बुधवार, 27 मार्च 2013

बदलाव

सभी दलों से दलित पिछड़े खींचे चले आयेंगे जो नहीं आये तो जनता उन्हें धकेल कर किनारे कर देगी .
बदलाव के प्रासेस में स्वाभाविक है मेरी बात नेताओं को भी ठीक न लगे पर है ये जरूरी, इसे आम आदमी से लेकर सारे  बुद्धिजीवी पसंद करेंगे . क्या दिक्कत है ये नेता सत्ता क्यों नहीं चाहते . क्यों ये सत्ता में बैठे चोरों और अपराधियों के शिकंजे में ये जकडे रहना ही पसंद करते हैं, इस मकड जाल को तोड़कर
आओ गले लग जाओ 'राजनीती में कोई अछूत और दुश्मन नहीं होता' तो आप भी अपना हठ  छोडो और "गाँठ" जोड़ो, बनाओ गठबंधन और पुरे देश में अपनी सत्ता फैलाओ, पुरे देश के बुद्धिजीवी आपका इंतज़ार कर रहे हैं पुरे देश की अवाम आपको दिल्ली का ताज -2014 में  सौपना चाहती है.
सभी दलों से दलित पिछड़े खींचे चले आयेंगे जो नहीं आये तो जनता उन्हें धकेल कर किनारे कर देगी .

कब तक हम महापुरुषों का नाम लेकर भाग्य की माला जपते रहेंगे उन्होंने उस समय के समाज को चुनौती दी थी तभी वो आगे बढे, अब की तरह नहीं की बगैर संघर्ष के नहीं मिलने वाला कुछ। कांशीराम ने इस सदी में ही अपने संघर्षों से सत्ता प्राप्त करने का मंत्र दिया, पर मायावती को गलत फहमी हो गयी की उन्हें यह सत्ता 'ब्राह्मणों ने दी' यही गलती 'नेताजी को है की उन्हें सत्ता सवर्णों ने दी है। 

सामाजिक बदलाव के इस स्वरुप से ही असली बदलाव होगा, किसी को देश से निकालने की जरूरत नहीं है सबको 'इमानदारी और जिम्मेदारी से काम करने की व्यवस्था दलित और पिछड़े ही दे सकते है.' सदियों से शोषक जातियां अपने समुदाय के हित के लिए 'राष्ट्र' हित को नकारकर समुदाय हित के चलते 'बहुसंख्य' आबादी को तमाम सुबिधाओं से बंचित रखती हैं।

एकतरफ देश में बेरोजगारी आसमान छू रही है दूसरी तरफ ये अपनी चौधराहट में बिदेशी कंपनियों को खुली छुट देकर देश को कंगाल और रोजगार बिहीन बनाकर 'मंनरेगा' और न जाने कितने तरह के 'भिक्षा अभियान' को बढ़ावा  रहे हैं।  

यदि इनके पास योजना नहीं है तो इन्हें राज करने का कोई अधिकार ही नहीं है, ये केवल पूंजीपतियों के लिए योजना तैयार करते हैं और तमाम आवादी को मजदूर बनाकर रखते हैं।

अतः अब योजना ऐसी बनानी चाहिए जिसमें जनोपयोगी रोजगार को बढ़ावा मिले असमान पूंजी की भण्डारण व्यवस्था पर रोक लगे, प्रतिस्पर्धा का साफ़ सुथरा मानक लागू हो .

आइये इन्हें लागू कराने के लिए एकजूट हों 
और नेत्रित्व को तैयार करें .




बहुत हो चुकी है बदमाशी 
बंद करों अब खेल सियासी !

बदलाव आज की नहीं सदियों की जरूरत रही है, जिसे भाग्य और जाती धर्म के नाम पर अलग करके एक दुसरे से लड़ाया गया है, बांटे रखा गया है, वस्तुनिष्ठ तरीके से चलाया गया है .


बदलाव


एक पोस्टर सीरिज शुरू कर रहा हूँ, सामजिक न्याय की अधूरी पड़ी लड़ाई के लिए आशा है आप इसे आगे बढ़ाएंगे  और  अपने बहुमूल्य विचारों को भी इसमें प्रेषित कर 'आन्दोलन' का रूप देने में मददगार बनेंगे .
सादर 
डॉ . लाल रत्नाकर 
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2014 के बदलाव के लिए पहल तो करनी होगी जरूरी नहीं की कौन कर रहा है। ये तो हर प्रबुद्ध व्यक्ति सोचता है जानता भी है की यदि ये हठधर्मिता त्याग कर समाज निर्माण का संकल्प लें तो देश की तस्वीर बदल जाए। दोनों की अपनी अच्छाइया  हैं उसका समाज को लाभ मिलना ही चाहिये।
आईये इस पहल को आगे बढायें।