बदलाव-2014

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शनिवार, 28 जून 2014

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विचारणीय सवाल

शायद सपा समझ नहीं रही है .
सपा कहीं ''बीजेपी'' के लिए रास्ता तो नहीं तैयार कर रही है ;
जिसपर चलकर ये कांग्रेस की मदद करना चाहते हों ;
भाजपा की साम्प्रदायिक छवि तैयार करने के चक्कर में सपा कहीं अपने लिए बड़े खतरे न खड़े कर ले, वैसे भी यह पार्टी जिन लोगों के चंगुल में फास चुकी है वो अधिकाँश लोग उसी भाजपा और कांग्रेस की लाइन के सोच के ही लोग हैं.
अखिलेश यादव के जिस युवा चरित्र और नए उर्जावान चहरे को लोगों ने देखने का भ्रम पाला था वह नक्कारखाने में टूटी हुयी आवाज़ के रूप में ही सामने आ रहा है, यदि भाजपा का अंतर्कलह उसे गच्चा नहीं दिया तो सपा अनचाहे इतना उलटा करेगी जो इन संघियों के बहुत काम आयेगा.
भाजपा/कांग्रेस के जो लोग सपा के गर्भगृह में बैठे हैं उसका मूल कारण यह है की सपा कभी अपने इमानदार कैडर बनाती ही नहीं है, कहीं से वोट के हिसाब से महाभ्रष्ट, जातिवादी, साम्प्रदायिक तत्वों को अपने इर्दगिर्द रखती है जिससे इसकी नीतियाँ ही इसके खिलाफ जाती हैं.
इस बार की सरकार जिस तरह, जिन कारणों से बनी है कौन नहीं जानता. ऐसे सुयोग्य अवसर को छोड़कर ये उन्ही हालातों में पहुँच गए हैं जहां से जनता किसी भी सरकार को बाहर कर देती है. प्रदेश अनेक संकटों से जल रहा है चरों तरफ हाहाकार मचा हुआ है पर इन्हें नज़र ही नहीं आ रहा है.
मिशन २०१४ के चलते प्रदेश में केवल २०१४ के लोकसभा के चुनाव की तैयारियां चल रही हैं, प्रदेश का मुख्यमंत्री देश के प्रधानमंत्री बनाये जाने के सपा प्रमुख के लिए वोट के इंतजामात में 'अनाप सनाप फैसले' ले रहा है 'आरक्षण' की लम्बी लड़ाई का खात्मा कर रहा है, तुष्टिकरण के तमाम फैसले ले रहा है, अपनों और परायों के बीच का अंतर भूल गया है, यही साड़ी बातें हैं जो अंदर तक नुक्सान पहुंचाती/करती हैं.
जिस कांग्रेस के इशारों पर सपा बसपा ,'थिरक' रही हैं राजनितिक विश्लेषक उस मर्म को समझते हैं और अब वे यह भी जान गए हैं की ये देश की सत्ता के विकल्प नहीं है बल्कि कांग्रेस के सहयोगी ही हैं. यह आश्चर्य देश की अवाम जिसे दलित और पिछड़े के रूप में पहचाना जाता है कब समझेगा.
यही कारण है की नरेन्द्र के राष्ट्रवाद से कांग्रेस कत्तई भयभीत नहीं है, इसलिए भी की जिस हिंदुत्व का बुखार भाजपाई चढ़ाना चाहते हैं उसी हिन्दू में देश की 85 फीसदी अवाम दलित और पिछड़े के रूप में मौजूद हैं जिसे ये अलमबरदार अपने अपने खांचे में जातियों के हिसाब से बाटेंगे.जिसका असर यह होगा की 'मोदी' का उभार भी दब जाएगा और दलित और पिछड़े के रूप में बड़े समुदाय का भी हिसाब हो जाएगा.
आधुनिक भारत को समझना अब उतना आसान नहीं है क्योंकि ये आधुनिकता ही उस पुरातन सोच के समापन के लिए आयात की गयी है जिसमें समाजवाद के सारे सपने डुबोये जा चुके हैं सामाजिक न्याय की अवधारणा के मायने बदल दिए गए हैं तभी तो दलित और पिछड़े के पार्टी रूप में पहचान रखने वाली पार्टियाँ उनके हक और हकुकों के लिए काम कर रही हैं जो सदियों से सब कुछ कब्जियाये हुए हैं.
मुझे लगता है जिस अस्मिता की रक्षा के लिए मुलायम सिंह ने सारी बदनामी ली उसी मस्जिद को नरसिंघा राव की कांग्रेस सरकार ने ध्वस्त करा दिया था. वो काम भी इन दोनों ने भाजपा के लिए ही किया था वैसे ही आज के आसार नज़र आ रहे हैं.
आखिर विकल्प क्या है ;
विकल्प है ;
आखिर विकल्प क्या है ? विकल्प है ! पर इसपर चले कौन जिस समय लालू ने अडवानी के रथ को रोका था उस समय की रोक और आज की इस रोक में अंतर ये है की तब अवाम को मंडल का भूत सवार था और अडवानी कमंडल के बहाने मंडल का विरोध कर रहे थे, इस बात को लालू समझा पाने में कामयाब हुए थे. पर अब सरकार इस धार्मिक पाखण्ड को कैसे पहचानेगी, क्या नाम देगी इसे अपने हक़ में कैसे करेगी सब सवाल उसके पाले में ही है. (उत्तर तो इसके हैं पर देखना है सरकार क्या करती है.)
-डॉ.लाल रत्नाकर

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