मित्रों नमस्कार!
अत्यंत विनम्रता के साथ आपसे आग्रह करना है की मेरी आवाज आपतक नहीं पहुंची या और किन्ही कारणों से हम उस बात पर भरोसा तो किये जिसमें सदियों की साजिश थी, साजिश का सौदागर था या हमारे बीच का लिंक ख़राब था, जो भी हो उसका अब कोई इलाज़ नहीं है.
आने वाले दिनों में कई समझौते होने हैं पर उनका केंद्र आपके हाथ नहीं होगा फिर हम फसेंगे और उसी प्राकांतर के अभिशाप के बसीभूत होंगे जो अब तक के राजनैतिक और सामाजिक बदलावों में हुए हैं. छोटे ही सही अनेकों उदाहरण है जिनसे हम देख सकते हैं की मूल तत्वों पर वही आघात करते हैं जिन्हे डर है की उनका वर्चस्व ही न समाप्त हो जाय कहीं।
मैंने इस अभियान को आरम्भ करते हुए ये उद्देश्य लेकर चला था कि -
आदरणीय
यह अभियान ब्लागर के माध्यम से एक विल्कुल अव्यवसायिक अराजनैतिक मात्र सामाजिक बदलाव के उद्येश्य से किया जा रहा प्रयास है, 2 0 1 4 का जिक्र उस प्रक्रिया की वजह से किया जा रहा है जिसमें सामजिक सरोकार बनते और बिगड़ते हैं।
सामाजिक जुडाव का सुअवसर मिलता है।
बुरे के खिलाफ खड़े होने का अवसर भी।
भारत गनराज्य की एकता अखण्डता का पर्व होता है 'आम चुनाव'.
इसी उद्येश की पूर्ति सजग अवाम से अपेक्षित भी है.
इसी उद्येश्य से संमसामयिक सन्दर्भों का हवाला लेना होगा अन्यथा सबकुछ सकता है,
"भारत वर्ष में दलितों पिछड़ों की राजनितिक विडम्बना ही यही है की ये बदलाव की बात तो करते हैं पर इन्हें पता ही नहीं है कि ये बदलाव होंगे कैसे" जिस अवाम को ये धोखे में रखकर आज उनकी सहानुभूति बटोरकर अपनी जागीर बनाने में लगे हैं, यही तो सवर्ण और पूंजीवादी निति है. अम्बेडकर और लोहिया के नामपर 'रोटियां' सेकने वाले उन्ही के नियमों की धज्जियाँ उड़ा रहे हैं. और संपदा संरक्षण में सबको मात देने में लगे हैं, जबकि सारे हालात इसी तरह के हैं पर इन्हें ही बदनामियाँ झेलनी हैं.
सवर्ण मीडिया कभी सोनिया का किचन और डाइनिंग हाल नहीं दिखाता लेकिन मायावती की सारी जागीर अखबारों के पन्ने पन्ने पर है.
सैफई का उत्सव क्या हो गया जैसे कोई अनरथ हो गया हो (सता में हैं तो कोई साधू संत तो हैं नहीं) कुछ तो करेंगे ही - इन्ही की माधुरी दीक्षीत इन्ही के सलमान खान क्या ! इनको लगा इनकी जागीर लूट ली है, सैफई वालों ने 'असभ्य बनाए रहने की साजिशन वहां के नवजवानों को बंधक क्यों बनाए रखना चाहता है मीडिया।
दिल्ली में सरे आम बुढिया विदेशी औरतों तक के साथ दुराचार करने वाले कौन हैं क्या इन्हें इटली से लाया गया है।" नहीं ये वही लोग हैं जो भ्रष्टाचार मिटाने वाली पार्टी 'आप' के मतदाता हैं.
न जाने कितने कालेजों और विश्वविद्यालयों यहाँ तक की बिदेशों में भी इनके जातिवाद के तार जुड़े हैं जहाँ ये पिछड़ों और दलितों की इंट्री को बाधित करते हैं।
सैफई का उत्सव क्या हो गया जैसे कोई अनरथ हो गया हो (सता में हैं तो कोई साधू संत तो हैं नहीं) कुछ तो करेंगे ही - इन्ही की माधुरी दीक्षीत इन्ही के सलमान खान क्या ! इनको लगा इनकी जागीर लूट ली है, सैफई वालों ने 'असभ्य बनाए रहने की साजिशन वहां के नवजवानों को बंधक क्यों बनाए रखना चाहता है मीडिया।
दिल्ली में सरे आम बुढिया विदेशी औरतों तक के साथ दुराचार करने वाले कौन हैं क्या इन्हें इटली से लाया गया है।" नहीं ये वही लोग हैं जो भ्रष्टाचार मिटाने वाली पार्टी 'आप' के मतदाता हैं.
न जाने कितने कालेजों और विश्वविद्यालयों यहाँ तक की बिदेशों में भी इनके जातिवाद के तार जुड़े हैं जहाँ ये पिछड़ों और दलितों की इंट्री को बाधित करते हैं।
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