बुधवार, 2 जुलाई 2014

"धर्म जनता को सुलाने वाला रसायन है"

  • Ravindra Kant Tyagi Muaafi ke sath Dr.Lal Ratnakarsahab agade pichde ki is lakeer ko jinda rakhme me jitna sahyog unka hai utna hi aapka bhi hai.
  • Omprakash Kashyap जिन आदि शंकराचार्य ने भारत में चार स्थानों पर पीठ स्थापित किए थे, वे इस देश के महान दार्शनिक थे. हैरानी की बात है कि उन्हीं के उत्तराधिकारी एक सामान्य पुरोहित जैसा वर्ताव कर रहे हैं. वही क्यों टेलीविजन पर जितने भी उनके समर्थक बहस में उतरे हैं, उन्हें देखकर तो लगता ही नहीं कि वे अपने दर्शन—ग्रंथों को पढ़ने की जहमत उठाते हैं. 
    धर्म उनके लिए जीवनशैली नहीं 'दंड' है, जिससे वे लोगों को हांकना चाहते हैं.
  • Dr.Lal Ratnakar माफ़ी का सवाल नहीं है त्यागी जी यह समाज का ज्वलंत मुद्दा है और इसे ही ठीक करने के लिए सामजिकता मंत्रालय है परन्तु दुर्भाग्य है की हमारे कथित संत महात्मा अपनी असलियत छुपाये समाज को ठग रहे हैं ! इसमें आप मुझे इस रूप में न घसीटें मैं जो देखता हूँ कह देता हूँ उसे छुपाता नहीं और आप को भी इसी विचार का समर्थक मानता हूँ। यही बात हर एक के साथ है जो जहाँ है वहीँ उनकी तरह ही खड़ा है वह मैं या आप हों कोई अलग नहीं दीखता।
  • Ravindra Kant Tyagi माननीय डॉक्टर साहब मेरा उद्देश्य व्यक्तिगत तोर पर आपको कुछ कहना नहीं है। मैं सिर्फ ये अर्ज करना चाहता हूँ की हिन्दू एक धर्म है जो सैकड़ों साल से एक ऐसी दीवार है जिसपर न जाने कितने लोग आये और अपनी इबारत लिख कर चले गए। यकीनन दीवार इतनी दागदार हो गई की उसका मूल अस्तित्व धूमिल हो गया। अब क्या हमारा कर्त्तव्य ये नहीं कि इसे साफ़ करने का प्रयास करें न की मुह फेर लें। 
    अगड़ा पिछड़ा दलित सवर्ण कोढ़ की तरह हिन्दू धरम के अंग अंग को चाट रहा है किन्तु पूरी सहृदयता के साथ ये स्वीकार करने में मुझे कोई गुरेज नहीं है की ये मर्ज धीरे धीरे काम हो रहा है और इसे पूरी तरह समाप्त करने में दोनों पक्षों को सामान रूप से प्रयास करना होगा। हम बार बार इसे कुरेद कर समाधान नहीं निकल सकते।
  • Dr.Lal Ratnakar मान्यवर ! जी आपके कथन में जो तथ्य व् तत्व हैं उसे नकारा नहीं जा सकता ! पर मुझे वहां कोई अड़ंगा खड़ा करना वाजिब नहीं लगता, पर जिन नेताओं ने इसे भड़काया आज वही उसका दोहन कर रहे हैं ! 
    यहाँ पं. द्वारिका प्रसाद मिश्रा के "मिश्र शतक" ये पंक्तियाँ याद आती हैं -
    कलाकार देता नहीं युगधारा का साथ 
    बहती गंगा में नहीं धोता है वह हाथ। 
    मेरे कई दोस्त मुझे मेरी जाती से जोड़कर जिस तरह से इस रूप में घसीटते नज़र आते हैं उनकी दृष्टि को क्या कहूँ ! जबकि वे अत्यंत निहायत चातुर्यभाव से अभिभूत 'दमन' की नव अवधारणा का घात पर प्रतिघात से लावलब होते जाते हैं, तद्परांत मेरे जैसे मित्र को जो सजा देते हैं उसका स्वाद आपको कैसे बताऊँ !
    मेरे धर्म पर कोई हमला नहीं कर सकता मेरा मानना है धर्म चरित्र से तय होता है, चरित्रवान बने रहने के लिए धर्म सहायक होता है !
  • Dr.Lal Ratnakar धर्म के और बहुतेरे क्षेत्र हैं जहाँ मुझे किसी की उपस्थिति प्रभावित नहीं करती, हम भयभीत क्यों हैं कि धर्म का अपमान या लोग अधार्मिक होते जा रहे हैं विकास की बहुतेरी धारा ही धर्म के बहुतेरे मानक को तोड़ते जाते हैं, अब विकास का वरन करें या धर्म को धारण कर "असुविधाओं" के मकड जाल में उलझे रहें दोनों दशाओं में हमें एक नवीन मार्ग तो ढूढना ही होगा ! जो धर्म हज़ारों हज़ार को अछूत बनाता हो, दरिद्दर बनाता हो, अशिक्षित बनाता हो, उंच नीच का अभिमान खड़ा करता हो, अनेक अवसरों पर रोकता हो या असमानता को बढ़ाता हो उसे कैसे सबका धर्म कहेंगे !
    -डॉ. लाल रत्नाकर
  • Ravindra Kant Tyagi To kya dharam ko chod den ya badal len .Uma bharti ko savdhan karte hue aap ye bhool rahe hain ki Narendr modi bhi usi varg se ate hain.
  • Dr.Lal Ratnakar महोदय ! मुझे क्यों उमा का सहायक बना रहे हैं उमा जी विदुषी हैं आदरणीय प्रधानमंत्री जी की जाती पर क्यों जाते हैं ये सब धार्मिक लोग हैं और मैं भी धर्म से विलग थोड़े ही हूँ ! मैंने ऊपर के ही क्रम में बात को थोड़ा सा जोड़ा भर है !
  • Dr.Lal Ratnakar https://www.facebook.com/raghuvinder.yadav?fref=ufiजी बिलकुल सही कहा| किसी विद्वान ने कहा है-"धर्म जनता को सुलाने वाला रसायन है" इस रसायन का शातिर लोग अपने हक में उपयोग कर रहे हैं और नासमझों का शोषण.

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