राजा भैया की वापसी, सपा सरकार की थी मजबूरी
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कुंडा सीओ जियाउल हक मर्डर मामले में क्लीन चिट मिलने के लंबे अंतराल के बाद आखिर सपा नेतृत्व को राजा भैया को मंत्रिमंडल में वापस लाने को मजबूर होना ही पड़ा।
माना जा रहा है कि पूरब से पश्चिम तक ठाकुरों के सपा के खिलाफ गोलबंद होने के कारण नेतृत्व को ऐसा निर्णय लेना पड़ा।
मुजफ्फरनगर दंगे के सिलसिले में खेड़ा में हुए उपद्रव के बाद सपा नेतृत्व को राजा भैया की जरूरत महसूस होने लगी थी।
कहा जा रहा है कि जल्द ही राजा भैया ठाकुरों का सरकार के प्रति गुस्सा शांत कराने के मकसद से मेरठ (खेड़ा) जा सकते हैं।
पढ़ें-फिर वजीर बनेंगे राजा भैया, शपथ ग्रहण आज
राजा भैया की मंत्रिमंडल में वापसी के साथ प्रतापगढ़ के सपा प्रत्याशी बदले जाने की चर्चाएं भी तेज हो गई हैं। गौरतलब है कि प्रतापगढ़ से सपा प्रत्याशी सीएन सिंह के राजा भैया से छत्तीस के रिश्ते हैं।
कहा तो यह तक जा रहा है कि न पहले और न ही अब मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपने मंत्रिमंडल में राजा भैया को शामिल करने के पक्षधर हैं। पर नेतृत्व के दबाव के कारण मन दबाकर उन्हें ऐसा करना पड़ रहा है।
लोगों को यह भी याद है कि सरकार बनने के कुछ दिनों बाद दिवंगत वरिष्ठ नेता मोहन सिंह ने एक न्यूज चैनल पर कहा था कि राजा भैया को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपनी कैबिनेट में शामिल नहीं करना चाहते थे, पर नेतृत्व के दबाव में ऐसा करना पड़ा।
मोहन सिंह की इस बात का किसी ने खंडन नहीं किया था। दरअसल सरकार बनने के बाद राजा भैया को खाद्य व रसद विभाग के अलावा कारागार विभाग का मंत्री बनाया गया तो यही संदेश गया कि विधानसभा चुनाव में पार्टी के पक्ष में मेहनत करने के कारण उनका कद बढ़ाया गया है।
लेकिन बाद में एक ऐसा दौर आया कि जब महेंद्र अरिदमन सिंह, ओमप्रकाश सिंह, राजकिशोर सिंह समेत ठाकुर बिरादरी के कई मंत्रियों के विभाग बदल कर उनके पर कतर दिए गए।
चपेट में राजा भैया भी आए पसंदीदा कारागार विभाग छीन लिया गया। तब माना गया था कि मुख्यमंत्री ने दबाव में मंत्री जरूर बना दिया पर राजा भैया के प्रति उनका सहिष्णु भाव नहीं है। थोड़े ही दिन बाद कुंडा में सीओ जियाउल हक का मर्डर हो गया।
जियाउल हक की बीवी परवीन ने जो एफआईआर लिखाई उसमें राजा का नाम भी आरोपियों में था। पर आरोप दर्ज होने के पहले राजा भैया ने मुख्यमंत्री से मुलाकात करने के बाद मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।
खासतौर से सपा के मुस्लिम नेताओं व मंत्रियों ने राजा भैया के प्रति गैरों सा रुख अपनाया। अहमद बुखारी जैसे लोग खुलकर आलोचना करते नजर आए।
भाजपा में जाने की चर्चा ने जोर पकड़ा
आखिरकार 1 अगस्त को राजा भैया को कुंडा सीओ मर्डर केस में क्लीन चिट मिल गई। पहले तो लगा कि अब किसी भी दिन राजा भैया की मंत्रिमंडल में फिर वापसी हो जाएगी।
पर कुछ दिन ऐसा नहीं हुआ तो कहा जाने लगा कि मुख्यमंत्री अपनी कैबिनेट में उन्हें लेने को तैयार नहीं हैं। इस बीच उनके भाजपा में उनके जाने की चर्चा कुछ ज्यादा तेज हो गई।
खिचड़ी कुछ भी पक रही हो पर पर राजा भैया ने सार्वजनिक तौर पर न मुलायम-अखिलेश की आलोचना की और न भाजपा के प्रति सहानुभूति दिखाई।
ठाकुरों की नाराजगी दूर करने को नहीं मिला कोई चेहरा
पिछले हफ्ते जश्ने जौहर का निमंत्रण देने के बहाने आजम खां उनके घर पहुंचे तो लगने लगा कि सरकार को उनकी आवश्यकता महसूस हो रही है।
दरअसल मुजफ्फरनगर दंगे के बाद खेड़ा पंचायत में उपद्रव के बाद नाराज ठाकुरों को मनाने के लिए किसी प्रभावी ठाकुर चेहरे की तलाश शुरू हुई तो सपा नेतृत्व को कोई चेहरा नहीं दिखा।
कहा जाता है कि इसी के बाद मुलायम सिंह ने राजा भैया की वापसी का फरमान करीबी लोगों को सुना दिया। मुलायम के निर्देश पर आजम खां को भेज कर राजा भैया से सरकार को सहयोग करने की बात की गई।
राजा का जवाब था कि किस हैसियत से सरकार का प्रतिनिधि बनकर जाऊं। कहा जाता है कि इसी के बाद राजा को मंत्रिमंडल में वापस लाने का मन बना लिया गया था।
संभव है कि मंत्री पद ग्रहण करने के बाद जल्द ही राजा भैया पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ठाकुरों का गुस्सा शांत करने के मकसद से वहां जाएं।
कुंडा सीओ जियाउल हक मर्डर मामले में क्लीन चिट मिलने के लंबे अंतराल के बाद आखिर सपा नेतृत्व को राजा भैया को मंत्रिमंडल में वापस लाने को मजबूर होना ही पड़ा।
माना जा रहा है कि पूरब से पश्चिम तक ठाकुरों के सपा के खिलाफ गोलबंद होने के कारण नेतृत्व को ऐसा निर्णय लेना पड़ा।
मुजफ्फरनगर दंगे के सिलसिले में खेड़ा में हुए उपद्रव के बाद सपा नेतृत्व को राजा भैया की जरूरत महसूस होने लगी थी।
कहा जा रहा है कि जल्द ही राजा भैया ठाकुरों का सरकार के प्रति गुस्सा शांत कराने के मकसद से मेरठ (खेड़ा) जा सकते हैं।
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राजा भैया की मंत्रिमंडल में वापसी के साथ प्रतापगढ़ के सपा प्रत्याशी बदले जाने की चर्चाएं भी तेज हो गई हैं। गौरतलब है कि प्रतापगढ़ से सपा प्रत्याशी सीएन सिंह के राजा भैया से छत्तीस के रिश्ते हैं।
कहा तो यह तक जा रहा है कि न पहले और न ही अब मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपने मंत्रिमंडल में राजा भैया को शामिल करने के पक्षधर हैं। पर नेतृत्व के दबाव के कारण मन दबाकर उन्हें ऐसा करना पड़ रहा है।
लोगों को यह भी याद है कि सरकार बनने के कुछ दिनों बाद दिवंगत वरिष्ठ नेता मोहन सिंह ने एक न्यूज चैनल पर कहा था कि राजा भैया को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपनी कैबिनेट में शामिल नहीं करना चाहते थे, पर नेतृत्व के दबाव में ऐसा करना पड़ा।
मोहन सिंह की इस बात का किसी ने खंडन नहीं किया था। दरअसल सरकार बनने के बाद राजा भैया को खाद्य व रसद विभाग के अलावा कारागार विभाग का मंत्री बनाया गया तो यही संदेश गया कि विधानसभा चुनाव में पार्टी के पक्ष में मेहनत करने के कारण उनका कद बढ़ाया गया है।
लेकिन बाद में एक ऐसा दौर आया कि जब महेंद्र अरिदमन सिंह, ओमप्रकाश सिंह, राजकिशोर सिंह समेत ठाकुर बिरादरी के कई मंत्रियों के विभाग बदल कर उनके पर कतर दिए गए।
चपेट में राजा भैया भी आए पसंदीदा कारागार विभाग छीन लिया गया। तब माना गया था कि मुख्यमंत्री ने दबाव में मंत्री जरूर बना दिया पर राजा भैया के प्रति उनका सहिष्णु भाव नहीं है। थोड़े ही दिन बाद कुंडा में सीओ जियाउल हक का मर्डर हो गया।
जियाउल हक की बीवी परवीन ने जो एफआईआर लिखाई उसमें राजा का नाम भी आरोपियों में था। पर आरोप दर्ज होने के पहले राजा भैया ने मुख्यमंत्री से मुलाकात करने के बाद मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।
खासतौर से सपा के मुस्लिम नेताओं व मंत्रियों ने राजा भैया के प्रति गैरों सा रुख अपनाया। अहमद बुखारी जैसे लोग खुलकर आलोचना करते नजर आए।
भाजपा में जाने की चर्चा ने जोर पकड़ा
आखिरकार 1 अगस्त को राजा भैया को कुंडा सीओ मर्डर केस में क्लीन चिट मिल गई। पहले तो लगा कि अब किसी भी दिन राजा भैया की मंत्रिमंडल में फिर वापसी हो जाएगी।
पर कुछ दिन ऐसा नहीं हुआ तो कहा जाने लगा कि मुख्यमंत्री अपनी कैबिनेट में उन्हें लेने को तैयार नहीं हैं। इस बीच उनके भाजपा में उनके जाने की चर्चा कुछ ज्यादा तेज हो गई।
खिचड़ी कुछ भी पक रही हो पर पर राजा भैया ने सार्वजनिक तौर पर न मुलायम-अखिलेश की आलोचना की और न भाजपा के प्रति सहानुभूति दिखाई।
ठाकुरों की नाराजगी दूर करने को नहीं मिला कोई चेहरा
पिछले हफ्ते जश्ने जौहर का निमंत्रण देने के बहाने आजम खां उनके घर पहुंचे तो लगने लगा कि सरकार को उनकी आवश्यकता महसूस हो रही है।
दरअसल मुजफ्फरनगर दंगे के बाद खेड़ा पंचायत में उपद्रव के बाद नाराज ठाकुरों को मनाने के लिए किसी प्रभावी ठाकुर चेहरे की तलाश शुरू हुई तो सपा नेतृत्व को कोई चेहरा नहीं दिखा।
कहा जाता है कि इसी के बाद मुलायम सिंह ने राजा भैया की वापसी का फरमान करीबी लोगों को सुना दिया। मुलायम के निर्देश पर आजम खां को भेज कर राजा भैया से सरकार को सहयोग करने की बात की गई।
राजा का जवाब था कि किस हैसियत से सरकार का प्रतिनिधि बनकर जाऊं। कहा जाता है कि इसी के बाद राजा को मंत्रिमंडल में वापस लाने का मन बना लिया गया था।
संभव है कि मंत्री पद ग्रहण करने के बाद जल्द ही राजा भैया पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ठाकुरों का गुस्सा शांत करने के मकसद से वहां जाएं।
माना जा रहा है कि पूरब से पश्चिम तक ठाकुरों के सपा के खिलाफ गोलबंद होने के कारण नेतृत्व को ऐसा निर्णय लेना पड़ा।
मुजफ्फरनगर दंगे के सिलसिले में खेड़ा में हुए उपद्रव के बाद सपा नेतृत्व को राजा भैया की जरूरत महसूस होने लगी थी।
कहा जा रहा है कि जल्द ही राजा भैया ठाकुरों का सरकार के प्रति गुस्सा शांत कराने के मकसद से मेरठ (खेड़ा) जा सकते हैं।
पढ़ें-फिर वजीर बनेंगे राजा भैया, शपथ ग्रहण आज
राजा भैया की मंत्रिमंडल में वापसी के साथ प्रतापगढ़ के सपा प्रत्याशी बदले जाने की चर्चाएं भी तेज हो गई हैं। गौरतलब है कि प्रतापगढ़ से सपा प्रत्याशी सीएन सिंह के राजा भैया से छत्तीस के रिश्ते हैं।
कहा तो यह तक जा रहा है कि न पहले और न ही अब मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपने मंत्रिमंडल में राजा भैया को शामिल करने के पक्षधर हैं। पर नेतृत्व के दबाव के कारण मन दबाकर उन्हें ऐसा करना पड़ रहा है।
लोगों को यह भी याद है कि सरकार बनने के कुछ दिनों बाद दिवंगत वरिष्ठ नेता मोहन सिंह ने एक न्यूज चैनल पर कहा था कि राजा भैया को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपनी कैबिनेट में शामिल नहीं करना चाहते थे, पर नेतृत्व के दबाव में ऐसा करना पड़ा।
मोहन सिंह की इस बात का किसी ने खंडन नहीं किया था। दरअसल सरकार बनने के बाद राजा भैया को खाद्य व रसद विभाग के अलावा कारागार विभाग का मंत्री बनाया गया तो यही संदेश गया कि विधानसभा चुनाव में पार्टी के पक्ष में मेहनत करने के कारण उनका कद बढ़ाया गया है।
लेकिन बाद में एक ऐसा दौर आया कि जब महेंद्र अरिदमन सिंह, ओमप्रकाश सिंह, राजकिशोर सिंह समेत ठाकुर बिरादरी के कई मंत्रियों के विभाग बदल कर उनके पर कतर दिए गए।
चपेट में राजा भैया भी आए पसंदीदा कारागार विभाग छीन लिया गया। तब माना गया था कि मुख्यमंत्री ने दबाव में मंत्री जरूर बना दिया पर राजा भैया के प्रति उनका सहिष्णु भाव नहीं है। थोड़े ही दिन बाद कुंडा में सीओ जियाउल हक का मर्डर हो गया।
जियाउल हक की बीवी परवीन ने जो एफआईआर लिखाई उसमें राजा का नाम भी आरोपियों में था। पर आरोप दर्ज होने के पहले राजा भैया ने मुख्यमंत्री से मुलाकात करने के बाद मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।
खासतौर से सपा के मुस्लिम नेताओं व मंत्रियों ने राजा भैया के प्रति गैरों सा रुख अपनाया। अहमद बुखारी जैसे लोग खुलकर आलोचना करते नजर आए।
भाजपा में जाने की चर्चा ने जोर पकड़ा
आखिरकार 1 अगस्त को राजा भैया को कुंडा सीओ मर्डर केस में क्लीन चिट मिल गई। पहले तो लगा कि अब किसी भी दिन राजा भैया की मंत्रिमंडल में फिर वापसी हो जाएगी।
पर कुछ दिन ऐसा नहीं हुआ तो कहा जाने लगा कि मुख्यमंत्री अपनी कैबिनेट में उन्हें लेने को तैयार नहीं हैं। इस बीच उनके भाजपा में उनके जाने की चर्चा कुछ ज्यादा तेज हो गई।
खिचड़ी कुछ भी पक रही हो पर पर राजा भैया ने सार्वजनिक तौर पर न मुलायम-अखिलेश की आलोचना की और न भाजपा के प्रति सहानुभूति दिखाई।
ठाकुरों की नाराजगी दूर करने को नहीं मिला कोई चेहरा
पिछले हफ्ते जश्ने जौहर का निमंत्रण देने के बहाने आजम खां उनके घर पहुंचे तो लगने लगा कि सरकार को उनकी आवश्यकता महसूस हो रही है।
दरअसल मुजफ्फरनगर दंगे के बाद खेड़ा पंचायत में उपद्रव के बाद नाराज ठाकुरों को मनाने के लिए किसी प्रभावी ठाकुर चेहरे की तलाश शुरू हुई तो सपा नेतृत्व को कोई चेहरा नहीं दिखा।
कहा जाता है कि इसी के बाद मुलायम सिंह ने राजा भैया की वापसी का फरमान करीबी लोगों को सुना दिया। मुलायम के निर्देश पर आजम खां को भेज कर राजा भैया से सरकार को सहयोग करने की बात की गई।
राजा का जवाब था कि किस हैसियत से सरकार का प्रतिनिधि बनकर जाऊं। कहा जाता है कि इसी के बाद राजा को मंत्रिमंडल में वापस लाने का मन बना लिया गया था।
संभव है कि मंत्री पद ग्रहण करने के बाद जल्द ही राजा भैया पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ठाकुरों का गुस्सा शांत करने के मकसद से वहां जाएं।
इटली में बनी नई सरकार, शपथग्रहण के वक्त चली गोली
रविवार, 28 अप्रैल, 2013 को 18:28 IST तक के समाचार
'अखिलेश के लिए सिरदर्द हैं मुलायम'
नई दिल्ली/इंटरनेट डेस्क | Last updated on: March 31, 2013 12:31 PM IST
जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने मुलायम सिंह यादव को अखिलेश यादव के लिए 'सिरदर्द' बताया है। उन्होंने कहा, 'समाजवार्दी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव अखिलेश यादव की मुश्किलें बढ़ा रहे हैं। वे अपने बेटे के लिए खुद ही सिरदर्द हैं।'
उमर अब्दुल्ला ने ये बातें अंग्रेजी दैनिक इंडियन एक्सप्रेस के साथ बातचीत में कहीं।
उन्होंने कहा, 'मुलायम सिंह यादव ने जितनी आलोचना अपने बेटे अखिलेश यादव की सरकार की, अगर मेरे पिता (फारुख अब्दुल्ला) ने मेरी सरकार की उतनी आलोचना करते तो मैं घबरा जाता।'
उल्लेखनीय है मुलायम सिंह यादव ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की एक साल पुरानी सरकार की कई बार आलोचना कर चुके हैं।
हाल ही में लखनऊ में आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने अखिलेश यादव की सरकार को कमजोर सरकार कहते हुए उन्हें नसीहत दी थी कि वे राज्य का प्रशासन दुरुस्त करें।
भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी की तारीफ करते हुए उन्होंने कहा था, ‘आडवाणी साहब कहते हैं कि यूपी की हालत बहुत खराब है और वहां भ्रष्टाचार आम है...।’
मुलायम ने कहा था कि यदि मुख्यमंत्री प्रदेश की कानून व्यवस्था और प्रशासन को संभालने में नाकाम होता है तो सब उसे कमजोर शासक कहेंगे।
उन्होंने अखिलेश से कहा, ‘ऐसे सरकार नहीं चलती। कड़ाई करो। राज का काज सीधेपन से नहीं होता। कोई अधिकारी अपना नहीं। शासन में रहोगे तो यह चापलूसी करेंगे। नहीं रहोगे तो जानते ही हो क्या होता है।’
मुलायम सिंह यादव इससे पहले भी कई सार्वजनिक कार्यक्रमों और पार्टी कार्यकर्ताओं से बातचीत में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की कार्यशैली व उनकी सरकार की आलोचना कर चुके हैं।
उमर अब्दुल्ला ने ये बातें अंग्रेजी दैनिक इंडियन एक्सप्रेस के साथ बातचीत में कहीं।
उन्होंने कहा, 'मुलायम सिंह यादव ने जितनी आलोचना अपने बेटे अखिलेश यादव की सरकार की, अगर मेरे पिता (फारुख अब्दुल्ला) ने मेरी सरकार की उतनी आलोचना करते तो मैं घबरा जाता।'
उल्लेखनीय है मुलायम सिंह यादव ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की एक साल पुरानी सरकार की कई बार आलोचना कर चुके हैं।
हाल ही में लखनऊ में आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने अखिलेश यादव की सरकार को कमजोर सरकार कहते हुए उन्हें नसीहत दी थी कि वे राज्य का प्रशासन दुरुस्त करें।
भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी की तारीफ करते हुए उन्होंने कहा था, ‘आडवाणी साहब कहते हैं कि यूपी की हालत बहुत खराब है और वहां भ्रष्टाचार आम है...।’
मुलायम ने कहा था कि यदि मुख्यमंत्री प्रदेश की कानून व्यवस्था और प्रशासन को संभालने में नाकाम होता है तो सब उसे कमजोर शासक कहेंगे।
उन्होंने अखिलेश से कहा, ‘ऐसे सरकार नहीं चलती। कड़ाई करो। राज का काज सीधेपन से नहीं होता। कोई अधिकारी अपना नहीं। शासन में रहोगे तो यह चापलूसी करेंगे। नहीं रहोगे तो जानते ही हो क्या होता है।’
मुलायम सिंह यादव इससे पहले भी कई सार्वजनिक कार्यक्रमों और पार्टी कार्यकर्ताओं से बातचीत में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की कार्यशैली व उनकी सरकार की आलोचना कर चुके हैं।
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मुलायम सरकार से समर्थन वापस ले सकते हैं: मनमोहन
शुक्रवार, 29 मार्च, 2013 को 00:16 IST तक के समाचार
सोमवार, 25 मार्च, 2013 को 14:44 IST तक के समाचार
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