वे छिपकर माओवादियों की बैठकों में शामिल होते हैं या आदिवासियों को माओवादी बनने के लिए प्रेरित करते हैं। दोनों का कहना है कि वे डॉ. बाबा साहेब अंबेडकर, अण्णा भाऊ साठे और ज्योतिबा फुले के विचारों को लोकगीतों के माध्यम से लोगों तक पहुंचाते हैं। सवाल यह है कि क्या इस देश में अंबेडकर या फुले के विचारों को लोगों तक पहुंचाना गुनाह है? क्या भगतसिंह के सपनों को साकार करने वाला गीत गाना गुनाह है?

संभव है शीतल साठे और सचिन माली को भी जमानत मिल जाए, पर हम सिर्फ जमानत से संतुष्ट नहीं है, हम मांग करते हैं कि कबीर कला मंच के कलाकारों पर लादे गए फर्जी मुकदमे अविलंब खत्म किए जाएं और उन्हें तुरंत रिहा किया जाए, संस्कृतिकर्मियों पर आतंकवादी या माओवादी होने का आरोप लगाकर उनकी सामाजिक-सांस्कृतिक गतिविधियों को बाधित न किया जाए तथा उनके परिजनों के रोजगार और सामाजिक सुरक्षा की गारंटी की जाए।

महाराष्ट्र में इसके पहले भी भगतसिंह की किताबें बेचने के कारण बुद्धिजीवियों को पुलिस द्वारा परेशान करने की घटनाएं घटी हैं। 2011 में मराठी पत्रिका ‘विद्रोही’ के संपादक सुधीर ढवले को भी कबीर कला मंच के कलाकारों की तरह ‘अनलॉफुल एक्टिविटीज प्रेवेंशन एक्ट’ के तहत गिरफ्तार किया गया। इसी तरह झारखंड में जीतन मरांडी लगातार राज्य और पुलिस प्रशासन के निशाने पर हैं। हम पूरे देश में संस्कृतिकर्मियों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हिमायती हैं और मांग करते हैं कि उन पर राज्‍य दमन अविलंब बंद किया जाए।

साथियो, बुद्धिजीवियों-संस्कृतिकर्मियों-छात्रों ने अपने आंदोलनों के बल विनायक सेन से लेकर सीमा आजाद तक को रिहा करने के लिए सरकारों और अदालतों पर जन-दबाव बनाने में सफलता हासिल की। जसम-आइसा ने पटना, इलाहाबाद, गोरखपुर, रांची समेत देश के विभिन्न हिस्सों में शीतल साठे और सचिन माली तथा सुधीर ढवले व जीतन मरांडी की गिरफ्तारी के खिलाफ आवाज उठायी है। महाराष्ट्र सरकार और पुलिस-प्रशासन के जनविरोधी रुख के खिलाफ आइए हम एक मजबूत प्रतिवाद दर्ज करें और अपने संस्कृतिकर्मी-बुद्धिजीवी साथियों के अविलंब रिहाई के आंदोलन को तेज करें।

निवेदक

संगवारी, संगठन, द ग्रुप (जन संस्कृति मंच)

ऑल इंडिया स्टूडेण्ट्स एसोसिएशन (आइसा)


संघ लोक सेवा आयोग में पिछड़े वर्ग, अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति का अलग से साक्षात्कार लिया जाता है । इसे संघ लोक सेवा आयोग ने लिखितरूप से स्वीकार किया है और साथ में यह भी कहा है कि यह भारत सरकार का निर्णय है। यह भी कहा है कि जब तक भारत सरकार का अगला आदेष नहींे आता है तब तक संघलोक सेवा आयोग में आरक्षित वर्ग का अलग से साक्षात्कार जारी रहेगा एवं साक्षात्कार बोर्ड को आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों के जाति व वर्ग की जानकारी साक्षात्कार करते समय दी जायेगी। साक्ष्य हेतु क्लिक करके संघ लोक सेवा आयोग का पत्र पढ़े एवं पढ़कर अपना विचार दें कि क्या जाति व वर्ग पूछना सही है। पिछड़े वर्ग एवं अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोग यदा कदा षोर मचाते हैं कि सवर्ण लोग जो संघ लोग सेवा आयोग में साक्षात्कार बोर्ड में होते हैं वे पिछड़े वर्ग एवं अनुसूचित जाति एवं जनजाति के साथ भेदभाव करते हैं और यह भी कहना की प्रारम्भिक परीक्षा और मुख्य परीक्षा एवं मौखिक परीक्षा तक आरक्षित वर्ग और अनारक्षित वर्ग का खुलासा अन्यायपूर्ण है। मौखिक परीक्षा के बाद आरक्षित वर्ग के उम्मीदवार से जाति प्रमाण पत्र मॉगा जाय और तब अन्तिम सूची का खुलासा किया जाय । मेरा मानना है कि जाति के ठेकेदारों ने समाज का अकल्याण ही अधिक किया है। उन्होंने सदा कोई-न-कोई हथकंडा अपनाकर निरीह जनता को गुमराह किया है, लोगों को उल्लू बनाकर अपना उल्लू सीधा किया है। आज हमारे देश का संपूर्ण समाज जातिवाद के भयानक भुजंग के विषदंश से मूर्च्छित हो गया है । इसका सारा शरीर इसके जहर से स्याह हो गया है। जाति की रस्सी पकड़कर इन दिनों साधारण प्रतिभाहीन व्यक्ति भी ऊॅचे-ऊॅचे पदो के पहाड़ों पर चढ़े जा रहे है। जिनके भुजदंड में शक्ति नहीं, जिनके मानस में बल नहीं, वे इस जाति की पूॅछ पकड़कर वैतरणी पार कर जाना चाह रहे है। इसलिए दिनकरजी ने ठीक ही लिखा है- जाति-जाति रटते जिनकी पूजी केवल पाषंड। जाति-जाति का शोर मचाते केवल कायर और कूर। कुछ लोगों का कहना है कि जाति-प्रथा हमारे देश में सनातन काल से चली आ रही है, किंतु उन्हें यह भी स्मरण रखना चाहिए कि जाति का निर्माण गुण और कर्म के आधार पर हुआ था (चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः-गीता)। भगवान बुद्ध और महावीर ने भी कहा कि मनुष्य जन्म से ही नहीं, वरन् कर्म से ही ब्राह्मण या शूद्र होता है। कबीरदास ने ठीक ही कहा है कि हर मनुष्य में एक ही रक्त-मांस-मज्जा है, उसकी उत्पति एक ही ज्योति से हुई है, अतः उसमें ऊॅच-नीच का भेदभाव बरतना ठीक नहीं- एकै बूॅद, एकै मल-मूतर, एक चाम, एक गूदा। एक जाति तें सब उतपना, कौन ब्राह्मण, कौन सूदा।। किंतु, इतना ही नहीं, ब्राह्मणों में भी कान्यकुब्ज सरयूपारीण, मैथिल, शाकद्वीपीय आदि उपजातियॉ बन गई हैं, क्षत्रियों में भी चंदेल, बंुदेल आदि कितने भेद हैं, वैश्यों में भी कितने प्रकार है और शूद्रों के तो अनगिनत भेद हैं। जाति के भीतर जाति और इनमें आपसी कलह ओर वैमनस्य, झगड़े और टंटे। अपने ही भाई-बंधुओं को नीचा ठहराकर अपमानित किया है for details: www.rajeshyadav.net


Sunder Singh Mulayam Singh aur Mayawati dono hi jati aur dharm ki rajniti katre h,ek musalmano ki dusri dalito ki, dono hi is desh ki janta ko bewakuph banakar satta ka sukh bhogte h, dono hi bharsth h dono par hi aay se jayada sampti ka mukdma chal raha, dono ne hi congres ki galat nitiyo ka sath diya h CBI ke dar se , kendar ki sarkar ko bachane ke liya dono ne hi sodebaji kar paisa kamaya h agar ye kaha jaye ki asli sampardayak to Mulayam singh aur Mayawati aur congres h BJP to galat nahi hoga.

सुंदर सिंह जी आप जो कुछ कह रहे हैं - यदि सब सही है तब भी- क्या कभी भी प्रदेश या देश को ऐसा कोई नेता मिला जिसे अपनी जाती से दुश्मनी रही हो। ये तो आये ही इसीलिए हैं कि सदियों से शोषित और पिछड़े हुए लोगों के लिए काम करें जो अब तक के - गैर जाती के लोगों ने देश को चूस कर खोखला कर दिया है . आपको दर्द हो इससे बदलाव तो नहीं रूकेगा . आप कृपया इन दोनों को साथ लाने में अपना योगदान दें जिससे आपकी बातों को और गति मिले . क्या आप जानते हैं देश को कौन लूट रहा है . यदि नहीं तो इस लिंक पर जाकर सुन लें।साधुबाद -

सपा को भारी पड़ेगा महापुरुषों का अपमान: मायावती

लखनऊ/ब्यूरो | अंतिम अपडेट 29 जुलाई 2013 12:04 AM IST पर


samajwadi party may outweigh humiliation of great men says mayawati
बसपा सुप्रीमो मायावती ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पर जनता को गुमराह करने के लिए झूठ बोलने का आरोप लगाया और सपा सरकार को घोर जातिवादी मानसिकता वाली बताया।
मायावती ने दलित संतों, महापुरुषों के स्मारकों और संग्रहालयों के निर्माण को फिजूलखर्ची बताने की कड़ी भर्त्सना की।
पत्रकार वार्ता में मायावती ने कहा कि सपा एक साजिश के तहत झूठा प्रचार कर रही है कि बसपा सरकार ने कोई मेडिकल कॉलेज नहीं बनाया।
माया ने कहा, 'दलित महापुरुषों के स्मारक, पार्क काफी लोकप्रिय हो चुके हैं। सरकार को इनके टिकट से अच्छी आय हो रही है। ये पर्यटन स्थल के रूप में विकसित होते जा रहे हैं। समाज में दबे-कुचले लोगों के लिए ये श्रद्धास्थल हैं। इस पर खर्च को फिजूलखर्ची करार देना राजनीतिक दुर्भावना का प्रमाण है।'
बसपा सरकार में कन्नौज, जालौन व सहारनपुर में मेडिकल कॉलेज, झांसी में पैरा मेडिकल कॉलेज, फैजाबाद व मिर्जापुर मंडल मुख्यालय पर अतिविशिष्ट सुविधा वाले चिकित्सालय व निजी क्षेत्र के सहयोग से लखनऊ, आगरा, बिजनौर, आजमगढ़, अंबेडकरनगर व सहारनपुर में सुपर-स्पेशियलिटी वाले अस्पताल खोलने जैसे काम किए गए।
नोएडा के जिला अस्पताल के उच्चीकरण और ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण द्वारा एक नया अस्पताल स्थापित करके 200-200 बेड के दो उच्चस्तरीय डॉ. भीमराव अंबेडकर मल्टी-स्पेशियलिटी अस्पताल शुरू कराने का काम किया। 
मगर अब सपा सरकार इसका वैसे ही श्रेय लेने की कोशिश कर रही है जैसे दिल्ली से आगरा तक अत्याधुनिक यमुना एक्सप्रेस-वे का उद्घाटन करके लेने की कोशिश की थी।
उन्होंने बीएसपी के भाईचारे में जातिवाद को बढ़ावा देने के सपा के आरोप की आलोचना करते हुए कहा कि यह सपा की घोर जातिवादी मानसिकता व राजनीति से प्रेरित बयान है।
उन्होंने ब्राह्मणों ने जिस तरह इस भाईचारे को मजबूती दी है, उससे सपा की बेचैनी बढ़ गई है।
'सच बर्दाश्त नहीं कर पा रहे तो कुर्सी छोड़ें'
इधर, बसपा के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्र ने कहा कि यदि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को प्रदेश की कानून-व्यवस्था का सच बर्दाश्त नहीं हो पा रहा है तो उन्हें पद से खुद ही इस्तीफा दे देना चाहिए।
मिश्र ने कहा कि मुख्यमंत्री यदि कानून-व्यवस्था के आरोप से बचना चाहते हैं तो फिर उन्हें प्रदेश के गुंडों, बदमाशों और आपराधिक तत्वों को सलाखों के पीछे भेजना होगा। जब तक वह ऐसा नहीं करते बसपा सूबे में राष्ट्रपति शासन की मांग करती रहेगी।

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