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( पढ़ें कोट लखपत जेल से अपने वकील अवैस शेख को सरबजीत द्वारा लिखी गईं चिट्ठियां)
( पढ़ें कोट लखपत जेल से अपने वकील अवैस शेख को सरबजीत द्वारा लिखी गईं चिट्ठियां)
(साभार दैनिक भास्कर)
पाकिस्तान की कोट लखपत जेल में बंद भारतीय कैदी सरबजीत सिंह ने करीब तीन साल पहले ही अपने साथी कैदियों के बुरे व्यवहार के बारे में बताया था। लेकिन इसके बावजूद जेल प्रशासन ने उसकी सुरक्षा पर कोई कदम नहीं उठाए।
उसने अपने वकील अवैस शेख को इस संबंध में एक मार्मिक चिट्ठी लिखी। पत्र में उसने अपनी आपबीती बयां की थी। उसने लिखा था कि पाकिस्तान के सरकारी संस्थान (पुलिस और कोर्ट) उसे सरबजीत सिंह से मंजीत सिंह बनाने पर तुले हुए थे, जबकि वह खुद मंजीत सिंह के बारे में नहीं जानता था और उसने पाकिस्तान में क्या किया था, इसका भी इल्म उसे नहीं था।
उसने लिखा था, "जेल का स्टाफ और पुलिस और यहां तक कि जेल में बंद कैदी भी मुझे हिकारत भरी नजरों से देखते थे। वे मुझे धमाके करने वाला मानते थे।" सरबजीत ने पाकिस्तानी वकील अवैस शेख का धन्यवाद देते हुए लिखा कि उन्होंने असली मंजीत सिंह को ढूंढ निकाला था। जब सरबजीत को पकड़कर मंजीत सिंह बनाया तो उस वक्त असली मंजीत सिंह इंग्लैंड और कनाडा की सैर कर रहा था। लेकिन बाद में वह पकड़ा गया।
उसने लिखा, "पाकिस्तान में गलती से दाखिल हो गया था। लेकिन मुझे लगता था कि मैं जल्द ही छूट जाऊंगा। मैंने कोई जुर्म नहीं किया था, सिर्फ बॉर्डर ही तो पार किया था। पाकिस्तान के कानून बनाने वालों ने मुझे मंजीत सिंह बना कर पेश किया गया।" सरबजीत ने अपनी चिट्ठी में पाकिस्तानी न्यायिक प्रणाली पर आरोप लगाए हैं। उसने लिखा कि अदालत ने उसकी बात पर जरा भी गौर नहीं किया और न ही सफाई देने का मौका दिया। सिर्फ सजा दे दी गई। सजा-ए-मौत।
उसने पाकिस्तान की फेडरल इनवेस्टिगेटिव यूनिट (एफआईयू) के बारे में बताया कि यह भारत के खिलाफ प्रोपेगेंडा करती है। इसके अलावा पंजाब के भोले-भाले नौजवानों को गुमराह करना और सीमा पार आंतक फैलना उसका काम है।
सरबजीत ने अपने दिल का दर्द बयां करते हुए लिखा था कि जेल में कारावास के दिन गुजार रहा हूं। रिहाई के इंतजार में दिन गुजारना कितना मुश्किल है, ये मुझसे अच्छी तरह कौन जानता होगा। वहीं, उसने पाकिस्तान के उच्चधिकारियों पर उसे मंजीत सिंह नाम देने का आरोप लगाया और यह भी कि वह साथी कैदियों के व्यवहार से काफी समय से दुखी है।
सरबजीत ने आगे लिखा, "उसे सीमा पार पाकिस्तानियों ने पकड़ लिया। उसे रात में सेल में ले गया और घुसते ही सलामी (पीटा गया) दी गई। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि कौन कहां से मार रहा है। मेरी आंखों पर पट्टी और हाथों में हथकड़ी बंधी थी। पीटते हुए एक कमरे में ले गए। मुझे इतना मारा था कि रात भर सो न सका। जब प्लास्टिक के गिलास में चाय दी गई, जिसे पेट में डालने के बाद गर्मी पहुंची और नींद आ गई।"
लेकिन अचानक मुझे किसी सख्त चीज की ठोकर लगी। एक फौजी वर्दी में मुझे बूट से ठोकर मार रहा था। मुझे लगा वह मुझे आजाद करने आया है, क्योंकि मैंने कोई गुनाह नहीं किया था। बॉर्डर पार करना कोई बहुत बड़ा जुर्म नहीं था। लेकिन भविष्य में कुछ और ही लिखा था। वह मुझे आंखों पर पट्टी बांधकर दूसरे कमरे में ले गया। वहां सादे कपड़ों में एक आदमी था, जिसका नाम मुझे बाद मेजर गुलाम अब्बास पता चला था। उसने कई सवाल किया, जैसे तुम मंजीत हो? मैंने कहा, नहीं। इतना कहते ही मुझे सिपाहियों ने नीचे गिरा दिया और कहा - सर यह ऐसे नहीं मानने वाला। फिर वे लोग मुझे पीटने लग गए।
मेरे चीखने का कोई असर उन पर नहीं था। मुझे शक होने लगा या तो इन्हें कोई गलतफहमी है या फिर कोई चक्कर है। सजा होने के 19 वर्ष बाद पता चला कि क्या चक्कर है।
आखिरकार, मुझे मंजीत सिंह बना दिया गया और बम धमाकों का मुलजिम से मुजरिम करार दिया गया। सबरजीत ने लिखा कि पाकिस्तान के जज सिर्फ ये देखते हैं कि पुलिस ने जिस पर आरोप लगाए हैं, वह मुजरिम है। पुलिस की रिपोर्ट पर सजा सुना दी जाती है। एक तो पाकिस्तानी जज सियासी दबाव बर्दाश्त नहीं कर पाते। उनके अंदर भी चोर होता है। वे डरते हैं कि कभी न कभी वे भी पुलिस के शिकंजे में फंस जाएंगे।
सरबजीत ने अपने खत में पाकिस्तानी न्याय प्रणाली की पोल खोली है। उसने बताया कि 1991 में पहली पेशी में उसे असलम शामी की अदालत में पेश किया गया। मेरे केस को यू-टर्न उसी ने दिया था। उसके बारे में सुना था कि शामी रिश्वत लेने से झिझकता नहीं है। पैसे लाओ और फैसला अपने हक में करवाओ। उसके बारे में मशहूर था कि अदाकारा नादरा को रखैल के तौर पर रखता था। उस पर हर महीने चार-पांच लाख रुपये खर्च करता था। शराब का बेहद रसिया था। जब मैंने यह सब सुना तो सोचा कि घरवालों से बात हो जाए तो मैं भी इसे रिश्वत देकर अपनी जान छुड़ा लूं। लेकिन मुमकिन न हो सका।
इस जज के फैसले से सारे-सारे आरोपी बरी हो गए। जब मैंने जज से कहा, साब मैं मंजीत सिंह नहीं हूं, मेरा नाम सरबजीत सिंह है। उसने मुझे यह कहते हुए टाल दिया, मैं पूरा-पूरा इंसाफ करूंगा। जब चालान पेश हुआ तो केस की सुनवाई शुरू हुई और यह केस फैसलाबाद के बम धमाकों का केस था। पुलिस ने हर केस में अपने गवाहों के बीच में मुखबिरों को पेश किया।
कई गवाहों ने कहा कि पुलिस की कस्टडी में उन्हें बताया गया कि यही मंजीत सिंह है। कई तो साफ कह गए थे कि हमें तो पुलिस मजबूर कर रही है। घायलों के बयान सबसे ज्यादा जरूरी होते हैं। उन्होंने साफ कहा था कि हमें नहीं पता कि कौन धमाका कर गया।
(साभार दैनिक भास्कर)
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