शुक्रवार, 5 अप्रैल 2013

जिन्हें देश की समझ भी है.


बदलाव 2014 के लिए ‘दरअसल सच को नकार कर’ इस उद्येश्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता ंअतः जिन्हें भी लगता है कि बदलाव होना ही चाहिए उन्हें आगे आना चाहिए इसलिए कि सपा और बसपा के एक होने का सन्देश पूरे देश में जाएगा, बस जरूरत इतनी है कि इन दोनों के मुखिया भड़क न जायं।
अतः पुनः आग्रह है कि वो सारे लोग जो बदलाव चाहते हैं आगे आएं और इनसे अनुनय विनय करें की ये देश की सोचें और देशवासियों की चिन्ता करें। उन देश वासियों की भी जिन्हें देश की समझ भी है।

जैसा की सर्वविदित है की कांग्रेस के परिवारवाद के खिलाफ लड़ते लड़ते अनेक दल उसी रास्ते को अख्तियार कर लिए हैं और सपरिवार सत्ता पर काबिज होकर 'अच्छे और इमानदार लोगों के उधर देखने तक के सारे रास्ते बंदकर केवल चोर उच्चकों को राज् नीतिक बना दिया है' यही एक प्रमुख कारन है की बदलाव 2014 को ग्रहण लग सकता है। क्या इसके लिए हमारे दलित और पिछड़े राजनितिक तैयार नहीं हैं। क्या उन्हें देश की बागडोर संभालने से डरते हैं - यदि ऐसा नहीं है तो क्या कारण है की ये दोनों कांग्रेस के दोनों कन्धों को सहारा देते हुए नज़र तो आते हैं पर ये एक साथ आकर देश को अपने कन्धों से नहीं संभाल सकते।



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