गुरुवार, 27 जून 2013

सामाजिक बदलाव का यह रूप

प्रदेश में ब्राह्माणों-दलितों का सबसे ज्यादा उत्पीड़न
 बसपा का ब्राह्माण समाज कार्यकर्त्ता सम्मेलन
जागरण संवाद केंद्र,गाजियाबाद
बहुजन समाज पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव व राज्यसभा सदस्य सतीश चंद्र मिश्र ने कहा कि सपा शासन में तेजी से अपराधों का ग्राफ बढ़ रहा है। हर वर्ग परेशान है, खास तौर से ब्राह्माणों एवं दलितों का सर्वाधिक उत्पीड़न हो रहा है। सपा के डेढ़ वर्ष के कुशासन में पांच हजार से अधिक हत्याएं, साढ़े नौ हजार से अधिक दुष्कर्म, लूट एवं डकैती की घटनाएं हो चुकी हैं।
वह सोमवार को पार्टी द्वारा घंटाघर रामलीला मैदान में आयोजित ब्राह्माण कार्यकर्ता सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि प्रदेश में ब्राह्माणों को सबसे अधिक सम्मान बसपा में मिला है। 2002 में जिस समय उन्हें मायावती ने प्रदेश का महाधिवक्ता बनाया था, उस दौरान उन्होंने वायदा किया था कि पार्टी हमेशा ब्राह्माणों का सम्मान करेगी। वायदे के अनुरूप मायावती ने अपने शासन में 30 से अधिक ब्राह्माणों को महत्वपूर्ण पद दिए। आज भी ब्राह्माणों को सबसे अधिक सम्मान बसपा में ही मिलता है। इस अवसर पर उन्होंने भाजपा पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा कि भाजपा ने ब्राह्माणों को सिर्फ वोट बैंक के रूप में ही प्रयोग किया।
सम्मेलन में उन्होंने कहा कि प्रदेश में ब्राह्माणों की संख्या 16 फीसद है, लेकिन अभी तक यह समाज बिखरा है। अब जरूरत है तो एकजुट होकर अपनी ताकत का अहसास कराने का। उन्होंने बताया कि 4 मई से शुरू हुए ब्राह्माण सम्मेलन का यह 25 वां सम्मेलन है। अभी दस सम्मेलन बाकी हैं। उन्होंने बगैर नाम लिए भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पर हमला करते हुए कहा कि एक बार वह जहां से जीतते है अगला चुनाव वहां से नहीं लड़ते हैं।
इस अवसर पर प्रदेश के पूर्व उर्जा मंत्री रामवीर उपाध्याय ने अपने छोटे भाई व गाजियाबाद से बसपा के लोकसभा प्रत्याशी मुकुल उपाध्याय को चुनाव जीताने की अपील की। मुकुल उपाध्याय ने कहा कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने चुनाव के दौरान बड़े-बड़े विकास के वायदे किए थे, लेकिन वायदे तो दूर जनता का उनसे मिलना भी असंभव है।
इस अवसर पर सांसद ब्रजेश पाठक, विधायक सुरेश बंसल, अमरपाल शर्मा, वहाब चौधरी एवं जाकिर अली के अलावा जिला अध्यक्ष रामप्रसाद प्रधान, सुबोध पाराशर, डा.अविनाश शर्मा, धनी राम, गोरे लाल जाटव, विनोद हरित, मुकेश जाटव, विनोद मिश्र, मुकेश त्यागी, महेश शर्मा, अशोक शर्मा, विनोद शर्मा सहित अन्य लोग उपस्थित थे।
......................................................................
(प्रासंगिक विश्लेषण)
अवसरवाद का अजीबो गरीब तरीका
लम्बे समय के ब्राह्मणों के स्वार्थ और संग्रहण के स्वाभाव से जब ब्राह्मणों को लोग पहचान गए की ये कितने अवसरवादी और चतुर हैं तो लम्बे समय से इनके साथ रह रहा दलित समुदाय ने भी  इसका विरोध किया। और इनकी स्वाभाविक फासीवादी कांग्रेस पार्टी आसमान से फर्श पर आ गयी दलितों के अपने संगठन ने यह दिखा दिया की अब हम तुम्हारे भरोसे नहीं हैं हम अपनी सरकार बना सकते हैं, अपने समीकरण के साथ जा सकते हैं और शुरुआत भी की इन्होने कांशीराम के प्रयासों से सपा और बसपा ने मिलकर चुनाव लड़े उ प्र में 1993 में और इनकी सरकार भी बनी पर इन्हें चैन कहाँ, इन्होने अंडे नहीं इकटठे किये इन्हें तो लगा की मुर्गी के पेट ही फाड़ डालो और वाही किया इन्होने जिससे जो होना था हुआ और अब ये लगते तो राजनितिक लेकिन ये अब राजनीतिग्य नहिं रहे। वही हुआ मारपीट और सत्ता की हिस्सेदारी में बट गए पहले भाजपा वालों ने बहनजी को डोरे डाले सत्ता में साझी किया बात वहां नहीं बनी मामला अलग थलग पड गया। फिर कांग्रेसियों ने मोल भाव किया बात नहीं बनी। फिर मिले ये वकील साहब सतीश मिश्र, सतीश मिश्र जी बड़े अधिवक्ता हो सकते हैं पर कांग्रेस में नहीं, भाजपा में नहीं, केवल बसपा में क्योंकि वहां उनके आका बैठे हैं, यहाँ इनको पूरी लूट की छूट जो है . खूब लूटा प्रदेश को सारा दोष गया बहिन जी के माथे भला हो बाबा साहब के बनाये कानून को कि ये तो सारे पकड़ में आ रहे हैं, नहीं तो इनकी चलती तो मनुस्मृति में एक क्लाज और जोड़ लेते की 'ब्राह्मण अपराधी के रूप में नहीं पकड़ा जाएगा' और उसका अपराध से कोई रोकेगा तो उसे जेल जाना होगा।
ब्राह्मण सम्मेलनों से संभवतः यही सन्देश दे रहे हैं की एकबार इनके साथ आ जाओ फिर आगे किसी के साथ जाने की जरूरत नहीं होगी. ऐसा कानून बनाएंगे की हमारा कोई कुछ विगाड नहीं पायेगा. यही कारण है की सपा भी परेशान है इन ब्राह्मणों को लेने के लिए की कहीं सारे दलित दल में न चले जाएँ, फिर इनके यहाँ हवन पूजन कौन करेगा.
इन दलों का सारा समय इनके आव भगत में ही बीतता नज़र आ रहा है और काम ही नहीं रहा इनके पास जिसे ये सोच विचार से कर सकें, बहन जी से इन्होने लखनऊ में जिस तरह के ब्राह्मण विहार (बौद्ध के नाम पर बनवा रखे हैं) उसका उपयोग तो कालांतर में यही करेंगे क्योंकि महानगरों में कितने दलित और पिछड़े रहते है.

रविवार, 23 जून 2013

ये सरकारें जो कुछ कर रही हैं क्या केवल वोट के लिए ?

पहले की तरह अब सरकारें ओ काम नहीं कर रही है जिसके लिए विभिन्न पद सृजित किये गए थे, अब उन्हें उन लोगों से भरा जा रहा है जिन्हें उसका मतलब ही नहीं पता है, संगीत, ललित कला, लोक कला आदि जैसी  अनेक संस्थाएं उन लोगों से भरी जा रही हैं जिन्हें उन विधाओं से कोई लेना देना नहीं है.

सोमवार, 3 जून 2013

लैपटॉप वितरण

पत्रकारों की गलतफहमियां -

(बहस का सवाल तो तब खड़ा होता जब ये लैपटॉप देकर वोट ले रहे होते, पर इन्होने अपने राजनैतिक घोषणा पत्र में यह बात राखी थी की यदि मेरी सरकार आती है तो मुफ्त में लैपटॉप और टेबलेट देंगे. स्वाभाविक है की यह काम इन्हें करना है इसके लिए इनकी इस तरह निंदा किया जाना की रुपये लुटाये जा रहे हैं जायज नहीं है)

"एक बात और महत्त्व की है की उत्तर प्रदेश जिस तरह की राजनैतिक संकट का शिकार है उससे निजात पाना जरा  ही नहीं  बहुत मुश्किल काम लगता है, सपा की सरकार हो या बसपा की ये राजनैतिक दल उनके वोटो पर खड़े है जो परंपरा से चले आ रहे सत्ता प्रतिष्ठानों से अलग एक अलग राज्य व्यवस्था देने/पाने को लालायित थे.
समाजवादी का नारा था - 'समाजवादियों ने बाँधी गाँठ, पिछड़ा पाए सौ में साठ' और बसपा ने नारा दिया था - जिसकी जीतनी भागेदारी उसकी उतनी हिस्सेदरी, एक और नारा था - ठाकुर बाभन बनिया चोर, इनको मरो जुते चार ! इनका आशय था समाज के वो लोग जो मुख्यधारा से काट दिए गए हैं, उन्हें उम्मीद थी इन विचारधारा की सरकारों के आने से उन्हें मौका मिलेगा पर ऐसा हो नहीं रहा है. आज का संकट अलग तरह का है की इन पार्टियों के मुखियायाओं ने उनकी याचना में लगे हैं जिनसे जनता ने सबकुछ छीन कर इन्हें सौंपा है. और उनकी औलादें इनकी शकल तक नहीं देखना चाहती हैं देखें यह लिंक -http://www.bbc.co.uk/hindi/multimedia/2013/05/130531_laptop_gi_ak.shtml."

डॉ.लाल रत्नाकर 

लैपटॉप पर करोड़ों रुपए लुटाना कितना जायज़?

 मंगलवार, 4 जून, 2013 को 07:18 IST तक के समाचार
अखिलेश यादव
अखिलेश यादव ने लैपटॉप बांटने का सिलसिला राजधानी से शुरू किया.
क्लिक करेंसमाजवादी पार्टी ने उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनावों के पहले एक ऐसा वादा किया जो कम से कम इस प्रदेश के लिए नया था.
मुलायम सिंह की पार्टी ने कहा था कि अगर प्रदेश में उनकी क्लिक करेंसरकार बनती है तो वे कक्षा 10 और 12 पास करने वाले सभी स्कूली बच्चों को मुफ्त में टैबलेट और लैपटॉप देंगे.
भारी बहुमत से प्रदेश में क्लिक करेंअखिलेश यादव की सरकार बनी और अपने कार्यकाल के पहले वर्ष में ही उसने दस हज़ार स्कूली बच्चों को मुफ्त लैपटॉप बांटे.
अभी लाखों बंटने बाकी है और इस पूरी क्लिक करेंयोजना की लागत आने वाली है लगभग तीन हज़ार करोड़ रूपए.
इस योजना के साथ उत्तर प्रदेश भी भारत के उन तमाम राज्यों में शुमार हो चुका है जहाँ विभिन्न राजनीतिक दलों ने क्लिक करेंमतदाताओंको रिझाने के लिए बड़े-बड़े चुनावी वादे किए हैं.

खस्ताहाल

उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश के हजारों गाँव आज भी बिना बिजली के हैं.
लगभग 19 करोड़ की क्लिक करेंआबादी वाले उत्तर प्रदेश को भारत में सबसे ज्यादा जनसंख्या वाले राज्यों में गिना जाता है.
प्रदेश में, बड़े शहरों को छोड़ दें तो, अब भी मूलभूत क्लिक करेंसुविधाओं का अभाव है.

कुछ रोचक चुनावी वादे

तमिलनाडु विधानसभा चुनाव 2011-
डीएमके ने हर परिवार को मुफ्त रंगीन टीवी देने का वादा किया.
उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव 2012-
भाजपा ने हर बीपीएल परिवार को एक गाय मुफ्त देने का वादा किया था.
गुजरात विधानसभा चुनाव
2012-कांग्रेस ने छात्रों के लिए मुफ्त लैपटॉप और टैबलेट देने का वादा किया था.
हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव 2012-भाजपा ने मुफ्त इलेक्ट्रिक इंडक्शन हीटर देने का वादा किया था.
कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2013-भाजपा ने छात्रों को मुफ्त लैपटॉप और टैबलेट देने का वादा किया. गरीब परिवारों को एक रूपए प्रति किलोग्राम की दर से हर महीने 25 किलो चावल देने का भी वादा.
राज्य में जितनी क्लिक करेंबिजली की ज़रुरत है उससे लगभग 14% कम मिल पाती है.
राज्य से गुजरने वाले क्लिक करेंराष्ट्रीय राजमार्गों के अलावा सड़कों को मरम्मत की ज़रुरत है और गांवों में आज भी पक्की सडकें एक सपना है.
प्रदेश के ज़्यादातर क्लिक करेंग्रामीण इलाकों से लोग आज भी इलाज वगैरह के लिए बड़े शहरों की ओर रुख करते हैं.
ऐसे में क्लिक करेंचुनावी वादे के नाम पर हजारों करोड़ खर्च करना कितना जायज़ है?
राजनीतिक विश्लेषक पुष्पेश पंत को लगता है समस्या सोच की है.
उन्होंने बताया, "आज़ादी के कुछ दशक बाद से ही राजनीतिक दलों को लगने लगा था कि मतदाताओं को लुभाने के लिए कुछ नया करना पड़ेगा. हालांकि अभी भी चुनावों के पहले प्रचार में कई तरह के गलत काम होते हैं, लेकिन इस तरह वादों को करना सबसे आसान है. आपका पैसा भी नहीं लगता और काम भी पूरा हो जाता है".

विकास

"लैपटॉप जैसे कीमती चीज़ लोगों को मुफ्त में बांटने का कोई तुक ही नहीं "
प्रशांतो रॉय, आईटी पत्रकार
उत्तर प्रदेश सरकार को लगता है कि विकास की दूसरी चीज़ों पर ध्यान देने के साथ-साथ लैपटॉप और टैबलेट बांटने में कोई गलत बात नहीं है.
अभिषेक मिश्रा समाजवादी सरकार के सबसे व्यस्त मंत्रियों में गिने जाते हैं.
उनका कहना है, "क्या इसका मतलब ये है हम सफाई व्यवस्था पर ध्यान दें और आईटी शिक्षा पर नहीं? क्या हम सिर्फ सड़कों और बिजली पर ध्यान दें और प्रदेश के लोगों को विज्ञान और तकनीकी मामलों में पिछड़ जाने दें? नहीं...हमें दोनों चीज़ों पर बराबर ध्यान देने की ज़रुरत है. प्रदेश में पहले से व्याप्त डिजिटल डिवाइड को और बढ़ने नहीं दे सकते".
वैसे उत्तर प्रदेश से पहले भारत के कई अन्य राज्यों में भी राजनीतिक दलों ने लैपटॉप और कंप्यूटर बांटने के लिए वादे किए हैं.
कुछ ने बांटे भी और कुछ की सरकारें ही नहीं बन सकीं. हालांकि विश्लेषक फिर भी मानते है कि भारत जैसे देश में लैपटॉप जैसी चीज़ को मुफ्त बांटना कारगर नहीं है.
आईटी क्षेत्र के वरिष्ठ पत्रकरों में से एक प्रशांतो कुमार रॉय को ये पहल व्यर्थ लगती है.
उन्होंने कहा, "अगर आप करोड़ खर्च करने जा रहे हैं तो ज़रूरी है तय करना कि उसका उपयोग सबसे ज्यादा किस क्षेत्र में होगा. लेकिन राजनीतिक दल इस सवाल को छूते तक नहीं क्योंकि उनका निशाना सिर्फ अगले चुनावों तक होता है. इसी तरह आम लोगों का पैसा ज़ाया होता चला जाता है."