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राजा भैया की वापसी, सपा सरकार की थी मजबूरी

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कुंडा सीओ जियाउल हक मर्डर मामले में क्लीन चिट मिलने के लंबे अंतराल के बाद आखिर सपा नेतृत्व को राजा भैया को मंत्रिमंडल में वापस लाने को मजबूर होना ही पड़ा।

माना जा रहा है कि पूरब से पश्चिम तक ठाकुरों के सपा के खिलाफ गोलबंद होने के कारण नेतृत्व को ऐसा निर्णय लेना पड़ा।

मुजफ्फरनगर दंगे के सिलसिले में खेड़ा में हुए उपद्रव के बाद सपा नेतृत्व को राजा भैया की जरूरत महसूस होने लगी थी।

कहा जा रहा है कि जल्द ही राजा भैया ठाकुरों का सरकार के प्रति गुस्सा शांत कराने के मकसद से मेरठ (खेड़ा) जा सकते हैं।

पढ़ें-फिर वजीर बनेंगे राजा भैया, शपथ ग्रहण आज

राजा भैया की मंत्रिमंडल में वापसी के साथ प्रतापगढ़ के सपा प्रत्याशी बदले जाने की चर्चाएं भी तेज हो गई हैं। गौरतलब है कि प्रतापगढ़ से सपा प्रत्याशी सीएन सिंह के राजा भैया से छत्तीस के रिश्ते हैं।

कहा तो यह तक जा रहा है कि न पहले और न ही अब मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपने मंत्रिमंडल में राजा भैया को शामिल करने के पक्षधर हैं। पर नेतृत्व के दबाव के कारण मन दबाकर उन्हें ऐसा करना पड़ रहा है।

लोगों को यह भी याद है कि सरकार बनने के कुछ दिनों बाद दिवंगत वरिष्ठ नेता मोहन सिंह ने एक न्यूज चैनल पर कहा था कि राजा भैया को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपनी कैबिनेट में शामिल नहीं करना चाहते थे, पर नेतृत्व के दबाव में ऐसा करना पड़ा।

मोहन सिंह की इस बात का किसी ने खंडन नहीं किया था। दरअसल सरकार बनने के बाद राजा भैया को खाद्य व रसद विभाग के अलावा कारागार विभाग का मंत्री बनाया गया तो यही संदेश गया कि विधानसभा चुनाव में पार्टी के पक्ष में मेहनत करने के कारण उनका कद बढ़ाया गया है।

लेकिन बाद में एक ऐसा दौर आया कि जब महेंद्र अरिदमन सिंह, ओमप्रकाश सिंह, राजकिशोर सिंह समेत ठाकुर बिरादरी के कई मंत्रियों के विभाग बदल कर उनके पर कतर दिए गए।

चपेट में राजा भैया भी आए पसंदीदा कारागार विभाग छीन लिया गया। तब माना गया था कि मुख्यमंत्री ने दबाव में मंत्री जरूर बना दिया पर राजा भैया के प्रति उनका सहिष्णु भाव नहीं है। थोड़े ही दिन बाद कुंडा में सीओ जियाउल हक का मर्डर हो गया।

जियाउल हक की बीवी परवीन ने जो एफआईआर लिखाई उसमें राजा का नाम भी आरोपियों में था। पर आरोप दर्ज होने के पहले राजा भैया ने मुख्यमंत्री से मुलाकात करने के बाद मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।

खासतौर से सपा के मुस्लिम नेताओं व मंत्रियों ने राजा भैया के प्रति गैरों सा रुख अपनाया। अहमद बुखारी जैसे लोग खुलकर आलोचना करते नजर आए।

भाजपा में जाने की चर्चा ने जोर पकड़ा
आखिरकार 1 अगस्त को राजा भैया को कुंडा सीओ मर्डर केस में क्लीन चिट मिल गई। पहले तो लगा कि अब किसी भी दिन राजा भैया की मंत्रिमंडल में फिर वापसी हो जाएगी।

पर कुछ दिन ऐसा नहीं हुआ तो कहा जाने लगा कि मुख्यमंत्री अपनी कैबिनेट में उन्हें लेने को तैयार नहीं हैं। इस बीच उनके भाजपा में उनके जाने की चर्चा कुछ ज्यादा तेज हो गई।

खिचड़ी कुछ भी पक रही हो पर पर राजा भैया ने सार्वजनिक तौर पर न मुलायम-अखिलेश की आलोचना की और न भाजपा के प्रति सहानुभूति दिखाई।

ठाकुरों की नाराजगी दूर करने को नहीं मिला कोई चेहरा
पिछले हफ्ते जश्ने जौहर का निमंत्रण देने के बहाने आजम खां उनके घर पहुंचे तो लगने लगा कि सरकार को उनकी आवश्यकता महसूस हो रही है।

दरअसल मुजफ्फरनगर दंगे के बाद खेड़ा पंचायत में उपद्रव के बाद नाराज ठाकुरों को मनाने के लिए किसी प्रभावी ठाकुर चेहरे की तलाश शुरू हुई तो सपा नेतृत्व को कोई चेहरा नहीं दिखा।

कहा जाता है कि इसी के बाद मुलायम सिंह ने राजा भैया की वापसी का फरमान करीबी लोगों को सुना दिया। मुलायम के निर्देश पर आजम खां को भेज कर राजा भैया से सरकार को सहयोग करने की बात की गई।

राजा का जवाब था कि किस हैसियत से सरकार का प्रतिनिधि बनकर जाऊं। कहा जाता है कि इसी के बाद राजा को मंत्रिमंडल में वापस लाने का मन बना लिया गया था।

संभव है कि मंत्री पद ग्रहण करने के बाद जल्द ही राजा भैया पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ठाकुरों का गुस्सा शांत करने के मकसद से वहां जाएं।

इटली में बनी नई सरकार, शपथग्रहण के वक्त चली गोली

 रविवार, 28 अप्रैल, 2013 को 18:28 IST तक के समाचार

इटली के प्रधानमंत्री कार्यालय के बाहर गोली लगने से दो पुलिसकर्मी घायल हो गए
रोम के क्वीरिनल पैलेस में इटली की नई गठबंधन सरकार ने शपथ ग्रहण कर लिया.
आम चुनावों के बाद करीब दो महीने तक चले राजनीतिक गतिरोध के बाद इटली में नई गठबंधन सरकार का गठन हुआ है.
समारोह स्थल से थोड़ी दूर और प्रधानमंत्री कार्यालय के बाहर, गोलीबारी की एक घटना में दो पुलिस अधिकारी घायल हो गए.
एक पुलिसकर्मी की गर्दन में गोली लगी है और उसकी हालत गंभीर बताई गई है.

आतंकी हमला नहीं

पुलिस ने इस मामले में एक व्यक्ति को गिरफ़्तार कर लिया है.
पुलिस अधिकारियों ने बीबीसी को बताया कि गिरफ़्तार व्यक्ति की दिमागी हालत ख़राब हो सकती है.
रोम के मेयर ने जियानी अलेमैन्नो ने इसके आतंकी कार्रवाई होने की बात को ख़ारिज कर दिया.
हालांकि उन्होंने कहा कि राजनीतिक तनाव इसके लिए ज़िम्मेदार हो सकता है.
“यह आतंकी हमला नहीं है लेकिन ज़ाहिर है कि पिछले कुछ महीनों से जारी माहौल से हालत सुधरे नहीं है.”
इस गठबंधन सरकार में एनरिको लेट्टा की डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडी) और पूर्व प्रधानमंत्री सिल्वियो बर्लुस्कोनी की पीपुल ऑफ फ्रीडम पार्टी (पीडीएल) शामिल हैं.
राष्ट्रपति जॉर्जो नैप्पोलितानो का कहना है कि यही 'एकमात्र संभावित सरकार' हो सकती थी.
हालांकि संवाददाताओं का कहना है कि इटली की मुख्य दक्षिणंपथी और वामपंथी पार्टियों का यह बड़ा गठबंधन अभूतपूर्व है और इस गठजोड़ को लेकर आशंका बरकरार रहने की पूरी संभावना है.
लेट्टा इटली के नए प्रधानमंत्री होंगे. बर्लुस्कोनी ने कहा है कि वह कोई मंत्री पद नहीं लेंगे लेकिन उन्होंने अपनी पार्टी के प्रमुख लोगों को बड़े पद दिए जाने की सिफारिश की है.
पीडीएल के सचिव और बर्लुस्कोनी के सबसे क़रीबी राजनीतिक सहयोगी एंजेलिनो अलफ़ानो नई सरकार में उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री का पद संभालेंगे.
इसके अलावा जिनको बड़े पद देने का प्रस्ताव रखा गया है उनमें बैंक ऑफ इटली के महानिदेशक फैबरिजियो सैकोमान्नी और पूर्व यूरोपियन कमिश्नर एम्मा बोनिनो का नाम शामिल है. सैकोमान्नी को वित्त मंत्री और बोनिनो को विदेश मंत्री बनाने का प्रस्ताव रखा गया है.

'अखिलेश के लिए सिरदर्द हैं मुलायम'

नई दिल्ली/इंटरनेट डेस्क Last updated on: March 31, 2013 12:31 PM IST
mulayam is father of akhilesh
जम्‍मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने मुलायम सिंह यादव को अखिलेश यादव के लिए 'सिरदर्द' बताया है। उन्होंने कहा, 'समाजवार्दी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव अखिलेश यादव की मुश्किलें बढ़ा रहे हैं। वे अपने बेटे के लिए खुद ही सिरदर्द हैं।'
उमर अब्दुल्‍ला ने ये बातें अंग्रेजी दैनिक इंडियन एक्सप्रेस के साथ बातचीत में कहीं। 
उन्होंने कहा, 'मुलायम सिंह यादव ने जितनी आलोचना अपने बेटे अखिलेश यादव की सरकार की, अगर मेरे पिता (फारुख अब्दुल्ला) ने मेरी सरकार की उतनी आलोचना करते तो मैं घबरा जाता।' 
उल्लेखनीय है मुलायम सिंह यादव ने उत्‍तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अ‌‌खिलेश यादव की एक साल पुरानी सरकार की कई बार आलोचना कर चुके हैं। 
हाल ही में लखनऊ में आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने अखिलेश यादव की सरकार को कमजोर सरकार कहते हुए उन्हें नसीहत दी थी कि वे राज्य का प्रशासन दुरुस्त करें।
भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्‍ण आडवाणी की तारीफ करते हुए उन्होंने कहा था, ‘आडवाणी साहब कहते हैं कि यूपी की हालत बहुत खराब है और वहां भ्रष्टाचार आम है...।’
मुलायम ने कहा था कि यदि मुख्यमंत्री प्रदेश की कानून व्यवस्था और प्रशासन को संभालने में नाकाम होता है तो सब उसे कमजोर शासक कहेंगे।
उन्होंने अखिलेश से कहा, ‘ऐसे सरकार नहीं चलती। कड़ाई करो। राज का काज सीधेपन से नहीं होता। कोई अधिकारी अपना नहीं। शासन में रहोगे तो यह चापलूसी करेंगे। नहीं रहोगे तो जानते ही हो क्या होता है।’ 
मुलायम सिंह यादव इससे पहले भी कई सार्वजनिक कार्यक्रमों और पार्टी कार्यकर्ताओं से बातचीत में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की कार्यशैली व उनकी सरकार की आलोचना कर चुके हैं। 

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मुलायम सरकार से समर्थन वापस ले सकते हैं: मनमोहन
शुक्रवार, 29 मार्च, 2013 को 00:16 IST तक के समाचार
मनमोहन-करूणानिधि
तमिलनाडु के राजनीतिक दल डीएमके ने हाल में ही मनमोहन सिंह सरकार से समर्थन वापस लिया है.
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि 'इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता' है कि समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार से समर्थन वापस ले सकते हैं.
लेकिन उन्होंने यक़ीन जताया कि उनकी सरकार को किसी तरह का ख़तरा नहीं है और वो अपना कार्यकाल पूरा करेगी.
समाचार एजेंसी पीटीआई ने कहा है कि मनमोहन सिंह ने डरबन से लौटते हुए अपने विशेष विमान में पत्रकारों से ये बातें कहीं.
भारतीय प्रधानमंत्री दक्षिण अफ्रीका में हुए पांच मुल्कों - भारत, चीन, रूस, दक्षिण अफ़्रीका और ब्राज़ील के समूह ब्रिक्स के सम्मेलन में शामिल होकर दिल्ली वापस आ रहे थे.

गठबंधन

मनमोहन सिंह ने कहा, "ये सच है कि अकसर गठबंधन में उठे मुद्दों को लेकर लगता है कि सरकार स्थिर नहीं है. इसलिए मैं इस तरह की संभावना से इंकार नहीं कर सकता. लेकिन मुझे इस बात का यक़ीन है कि हमारी सरकार अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा करेगी. और अगले आम चुनाव समय पर ही होंगे."
आर्थिक सुधारों से जुड़े एक सवाल पर उन्होंने कहा कि उसमें किसी तरह की बाधा नहीं आएगी.
केंद्र सरकार को बाहर से समर्थन दे रही समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह ने पिछले चंद दिनों में बार-बार अपने कांग्रेस के ख़िलाफ़ कड़े जुम्लों का प्रयोग किया है.
"ये सच है कि अकसर गठबंधन में उठे मुद्दों को लेकर लगता है कि सरकार स्थिर नहीं है. इसलिए मैं इस तरह की संभावना से इंकार नहीं कर सकता. लेकिन मुझे इस बात का यक़ीन है कि हमारी सरकार अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा करेगी. और अगले आम चुनाव समय पर ही होंगे."
मनमोहन सिंह, प्रधानमंत्री
दो दिनों पहले उन्होंने कांग्रेस को 'धोखेबाज़ और शातिर' कहा था.

'अपने लिए रास्ता'

मुलायम सिंह ने हाल में भारतीय जनता पार्टी नेता लाल कृष्ण आडवाणी की भी तारीफ़ की. हालांकि उन्होंने कहा कि अगले आम चुनाव के बाद केंद्र में न तो कांग्रेस के नेतृत्व वाली और न ही भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार बनेगी.
राजनीतिक विश्लेषक उर्मिलेश ने बीबीसी से कहा कि मुलायम सिंह अगले आम चुनाव में बड़ी भूमिका निभाना चाहते हैं और इन बयानों को उसकी तैयारी के तौर पर देखा जाना चाहिए.
उनका कहना था कि जिस तरह कांग्रेस बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से नज़दीकियां बढ़ा रही है, उसके मद्देनज़र मुलायम सिंह यादव आडवाणी की तारीफ़ कर रहे हैं ताकि अगर ज़रूरत पड़े तो बीजेपी में उन्हें कम से कम बाहर से समर्थन देने का पुरज़ोर विरोध न हो.
लेकिन उर्मिलेश का कहना था कि इस स्थिति तक पहुंचने के लिए मुलायम सिंह को पहले अपनी सीटें बढ़ानी होंगी और इसलिए मुलायम सिंह चाहते हैं कि आम चुनाव जल्द से जल्द हो ताकि उत्तर प्रदेश में उनकी पार्टी की मौजूदा सरकार के खिलाफ़ सत्ता विरोधी लहर ज़ोर न पकड़ सके.
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यूपीए पर कठोर क्यों हुए मुलायम?
सोमवार, 25 मार्च, 2013 को 14:44 IST तक के समाचार
मुलायम सिंह यादव
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने मनमोहन सिंह सरकार के पहले कार्यकाल में उनकी डूबती नैया को ऐसे वक़्त में उबारा था जब अमरीका से सहयोग के मामले में वामपंथियों ने समर्थन वापिस ले लिया था.
उत्तर प्रदेश के ये घिसे हुए राजनेता दोबारा यूपीए की मदद के लिए तब आगे आए जब रिटेल में विदेशी निवेश के मुद्दे पर तृणमूल काँग्रेस की ममता बनर्जी ने सरकार को झटका दिया.
और अब जब यूपीए के दूसरे बड़े पार्टनर डीएमके ने अपना हाथ खींच लिया है तो मनमोहन सिंह सरकार मायावती के साथ साथ मुलायम की बैसाखी पर टिक गई है.
यूपीए के वज़न को अपने कंधे पर मुलायम ने उठाया तो ज़रूर है पर उनकी कठोरता ने मनमोहन सिंह सरकार का चैन छीन लिया है.
मुलायम सिंह यादव के मुख से उनके राजनीतिक विरोधी माने जाने वाले बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी की तारीफ़ ने बहुत लोगों को अचरज में डाल दिया.
पिछले हफ़्ते लखनऊ में समाजवादी पार्टी के एक समारोह में मुलायम सिंह यादव ने कहा था कि लालकृष्ण आडवाणी चाहते हैं कि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार चले. पर उन्होंने कहा है कि राज्य में भ्रष्टाचार बहुत बढ़ गया है.
मुलायम का अगला वाक्य दिलचस्प था. उन्होंने कहा, “आडवाणी जी कभी झूठ नहीं बोलते. उन्होंने ऐसा कहा है तो मैं उनसे पूछूँगा.”

नए समीकरण?

मनमोहन सिंह
मुलायम सिंह यादव के कुछ बयानों ने यूपीए को सोच में डाल दिया है.
कई विश्लेषकों ने यूपीए सरकार का अहम सहारा बन चुके मुलायम के इस बयान को आडवाणी की तारीफ़ से ज़्यादा नरेंद्र मोदी को ख़ारिज करने की कोशिश के तौर पर देखा है.
लेकिन मुलायम इससे पहले भी संसद में भारतीय जनता पार्टी के प्रति अपनी नई-नई कोमल भावनाओं का इज़हार कर चुके थे.
एक बहस के दौरान उन्होंने हाल ही में भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह से कहा था कि अगर कश्मीर जैसे मसलों पर आपकी पार्टी अपनी राय बदल ले तो हममें और आपमें राष्ट्रीय सुरक्षा, भाषा आदि मुद्दों पर कोई मतभेद नहीं है.
क्या इन नज़दीकियों को 2014 के आम चुनाव से पहले नए राजनीतिक समीकरणों का संकेत माना जाए?
वरिष्ठ पत्रकार अदिति फड़निस मानती हैं कि अभी 2014 में बहुत देर है और तब के राजनीतिक समीकरणों का अंदाज़ा अभी से नहीं लगाया जा सकता.
पर वो ये ज़ोर देकर कहती हैं कि मुलायम सिंह यादव की राजनीति में एक पहलवान के दाँवपेंच होते हैं.
अदिति फड़निस ने बीबीसी से कहा, “मुलायम सिंह यादव कुश्ती के पारंगत खिलाड़ी रहे हैं. चाहे राजनीति हो या दल परिवर्तन हो या नेतृत्व की बात हो वो हमेशा ऐसा करते रहे हैं. एक ज़माने में मुलायम सिंह ने चंद्रशेखर का साथ दिया था पर फिर तुरंत देवी लाल के साथ चले गए. चौधरी चरण सिंह ने उनकी मदद की मगर फिर उनकी पीठ पर छुरा घोंपने वाले मुलायम ही थे.”

झुकाव किस ओर?

"मुलायम सिंह यादव कुश्ती के पारंगत खिलाड़ी रहे हैं. चाहे राजनीति हो या दल परिवर्तन हो या नेतृत्व की बात हो वो हमेशा ऐसा करते रहे हैं. एक ज़माने में मुलायम सिंह ने चंद्रशेखर का साथ दिया था पर फिर तुरंत देवीलाल के साथ चले गए. चौधरी चरण सिंह ने उनकी मदद की मगर फिर उनकी पीठ पर छुरा घोंपने वाले मुलायम ही थे."
अदिति फड़निस, वरिष्ठ पत्रकार
अदिति फड़निस ही नहीं कई और विश्लेषक भी मानते हैं कि मुलायम सिंह के एक-एक शब्द पर इन दिनों सबकी नज़र है.
ख़ास तौर पर राहुल गाँधी और वामपंथी पार्टियाँ उनके बयानों पर काफ़ी ग़ौर कर रही हैं.
लालकृष्ण आडवाणी की तारीफ़ को कई लोग मुलायम सिंह के राजनीतिक दाँव के तौर पर देखते हैं और इसे नरेंद्र मोदी का क़द छोटा करने की कोशिश मानते हैं.
पर अदिति फड़निस कहती हैं कि नरेंद्र मोदी अगर मज़बूत हुए तो उसका चुनावी फ़ायदा मुलायम सिंह यादव को होगा क्योंकि मोदी को बाँटने वाले नेता के तौर पर देखा जाता है और विकल्पहीनता की स्थिति में मुसलमान मुलायम को ही मज़बूत करना चाहेंगे. क्योंकि किसी भी हाल में वो नरेंद्र मोदी को देश का प्रधानमंत्री बनते नहीं देखना चाहते.
इसीलिए नरेंद्र मोदी के ख़ेमे के लोग इंतज़ार कर रहे हैं कि मुलायम सिंह कुछ ऐसी बात कहें जिससे नेतृत्व पर नरेंद्र मोदी का दावा और पुख़्ता हो जाए.


'कबीर कला मंच' के कलाकारों की रिहाई के लिए संस्कृतिकर्मियों-बुद्धिजीवियों का


प्रतिवाद मार्च

2 मई 2013, 2 बजे दिन, श्रीराम सेंटर (मंडी हाउस) से महाराष्ट्र सदन

साथियो,

पुणे (महाराष्ट्र) की चर्चित सांस्कृतिक संस्था ‘कबीर कला मंच’ के संस्कृतिकर्मियों पर पिछले दो वर्षों से राज्य दमन जारी है। मई 2011 में एटीएस (आतंकवाद निरोधक दस्ता) ने कबीर कला मंच के सदस्य दीपक डेंगले और सिद्धार्थ भोसले को दमनकारी कानून यूएपीए के तहत गिरफ्तार किया था। दीपक डांगले और सिद्धार्थ भोसले पर आरोप लगाया गया कि वे माओवादी हैं और जाति उत्पीड़न और सामाजिक-आर्थिक विषमता के मुद्दे उठाते हैं। इस आरोप को साबित करने के लिए उनके द्वारा कुछ किताबें पेश की गईं और यह कहा गया कि कबीर कला मंच के कलाकार समाज की खामियों को दर्शाते हैं और अपने गीत-संगीत और नाटकों के जरिए उसे बदलने की जरूरत बताते हैं। राज्य के इस दमनकारी रुख के खिलाफ प्रगतिशील-लोकतांत्रिक लोगों की ओर से दबाव बनाने के बाद गिरफ्तार कलाकारों को जमानत मिली। लेकिन प्रशासन के दमनकारी रुख के कारण कबीर कला मंच के अन्य सदस्यों को छिपने के लिए विवश होना पड़ा था, जिन्हें ‘फरार’ घोषित कर दिया गया था। विगत 2 अप्रैल को कबीर कला मंच की मुख्य कलाकार शीतल साठे और सचिन माली को महाराष्ट्र विधानसभा के समक्ष सत्याग्रह करते हुए गिरफ्तार कर लिया गया। उसके बाद गर्भवती शीतल साठे को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया और सचिन माली को पहले एटीएस के सौंपा गया, बाद में न्‍यायिक हिरासत में भेज दिया गया। उन पर भी वही आरोप हैं, जिन आरापों के मामले में दीपक डेंगले और सिद्धार्थ भोसले को जमानत मिल चुकी है।

साथियो, इस देश में साम्राज्यवादी एजेंसियां और सरकारी एजेंसियां संस्कृतिकर्म के नाम पर जनविरोधी तमाशे करती हैं। वे संस्‍कृतिकर्मियों को खैरात बांटकर उन्‍हें शासकवर्ग का चारण बनाने की कोशिश करती हैं। ऐसे में गरीब-मेहनतकशों के बीच से उभरे कलाकार जब सामाजिक भेदभाव, उत्पीड़न, आर्थिक शोषण, भ्रष्टाचार, प्राकृतिक संसाधनों की लूट और राज्‍य-दमन के खिलाफ जनता के लोकतांत्रिक अधिकारों के पक्ष में प्रतिरोध की संस्कृति रचते हैं, तो उन्हें अपराधी करार दिया जाता है। कबीर कला मंच के कलाकार भी इसीलिए गुनाहगार ठहराए गए हैं।

शीतल और सचिन ने एटीएस के आरोपों से इनकार किया है कि वे छिपकर माओवादियों की बैठकों में शामिल होते हैं या आदिवासियों को माओवादी बनने के लिए प्रेरित करते हैं। दोनों का कहना है कि वे डॉ. बाबा साहेब अंबेडकर, अण्णा भाऊ साठे और ज्योतिबा फुले के विचारों को लोकगीतों के माध्यम से लोगों तक पहुंचाते हैं। सवाल यह है कि क्या इस देश में अंबेडकर या फुले के विचारों को लोगों तक पहुंचाना गुनाह है? क्या भगतसिंह के सपनों को साकार करने वाला गीत गाना गुनाह है?

संभव है शीतल साठे और सचिन माली को भी जमानत मिल जाए, पर हम सिर्फ जमानत से संतुष्ट नहीं है, हम मांग करते हैं कि कबीर कला मंच के कलाकारों पर लादे गए फर्जी मुकदमे अविलंब खत्म किए जाएं और उन्हें तुरंत रिहा किया जाए, संस्कृतिकर्मियों पर आतंकवादी या माओवादी होने का आरोप लगाकर उनकी सामाजिक-सांस्कृतिक गतिविधियों को बाधित न किया जाए तथा उनके परिजनों के रोजगार और सामाजिक सुरक्षा की गारंटी की जाए।

महाराष्ट्र में इसके पहले भी भगतसिंह की किताबें बेचने के कारण बुद्धिजीवियों को पुलिस द्वारा परेशान करने की घटनाएं घटी हैं। 2011 में मराठी पत्रिका ‘विद्रोही’ के संपादक सुधीर ढवले को भी कबीर कला मंच के कलाकारों की तरह ‘अनलॉफुल एक्टिविटीज प्रेवेंशन एक्ट’ के तहत गिरफ्तार किया गया। इसी तरह झारखंड में जीतन मरांडी लगातार राज्य और पुलिस प्रशासन के निशाने पर हैं। हम पूरे देश में संस्कृतिकर्मियों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हिमायती हैं और मांग करते हैं कि उन पर राज्‍य दमन अविलंब बंद किया जाए।

साथियो, बुद्धिजीवियों-संस्कृतिकर्मियों-छात्रों ने अपने आंदोलनों के बल विनायक सेन से लेकर सीमा आजाद तक को रिहा करने के लिए सरकारों और अदालतों पर जन-दबाव बनाने में सफलता हासिल की। जसम-आइसा ने पटना, इलाहाबाद, गोरखपुर, रांची समेत देश के विभिन्न हिस्सों में शीतल साठे और सचिन माली तथा सुधीर ढवले व जीतन मरांडी की गिरफ्तारी के खिलाफ आवाज उठायी है। महाराष्ट्र सरकार और पुलिस-प्रशासन के जनविरोधी रुख के खिलाफ आइए हम एक मजबूत प्रतिवाद दर्ज करें और अपने संस्कृतिकर्मी-बुद्धिजीवी साथियों के अविलंब रिहाई के आंदोलन को तेज करें।

निवेदक

संगवारी, संगठन, द ग्रुप (जन संस्कृति मंच)

ऑल इंडिया स्टूडेण्ट्स एसोसिएशन (आइसा)

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