सामाजिक स्वरूप

यूपी: पूर्व विधायक की मौत, बेटों के पास कफन के पैसे नहीं

बहराइच/ब्यूरो | अंतिम अपडेट 10 जुलाई 2013 2:17 AM IST पर
former mla dead in up
उत्तर प्रदेश जिला अस्पताल बहराइच में रविवार को कई घंटे तड़पने के बाद भर्ती किए गए इकौना के पूर्व विधायक भगौती प्रसाद का मंगलवार को निधन हो गया। वह सांस और पेट की बीमारियों से पीड़ित थे।
मुफलिसी में जीवनयापन करने वाले पूर्व विधायक के बेटों के पास उनके कफन तक के लिए भी पैसे नहीं हैं। आज की चकाचौंध सियासत की तस्वीर के आगे भगौती प्रसाद की वैचारिक राजनीति की दास्तां बेहद मार्मिक रही।
70 के दशक में दो बार विधायक रहने के बाद भी उन्हें 10 साल तक चाय और चने बेचकर पेट की आग बुझानी पड़ी।
1967 और 1969 में दो बार जनसंघ के टिकट पर इकौना के विधायक रहे भगौती प्रसाद को रविवार को जिला अस्पताल बहराइच लाया गया था। पहले तो अस्पताल प्रशासन ने उन्हें डेढ़ घंटे तक भर्ती नहीं किया और वह फर्श पर ही तड़पते रहे।
मीडिया में जब बात आई तो डॉक्टरों ने उन्हें भर्ती तो किया लेकिन इलाज में हीलाहवाली जारी रखी। सोमवार को पूर्व विधायक को छह घंटे तक खून के लिए तरसना पड़ा।
घंटों पीड़ा से गुजरने के बाद उन्हें एक यूनिट ब्लड मिला और इलाज शुरू हुआ। लगातार मीडिया में खबरें आने पर अस्पताल प्रशासन सजग हुआ। मंगलवार को उनका ऑपरेशन किया जाना था लेकिन सुबह चार बजे अचानक सांस की समस्या गंभीर हो गई।
डॉक्टरों ने ऑक्सीजन चढ़ाकर उन्हें बचाने की कोशिश की लेकिन दोपहर 12:30 बजे पूर्व विधायक ने दम तोड़ दिया। पूर्व विधायक के बड़े बेटे राधेश्याम का कहना है कि उनके पिता गांधीवादी विचारधारा के थे।
ईमानदारी से पूरा जीवन जिया। 1990 से परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी खराब हो गई थी कि पिता को चने और चाय बेचकर गुजारा करना पड़ा। बेटों का कहना है कि उनके पास इतने रुपये भी नहीं कि पिता के कफन का इंतजाम कर सकें।

जातियों का दर्जा बदलने से क्या होगा
बद्री नारायण, गोबिन्द बल्लभ पंत सामाजिक विज्ञान सस्थान


उत्तर प्रदेश की सरकार अन्य पिछड़ी जातियों, यानी ओबीसी की श्रेणी में आने वाली 17 जातियों, जैसे कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर वगैरह को अनुसूचित जाति की श्रेणी में शामिल किए जाने का प्रस्ताव केंद्र को भेजने जा रही है। समाजवादी पार्टी ने इसके पहले इन जातियों को अनुसूचित जाति की श्रेणी में शामिल कर लिया था। लेकिन यह निर्धारित करने का अधिकार केंद्र सरकार के पास है, इसलिए हाईकोर्ट ने इस पर रोक लगा दी। इसके पहले मायावती की सरकार ने भी इन जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने की सिफारिश केंद्र सरकार को भेजी थी, इसके साथ ही उनका यह सुझाव भी था कि अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण कोटा आठ प्रतिशत और बढ़ा दिया जाए।
जातियों की श्रेणी बदलने की यह राजनीति समाजशास्त्र के लिहाज से काफी दिलचस्प है, इसलिए भी कि पहले के समाज में इसका एकदम उलटा होता था। प्रसिद्ध समाजशास्त्री एमएन श्रीनिवास ने जब अपने अध्ययनों में ‘संस्कृतिकरण’ की प्रक्रिया रुझान देखा था, तब छोटी जातियां उच्च जाति की श्रेणी पाने को बेताब थी। तब शायद समाज राज्य से ज्यादा शक्तिशाली संस्था थी। तब राज्य से मिलने वाला आकर्षण शायद इतना ज्यादा नहीं था। लोग राज्य से मिले अवसरों के मुकाबले जाति विभाजित समाज में सामाजिक प्रतिष्ठा को अधिक महत्व देते थे। तब भारतीय गांवों में एक कहावत कही जाती थी, ‘उत्तम खेती मध्यम बान, निसिद्ध चाकरी भीख निदान’ यानी किसानी सबसे उत्तम काम है, व्यापार मध्यम दर्जे का काम है और नौकरी निचले दर्जे का काम। पर अब नौकरी को ही श्रेष्ठ और प्रतिष्ठा वाला काम माना जाने लगा है। कृषि एक ऐसा काम बन गई है, जिसमें कोई लाभ नहीं। ऐसे में, वे श्रेणिया महत्वपूर्ण हो गई हैं, जिनमें नौकरी आसानी से मिल सके। इसीलिए अब नीचे की श्रेणी पाने की लड़ाई कई मध्य व अति पिछड़ी जातियों में देखने को मिल रही है, क्योंकि इन नीचे की श्रेणियों से आरक्षण का लाभ जुड़ा हुआ है।
इस प्रक्रिया को सत्ता के संरक्षण से जुड़ी श्रेणियों में जाने की चाह के रूप में देखा जाना चाहिए। कोई पिछड़ों से अति पिछड़ों में जाना चाहता है, कोई अति पिछड़ों से अनुसूचित जाति में और अनुसूचित जाति से जनजाति में। इस ‘आवाजाही’ का राजनीतिक अर्थशास्त्र बहुत रोचक है। इस राजनीतिक अर्थशास्त्र को समझने के लिए एक नजर मुसहर, नट, कंजर, बांसफोर जैसी जातियों पर डालते हैं, जिनकी गिनती अनुसूचित जाति की श्रेणी में होती है, लेकिन ये जातियां अपने लिए अनुसूचित जनजाति की श्रेणी चाहती हैं। हाल ही में बनारस के पास इन जातियों का एक बड़ा सम्मेलन हुआ था, जिसमें यही मांग सबसे प्रमुख थी। वहां तर्क यह था कि अनुसूचित जाति श्रेणी की कुछ बड़ी और प्रभावी जातियां ज्यादातर फायदों को हड़प लेती हैं। इसी के साथ उनका दूसरा तर्क यह भी है कि वे पहले वनवासी जातियां रही है। उनमें वनवासी दक्षता ज्यादा है, उस दिशा में वे ज्यादा विकसित हो सकती है। लेकिन उनका मुख्य एतराज यही है कि ज्यादा फायदे क्रीमीलेयर को मिल रहे हैं। आरक्षण का ज्यादा फायदा न मिल पाने की समस्या उत्तर प्रदेश की 66 दलित जातियों में से लगभग 62 जातियों की है। ये सभी छोटी संख्या वाली दलित जातियां हैं। एक तो इनकी संख्या कम है, दूसरे, शिक्षा से इनका जुड़ाव ज्यादा नहीं है।
इनमें से अनेक अभी भी अपने पारंपरिक व्यवसाय तक सीमित हैं। इन्होंने अपने पेशे को डायवर्सिफाई और आधुनिक नहीं बनाया। इनमें 12वीं पास युवक भी काफी कम मिलेंगे। नौकरी पेशा तो और भी कम हैं। सरकारी योजनाओं के फायदे भी इन तक नही पहुंच पाते, क्योंकि इनमें शिक्षित के साथ ही इनके हितों की राजनीति करने वाले लोग भी काफी कम हैं। इनमें से कई तो समाज में रहते हुए भी सामाजिक चिंता और जनतांत्रिक विमर्श का हिस्सा नहीं है। ये समाज में रहते हुए भी समाज में अदृश्य हैं। अक्सर डीएम, एसडीएम, बीडीओ जैसे सरकारी अधिकारियों को पता भी नहीं होता कि ये जातियां भी देश की ऐसी प्रजा हैं, जिन तक विकास के लाभ पहुंचने चाहिए। पिछले दिनों कौशांबी जिले के एक सरकारी अधिकारी से बात करते हुए यह लगा कि उन्हें इस बात का एहसास भी नहीं कि उसके आवास से कुछ किलोमीटर बाद ही मुसहरों का बसाव है। ऐसे में, सिर्फ श्रेणियां बदलने से क्या होगा? पहली जरूरत तो यह है कि उन्हें उनकी पहचान मिले और सरकार से मिलने वाले फायदे उन तक पहुंचे।
एक तरफ तो ये फायदे उन तक नहीं पहुंचते, दूसरी तरफ बाजार और आधुनिकता उनके पारंपरिक व्यवसायों को अप्रासंगिक बना रहे हैं। मसलन किसी जमाने में बांस से सूप, डलिया, चगेली, वगैरह बनाकर अपना जीवन निर्वाह करने वाली जातियों का पेशा आज संकटग्रस्त है। बाजार में प्लास्टिक के पत्तल आ गए हैं। बांस महंगे हो गए हैं। बांस के जंगल भी कम हुए हैं। उनकी बिक्री दलालों के हाथ में आ गई है। ये जतियां अभी अपने जातीय सम्मान, अस्मिता की चाह नहीं विकसित कर पाई हैं। ये अभी उस धरातल पर नही आ पाई हैं, जहां से अपनी राजनीति और विकास की प्रबल आकांक्षा अभिव्यक्त कर पाएं।
ये जातियां अभी जनतंत्र के दरवाजे से काफी दूर खड़ी हैं। लोकतंत्र से देश में जो व्यवस्था बनी है, वह अभी उनके सशक्तीकरण के लिए कुछ नहीं कर सकी। जरूरत है कि ये जातियां लोकतंत्र में अपनी राजनीतिक उपलब्धि का एहसास कर सकें। ऐसे में, श्रेणी बदलने से ज्यादा जरूरी है कि ये समूह अपने भीतर वह संभावना और शक्ति विकसित करें, जो उन्हें जनतंत्र में मूल्यवान बना सके। हालांकि, प्रसिद्ध उत्तर-आधुनिक चिंतक देरिदा ने एक जगह कहा है कि ‘आवाज मात्र ही समूहों की उनकी उपस्थिति साबित करने की गारंटी नहीं देती।’ उसके साथ अन्य तत्वों को जोड़ना होगा। ताकि उनकी आवाज में दूसरों की आवाज मिलकर उनकी आकांक्षा को गलत ढंग से प्रस्तुत न कर सके। इसके लिए बहुत जरूरी है कि विकास की चाह के साथ उनके भीतर वे आवश्यक तत्व विकसित हों, जो उन्हें ‘राजनीतिक’ बना सके। विकास के साथ ही सम्मान की चाह भी पनपती है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
(इस लेख में कुछ महत्त्व के विन्दुओं को छोड़ दिया गया है जैसे जिस शासक वर्ग की यह जिम्मेदारी थी उसने इसे पूरा ही नहीं किया, आज भी वह इनकी समस्यायों की बजाय उनका ध्यान रखता है जिनकी वजह से यह समस्याएं खड़ी हुयी है. -डॉ.लाल रत्नाकर) 
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जाति के आगे टूट गई जीवन की डोर

Meerut | अंतिम अपडेट 30 अप्रैल 2013 5:30 AM IST पर
बहसूमा/ हस्तिनापुर। हस्तिनापुर क्षेत्र के शकुंतला कालोनी निवासी प्रेमी युगल राजन और तानिया की मौत की गुत्थी अब भी उलझी हुई है। हालांकि पुलिस ने मौत को आत्महत्या मानते हुए केस दर्ज कर लिया है पर आसपास के लोग इसे हत्या मान रहे हैं। इसकी एक वजह तो यह है कि दोनों अलग जाति से थे और परिजन इनकी शादी के लिए राजी नहीं थे। वहीं, चार दिन से दोनों के लापता होने के बाद भी इसकी सूचना पुलिस को नहीं दी गई।
राजन और तानिया हस्तिनापुर स्थित एक कालेज में बीए की पढ़ाई कर रहे थे। कालेज में ही दोनों में प्यार हुआ था। वे शादी करना चाहते थे। तानिया जाटव बिरादरी से थी, इस कारण उसके परिजन राजन वाल्मीकि से उसकी शादी करने के लिए तैयार नहीं थे। सोमवार सुबह दोनों के शव हस्तिनापुर निवासी अजित सिंह के ईख के खेत में पड़े मिले। तानिया के सिर पर और राजन के कनपटी पर गोली के निशान पाए गए। सीओ मवाना समेत हस्तिनापुर और बहसूमा थाने की पुलिस मौके पर पहुंची। शव की शिनाख्त करने के बाद पुलिस ने शवों को मोर्चरी भेजा। पुलिस ने मौके से एक खोखा और तमंचा मृतक राजन के हाथ से बरामद किया।
हत्या की आशंका
पुलिस का मानना है कि राजन ने तानिया के सिर पर गोली मारकर खुद का भेजा उड़ाया होगा। लेकिन कई तथ्य पुलिस की राय प्रश्नचिह्न लगा रहे हैं। लोगों में चर्चा है कि दोनों की हत्या करने के बाद बड़ी सफाई से लाश को ठिकाने लगाया गया है। वहीं, सीओ डीपी सिंह का कहना है कि मामला आत्महत्या का लग रहा है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बाद ही कुछ कहा जा सकता है।
ये हैं सवाल
तानिया का शव राजन के ऊपर पड़ा मिला है। जब तानिया को पहले गोली लगी तो वह राजन के शव के ऊपर कैसे पाई गई।
तानिया का पिता सरजीत हस्तिनापुर थाने में होमगार्ड है। चार दिन पहले इकलौती बेटी के लापता होने पर भी उसने थाने में जानकारी नहीं दी। राजन के परिजनों ने भी पुलिस को कोई सूचना नहीं दी।
घटनास्थल पर छानबीन के दौरान पुलिस को बाल भी मिले हैं।
दोनों के शव तीन दिन पहले के बताए जा रहे हैं।


परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल
दोनों के शव मिलने की सूचना पर परिजनों में कोहराम मच गया। राजन के परिजन रिश्तेदार के यहां दिल्ली गए थे, वे पुलिस की सूचना पर पहुंचे। परिजन दोनों की मौत के बारे में कुछ बोलने को तैयार नहीं है।
कंप्यूटर की क्लास करने गई थी तानिया
तानिया तीन दिन पहले कंप्यूटर की क्लास करने बहसूमा गई थी। इसके बाद से उसका कोई सुराग नहीं लगा। मंगलवार को उसका एग्जाम होना था।
सीमा विवाद में उलझी दो थाने की पुलिस
प्रेमी युगल का शव हस्तिनापुर और बहसूमा सीमा पर पड़ा मिला। सीमा विवाद को लेकर दोनों थाने की पुलिस आपस में भिड़ गई। घटनास्थल पर पहुंचे सीओ मवाना ने दोनों थानेदारों को हड़काया। लेकिन जांच करने के बाद ही बहसूमा पुलिस ने अपने क्षेत्र में घटनास्थल स्वीकार किया।
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ऐसा क्यों किया जाता है 'दलितों' पिछड़ों या मुसलामानों के साथ -

दो बार तलाशी लिए जाने पर बिफरीं मायावती

 रविवार, 28 अप्रैल, 2013 को 01:10 IST तक के समाचार
मायावती
चुनाव प्रचार के लिए कर्नाटक गई थीं मायावती
बहुजन समाज पार्टी की नेता क्लिक करेंमायावती ने कर्नाटक में अपनी दो बार तलाशी लिए जाने पर गहरी नाराजगी जताई है.
चुनाव आयोग के 'उड़ान दस्ते' ने चुनाव प्रचार के लिए कर्नाटक गईं मायावती की ये तलाशी ली. मायावती का कहना है कि दलित महिला होने के कारण उनके साथ ऐसा किया है.
स्थानीय पत्रकार भास्कर हेगड़े के अनुसार अधिकारियों का कहना है कि कुछ विशिष्ट लोगों को छोड़ कर जो भी नेता आते हैं उनकी कार या हेलीकॉप्टर की तलाशी ली जाती है.
गुरुवार को गुलबर्ग गए कर्नाटक के मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टर की कार की भी तलाशी ली गई थी.

दोबारा तलाशी पर नाराज

कर्नाटक में 5 मई को होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए अपने उम्मीदवारों के समर्थन में प्रचार करने गईं मायावती का हेलीकॉप्टर जैसे ही गुलबर्ग जिले के जेवारगी में उतरा तो चुनाव आयोग के दस्ते ने उनके हेलीकॉप्टर की तलाशी ली.
इस दौरान उन्हें मायावती के बैग से एक लाख रुपये मिले जिन्हें जब्त नहीं किया गया. दरअसल मायावती ने बताया कि ये पैसे हेलीकॉप्टर में सफर कर रहे उनके समर्थकों के हैं.
"जब इस इलाके में सोनिया गांधी और सुषमा स्वराज चुनाव प्रचार के लिए आईं तो क्या आपने उनकी तलाशी ली. आप इसलिए मेरी तलाशी ले रहे हैं क्योंकि मैं एक दलित महिला हूं."
मायावती, बीएसपी अध्यक्ष
उन्होंने अधिकारियों को ये भी बताया कि नियमानुसार एक व्यक्ति 50 हजार तक की रकम अपने साथ लेकर चल सकता है.
इसके बाद जब मायावती जेवारगी में रैली के लिए बने मंच पर चढ़ रही थीं तो उड़ान दस्ते ने फिर बीएसपी अध्यक्ष और उनकी कार की तलाशी ली. इस पर मायावती बेहद नाराज हो गईं.

मायावती के खिलाफ मामला

अपने भाषण में उन्होंने कहा कि दोबारा तलाशी की क्या जरूरत पड़ी गई.
उनके अनुसार, “जब इस इलाके में सोनिया गांधी (कांग्रेस अध्यक्ष) और सुषमा स्वराज (बीजेपी नेता और लोकसभा में विपक्ष की नेता) चुनाव प्रचार के लिए आईं तो क्या आपने उनकी तलाशी ली. आप इसलिए मेरी तलाशी ले रहे हैं क्योंकि मैं एक दलित महिला हूं.”
गुलबर्ग के उपायुक्त केजे जगदीश ने कहा है कि उड़ान दस्ते ने तलाशी को रिकॉर्ड किया है और वो चुनाव आयोग को इसकी रिपोर्ट भेजेंगे.
भास्कर हेगड़े ने बताया कि गुलबर्ग के जिला मजिस्ट्रेट के अनुसार सरकारी कर्मचारियों के काम में बाधा पहुंचाने के लिए मायावती के खिलाफ मामला दर्ज किया जाएगा.

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अमेरिका में मुझसे हुई बदसलूकी के पीछे खुर्शीद की साजिश: आजम
नई दिल्ली। सपा नेता और उत्तर प्रदेश के शहरी विकास मंत्री आजम खां ने अमेरिका के बॉस्टन एयरपोर्ट पर हुई पूछताछ मामले में विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद पर आरोप जड़ दिए हैं। आजम खां का कहना है कि खुर्शीद के ही इशारे पर उनके साथ अमेरिकी एयरपोर्ट पर बदसलूकी की गई है।
उन्होंने कहा, 'सलमान खुर्शीद ने मेरे खिलाफ साजिश रची और उन्हीं के इशारे पर ही मुझसे पूछताछ की गई।' आजम ने कहा कि हमारी पार्टी के नेता जानते हैं कि असल में क्या हुआ और इसके पीछे किसका हाथ है। यूपीए को समर्थन पर वह जल्द ही कोई फैसला लेंगे। खां ने कहा कि जब एयरपोर्ट पर मुझे अलग ले जाकर पूछताछ की जा रही थी तब हमें लेने पहुंचे भारतीय दूतावास के अधिकारी हमारे साथ अजनबियों जैसा व्यवहार कर रहे थे। वे चुप और अलग-थलग थे। खां ने ये भी आरोप लगाया कि उन्हें लगता है, भारतीय दूतावास के अधिकारियों को उनके वरिष्ठों ने पहले से ही अलग रहने का निर्देश दे दिया था।
उन्होंने कहा कि यह एक साजिश ही थी क्योंकि मैं भारत का एक गैर कांग्रेसी ताकतवर मुस्लिम नेता हूं और खुर्शीद ने अपनी पोजीशन का इस्तेमाल करके बड़ी चालाकी से आंतरिक सुरक्षा विभाग की मदद से योजना बनाई। बोस्टन एयरपोर्ट पर मुझे रोके जाने की तुलना पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम और अदाकार शाहरुख खान के मामलों से नहीं की जा सकती क्योंकि मुझे खुर्शीद और उनकी मंडली ने निशाना बनाया है जिनके पास मुझे भारत में चुनौती देने की हिम्मत नहीं है।
इसके पहले अमेरिका के बोस्टन शहर के हवाई अड्डे पर नगर विकास मंत्री आजम खां से हुई पूछताछ पर समाजवादी पार्टी सरकार के राज्य मंत्री का दर्जा प्राप्त देवेंद्र गुप्ता ने कहा था, अमेरिका में आजम का कोई अपमान नहीं हुआ। अमेरिकी कानून ने अपना काम किया है। विदित हो कि कुंभ मेले के सफल आयोजन के सिलसिले में हार्वर्ड विश्वविद्यालय में आयोजित कार्यक्रम में शामिल होने गए आजम खां और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इस घटना के विरोधस्वरूप आयोजन का बहिष्कार भी किया।
उत्तर प्रदेश में वैकल्पिक ऊर्जा स्त्रोतों से संबंधित सरकारी संस्था नेडा के चेयरमैन देवेंद्र गुप्ता ने शनिवार को पत्रकारों से बातचीत में कहा कि आजम खां की अमेरिका में तलाशी बिल्कुल ठीक है। इसमें अपमान जैसी क्या बात है? एयरपोर्ट पर तलाशी अमेरिकी कानून का हिस्सा है। फिल्म अभिनेता शाहरुख खान और कई बड़े नेताओं की एयरपोर्ट पर तलाशी हुई है। आजम खां उत्तर प्रदेश सरकार के एक मंत्री ही तो हैं। अमेरिका में देश-विदेश की प्रभावशाली शख्सियतों को भी इस प्रक्रिया से गुजरना ही पड़ता है। इसलिए उसे अपमान बताना या तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करना उचित नहीं है।
उल्लेखनीय है कि आजम खां द्वारा नाराजगी जताये जाने के बाद समाजवादी पार्टी ने संसद में इस मुद्दे पर हंगामा किया। बाद में अमेरिका में भारतीय दूतावास ने मामले को अमेरिकी विदेश मंत्रालय के समक्ष रखकर अपना विरोध जताया था।
हम उतारेंगे अमेरिकियों के कपडे़: विधायक
अमेरिका में नगर विकास मंत्री आजम खां के अपमान के मुद्दे पर समाजवादी पार्टी ने शनिवार को जिला मुख्यालय व तहसीलों पर विरोध जताया। जगह-जगह अमेरिका के पुतले व झंडे जलाए गए। रामपुर कलेक्ट्रेट पर धरने के बीच हुई सभा में सपाइयों ने मांग की कि केंद्र सरकार अमेरिका पर माफी मांगने की हद तक दबाव बनाए। ऐसा न होने पर वे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को चूड़ियां भेंट करेंगे। शाहबाद के विधायक विजय सिंह ने चेतावनी दी कि अगर माफी नहीं मांगी गई तो उत्तर प्रदेश में आने वाले अमेरिकियों के कपड़े उतारकर हम उन्हें बेइज्जत करेंगे।
अब दक्षिण अफ्रीका जाएंगे आजम
उत्तर प्रदेश के संसदीय कार्य एवं नगर विकास मंत्री आजम खां अमेरिका से लौटने के बाद पांच दिन के लिए दक्षिणी अफ्रीका के दौरे पर जाएंगे। बोस्टन हवाई अड्डे पर पूछताछ के नाम पर हुई अभद्रता के चलते आजम की अमेरिका यात्रा इन दिनों चर्चा में है। प्रवक्ता के मुताबिक आजम खां 28 अप्रैल की रात 11:45 बजे अमेरिका से दिल्ली लौट आएंगे। वहां से रामपुर आएंगे और 29 अप्रैल को दिल्ली जाकर रात में वहां से दक्षिण अफ्रीका जाने वाली उड़ान पकड़ेंगे। वह चार मई तक दक्षिण अफ्रीका में रहेंगे। पांच मई को वह भारत वापस लौट आएंगे।

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