बुधवार, 28 दिसंबर 2022

अथ भारत जोड़ो यात्रा।

अथ भारत जोड़ो यात्रा।

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भारत जोड़ो यात्रा की तैयारी बैठक में मैं भी था और हमारे साथ बहुत सारे और लोग भी थे जिनमें खास करके दिलीप मंडल प्रोफेसर रतन लाल और माननीय सुनील सरदार जी।

माननीय सुनील सरदार जी ने भारत जोड़ो यात्रा के महाराष्ट्र प्रखंड में अपना यात्रा कर समय दिया मेरे ख्याल से बाकी हम लोग अभी प्रतीक्षा में है की यात्रा में कहां से शरीक हों।

भारत जोड़ो यात्रा इस समय अवकाश पर है और इसके नायक चर्चा में, दवे मन से जो बातें आ रही हैं उनमें 2024 का चुनाव बहुत महत्वपूर्ण है।

अब सवाल यह है कि इस यात्रा का और चुनाव से क्या ताल्लुक है। फिर हमें बहुत सारी यात्राओं पर नजर डालनी होगी, कि उनके पीछे यात्रा का उद्देश्य क्या था।

इस यात्रा में राहुल जी बार-बार कहते हैं कि इसका राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है बल्कि वह यात्रा पर इसलिए निकले हैं की एक तपस्या कर सकें।

निश्चित रूप से वह आधुनिक तपस्वी दिख रहे हैं जब दिल्ली में कड़ाके की ठंड पड़ रही हो और अपनी उसी शर्ट में जिसको भक्तों ने बहुत ही महत्वपूर्ण बना दिया था पहनकर दिल्ली में अनेकों स्मृति स्थलों पर भ्रमण कर रहे हैं। और उनकी यह छवि लोगों को आश्चर्यचकित भी कर रही है कि इतनी ठंड में और टीशर्ट में, हो सकता है कि भक्तों के भीष्म पितामह जरूर कोई ना कोई उस टी-शर्ट में आविष्कार कर दे जिससे दूर दूर तक ठंड का नामोनिशान ना हो।

राहुल जी की तपस्या जारी है और आगे की यात्रा की तैयारी है जनता भी मन बना रही है जिसके लिए भक्तों का केंद्र चिंतित भी है।

लेकिन एक मजे की बात यह है कि इस यात्रा में जिन लोगों ने सहयोग किया है उनमें से बहुत सारे चेहरे जिनके सच को समझना निश्चित रूप से आज की राजनीति और पाखंड अंधविश्वास जुमले से मुकाबला है ऐसे में कान को इधर से पकड़िए या कान को उधर से पकड़िए है यह गहरी राजनीती का खेल।

इसको इस रूप में भी देखा जा सकता है कि भारतीय समाज जिस तरह से वर्ण व्यवस्था में बांटा गया है उसी के अनुरूप उसकी आर्थिक सामाजिक शैक्षिक राजनीतिक और व्यवसायिक हैसियत भी सुनिश्चित हो गई है। 

इसलिए हमें इस पर गंभीरता से विचार करना होगा कि क्या आपके पास वैज्ञानिक संस्थान हैं जहां से इन विषयों पर विमर्श हो सके । क्योंकि जब विमर्श का केंद्र, केंद्र की धुरी किसी विशेष विचारधारा को हस्त गत हो गई हो, जिसके लिए मुख्य रूप से भारतीय अवाम जो अज्ञानता के आनंद लोक में गोते लगाती रहती है के रूप में भी देखा जा सकता है। हमने महसूस किया है कि इस भारतीय राजनीति की जो चाबी है वह अब बहुत ही चालाक किसके लोगों के हाथ में पहुंच गई है क्योंकि लोकतंत्र मशीनों से तय नहीं होता लोगों की शिक्षा और अधिकार से जुड़ा हुआ मुख्य सवाल लोकतंत्र बनाने में आवश्यक होता है। जब चंद प्रलोभनों में भारतीय मतदाता को बहलाया फुसलाया जाता है तब ऐसा प्रतीत होता है जैसे उसके भविष्य के लिए व्यवस्था चिंतित है।

लेकिन होता इसके उल्टा है क्योंकि जनता के विकास और समृद्धि से सत्ता में बैठे हुए लोगों की कभी कोई रुचि नहीं दिखाई दी अन्यथा आज का भारत इस तरह का भारत ना होता।

बाबासाहेब आंबेडकर ज्योतिबा फुले ई वी रामास्वामी पेरियार के साथ-साथ अन्य तमाम उन विचारकों का भारत होता जो समता समानता और बंधुत्व से अभीसिंचित होता। दुर्भाग्य है कि हम ऐसा भारत बनाने में सफल नहीं हो पाए।

अंत में यही कहा जा सकता है कि राहुल गांधी का भारत जोड़ो यात्रा अभियान क्या इन तमाम सवालों को लेकर भारत के अब तक के योजना कारों की गलतियों और वर्तमान के अहंकार को पुनः स्थापित करने में सफल हो सकेंगे। यही प्रमुख सवाल है जिस से दो-चार होना पड़ेगा 2024 से पहले।

डॉ लाल रत्नाकर