चारो तरफ यह चर्चा जोर पकड़ रही है की राहुल और मोदी का संघर्ष है 2014 के लिए, पर कितना दुह्खद है कि दलित और पिछड़ों की कोई चर्चा ही नहीं हो रही है, जिनके पास सत्ता की चाभी है। इसकी कोई चर्चा ही नहीं हो रही है ? क्योंकि मिडिया कब चाहेगा की बदलाव - 2014 में 'एक नयी शक्ति' के रूप में दलित + पिछड़े = देश की सत्ता की बागडोर संभालें !
आश्चर्य हो रहा है की प्रधानमंत्री बनाए जाने की बहस छिड़ चुकी है कहाँ हैं नेता जी और बहन मायावती जी .
माना की शहरी संस्कृति के मद्देनजर जनता की आवाज़ दबाने की सारी साजिशे लगातार चलती ही रहती है। अब यह बात गौड़ होती जा रही हैं कि बदलाव की उम्मीदें जिनके कन्धों पर हैं वो सो रहे हैं .
क्या सचमुच कांग्रेस ने इन्हें फंसा रखा है।
बदलाव -2014 के मार्ग के लिए 85% फीसदी आबादी को चिल्ला चिल्ला कर आवाहन करना हैं कि वह यह फैसला ले जिससे यह बहस शुरू हो की अब कांग्रेस और भाजप के अलावा भी उम्मीदें हैं।
असली सत्ता के मालिक ये हैं -
दलित + पिछड़े = एकजूट हो देश की सत्ता की बागडोर संभालें !
अन्यथा आनेवाली पीढियां माफ़ नहीं करेंगी .
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