नीच और तड़ीपार है तो मुमकिन है
नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री की कुर्सी ऐसे ही छोड़ देगा? मौत का सौदागर है खून की नदियां बह जाएगी और कुर्सी नहीं छोड़ेगा।
एक थे हरेन पंड्या, अस्ट्रॉनॉट सुनीता विलियम्स के कजिन भाई और 25 साल पहले गुजरात भाजपा के कद्दावर नेता। तब गुजरात के नए-नवेले मुख्यमंत्री बने एक नेता को यह भरोसा नहीं था कि वे अपनी लोकप्रियता के दम पर एक चुनाव जीत सकते हैं। इसलिए वे नेता गुजरात की सबसे सेफ सीट, अर्थात अहमदाबाद की एलिस ब्रिज सीट से चुनाव लड़ना चाहते थे, जो कि हरेन पंड्या की सीट थी। पंड्या को उस व्यक्ति के तौर-तरीके पसंद नहीं थे, तो सीट देने से मना कर दिया। अदावत की खाई गहरी हो गयी।
तत्पश्चात गुजरात में भीषण दंगे हुए। आग लगाई किसी अन्य से, तपिश से झुलसे अन्य बेगुनाह लोग। हजारों की संख्या में लोग मरे, जिसमें मुख्य तादात मुस्लिमों की थी। क्रिया की प्रतिक्रिया के सिद्धान्त पर हजारों मासूमों की हत्या हरेन पंड्या के उसूलों में शामिल नहीं थी। कहते हैं कि दंगों की जांच कमेटी को पंड्या ने दंगों वाली रात से पहले मुख्यमंत्री आवास में हुई एक "गुप्त बैठक" के बारे में बता दिया था, जिसमें गुजरात के एक शीर्ष नेता ने पुलिस को निर्देश दिए थे कि हिंदुओं को अपनी भड़ास निकालने का पूरा मौका दिया जाए। कोई कार्यवाही नहीं करनी है।
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कुछ समय बाद 26 मार्च, 2003 की सुबह लॉ गार्डन एरिया में हरेन पंड्या की गोलियों से भूनी हुई लाश उनकी कार में बरामद हुई। पंड्या के हत्यारे उनसे इस कदर घृणा करते थे कि हरेन को गुप्तांगों तक में गोली मारी गयी थी, अलबत्ता गाड़ी में खून का धब्बा तक न था। अनुमान है कि उन्हें अपहृत करने के बाद हत्या की गई और लाश गाड़ी में डंप कर दी गयी।
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शुरुआती जांच के बाद असगर अली नामक एक शख्स को पंड्या की हत्या के इल्जाम में कुछ अन्य लोगों के साथ गिरफ्तार किया गया और सजा भी हुई। थ्योरी बनाई गई कि - मुस्लिमों ने गोधरा का बदला लेने के लिए पंड्या की हत्या कर दी। इस तरह पंड्या की चिता पर राजनीतिक लाभ की रोटियां सेकी गईं।
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2011 में गुजरात हाईकोर्ट ने असगर अली तथा अन्य आरोपियों को बरी करते हुए पुलिस और सीबीआई को फटकार लगाते हुए केस को गुमराह करने का आरोप लगाया और कहा कि असगर अली के बहाने "असली आरोपी" को बचाने की साजिश की जा रही है।
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गौरतलब है कि हाईकोर्ट के जजमेंट से सिर्फ 3-4 महीने पहले गुजरात के आईएएस अधिकारी संजीव भट्ट ने सुप्रीम कोर्ट ने एक हलफनामा देकर गुजरात दंगों के कुछ राज तो खोले ही थे, साथ में यह भी खुलासा किया था कि साबरमती जेल के इंचार्ज रहने के दौरान हरेन पंड्या के कत्ल की सजा काट रहे असगर अली ने उन्हें बताया था कि हरेन पंड्या की हत्या उसने नहीं की थी, उसे तो पीट-पीट कर इल्जाम कबूलने पर मजबूर किया गया था।
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बकौल असगर - वास्तव में उसे ये सुपारी मिली तो थी पर उसने इस काम को मना कर दिया था, जिस कारण बाद में तुलसीराम प्रजापति नामक व्यक्ति ने यह हत्या की थी, हत्या का आदेश सोहराबुद्दीन नामक एक गैंगस्टर ने दिया था और सोहराबुद्दीन को पंड्या की सुपारी देने वाला शख्स कोई और नहीं, बल्कि गुजरात के एक बड़े पुलिस अधिकारी "डीजी बंजारा" थे, जो गुजरात के दो शीर्ष नेताओं के सबसे खासमखास पुलिस अधिकारी थे। सोहराबुद्दीन के एक अन्य सहयोगी ने भी बाद में यह गवाही दी थी कि पंड्या की हत्या सोहराबुद्दीन ने डीजी बंजारा के कहने पर करवाई थी।
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काफी लोग जानते हैं कि सोहराबुद्दीन किन नेताओं के लिए वसूली रैकेट चलाता था और पॉलिटिकल मर्डर करता था। 2004 में जब केंद्र में सरकार बदली तो सोहराबुद्दीन के आकाओं को उससे खतरा प्रतीत होने लगा और उसे तथा उसके गुर्गे तुलसीराम को 2005 में ही इन्ही डीजी बंजारा के हाथों लश्कर का आतंकी बता कर एक एनकाउंटर में पहले ही निपटा दिया गया था। बची उसकी बीवी कौसर, जो कि गर्भवती थी, बलात्कार करने के बाद उसकी भी हत्या कर दी गयी।
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इसी सोहराबुद्दीन के एनकाउंटर की जांच कर रहे थे जज लोया, जिन पर मैंने पहले ही दो पोस्टें की हैं। लोया की भी रहस्यमयी परिस्थितियों में केस का फैसला देने से पहले ही मौत हो गयी। लोया के दो राजदार दोस्त भी थे - खंडेलकर और थाम्ब्रे, जिसमें पहला एक बिल्डिंग से कूद कर मर गया और दूसरा चलती ट्रेन की ऊपरी बर्थ से गिर कर। बाकी बचे संजीव भट्ट, जिनके जैसा ईमानदार और कर्मठ अफसर भारत में होना मुश्किल है। जिस दिन उन्होंने कोर्ट में हलफनामा दिया, उसी शाम उन पर 30 साल पुराने फर्जी मामले को खोलकर सस्पेंड कर दिया गया, आज जेल में उम्रकैद की सजा काट रहे हैं। (संजीव जी पर विस्तृत चर्चा जल्द)
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2019 में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का फैसला रद्द कर के पूर्व में दोषी रहे लोगों की सजा बहाल करते हुए हरेन पंड्या के कत्ल का मामला हमेशा के लिए बंद कर दिया। साथ में यह भी बता दिया कि इस मामले में न्याय की बात करने वालों पर अब जुर्माना ठोका जाएगा।
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बहरहाल, इस केस से जुड़ी हर जुबान तो खामोश हो गयी पर उस बाप की आवाज पर कौन रोक लगा सकता है, जिस पिता ने अपने बेटे हरेन की चिता पर हाजिरी लगाने आये लोगों में सिर्फ एक नेता को सार्वजनिक रूप से फटकार लगाई थी और कहा था कि...
चले जाओ यहां से। तुमने ही मेरे बेटे को मारा है।
Mr Hemraj Singh
साभार : एस के अहीर की पोस्ट (फेसबुक)
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