(प्रसंगवश अपनी श्रीन्खला के मद्देनज़र)
"भारत वर्ष में दलितों पिछड़ों की राजनितिक विडम्बना ही यही है की ये बदलाव की बात तो करते हैं पर इन्हें पता ही नहीं है कि ये बदलाव होंगे कैसे" जिस अवाम को ये धोखे में रखकर आज उनकी सहानुभूति बटोरकर अपनी जागीर बनाने में लगे हैं, यही तो सवर्ण और पूंजीवादी निति है.
अम्बेडकर और लोहिया के नामपर 'रोटियां' सेकने वाले उन्ही के नियमों की धज्जियाँ उड़ा रहे हैं.
और संपदा संरक्षण में सबको मात देने में लगे हैं, जबकि सारे हालात इसी तरह के हैं पर इन्हें ही बदनामियाँ झेलनी हैं.
सवर्ण मीडिया कभी सोनिया का किचन और डाइनिंग हाल नहीं दिखाता लेकिन मायावती की सारी जागीर अखबारों के पन्ने पन्ने पर है.
सैफई का उत्सव क्या हो गया जैसे कोई अनरथ हो गया हो (सता में हैं तो कोई साधू संत तो हैं नहीं) कुछ तो करेंगे ही - इन्ही की माधुरी दीक्षीत इन्ही के सलमान खान क्या ! इनको लगा इनकी जागीर लूट ली है, सैफई वालों ने 'असभ्य बनाए रहने की साजिशन वहां के नवजवानों को बंधक क्यों बनाए रखना चाहता है मीडिया।
दिल्ली में सरे आम बुढिया विदेशी औरतों तक के साथ दुराचार करने वाले कौन हैं क्या इन्हें इटली से लाया गया है।"
और संपदा संरक्षण में सबको मात देने में लगे हैं, जबकि सारे हालात इसी तरह के हैं पर इन्हें ही बदनामियाँ झेलनी हैं.
सवर्ण मीडिया कभी सोनिया का किचन और डाइनिंग हाल नहीं दिखाता लेकिन मायावती की सारी जागीर अखबारों के पन्ने पन्ने पर है.
सैफई का उत्सव क्या हो गया जैसे कोई अनरथ हो गया हो (सता में हैं तो कोई साधू संत तो हैं नहीं) कुछ तो करेंगे ही - इन्ही की माधुरी दीक्षीत इन्ही के सलमान खान क्या ! इनको लगा इनकी जागीर लूट ली है, सैफई वालों ने 'असभ्य बनाए रहने की साजिशन वहां के नवजवानों को बंधक क्यों बनाए रखना चाहता है मीडिया।
दिल्ली में सरे आम बुढिया विदेशी औरतों तक के साथ दुराचार करने वाले कौन हैं क्या इन्हें इटली से लाया गया है।"
नहीं ये वही लोग हैं जो भ्रष्टाचार मिटाने वाली पार्टी 'आप' के मतदाता हैं.
जरा देखिये ;
जन्मदिन पर मायावती ने फूंका चुनावी बिगुल, बताया मीडिया से दूर रहने का कारण
(दैनिक भास्कर से साभार)
लखनऊ. बसपा अध्यक्ष मायावती ने बुधवार को अपने 58वें जन्मदिन पर लोकसभा चुनाव अभियान की शुरुआत कर दी। उन्होंने कार्यकर्ताओं को मंत्र दिया कि जातिवादी मानसिकता वाली पार्टियों को रोकने के लिए हमें ठोस कार्रवाई करनी होगी। हमें इस लोकसभा चुनाव में एकजुट होकर लड़ना है। सीधी लड़ाई के लिए तैयार रहना है। अधिक से अधिक सीटें जितनी हैं। इसके लिए आपको पूरे देश में सबसे ज्यादा दलित और अन्य पिछड़े वर्ग के लोगों को एक करना है। इसके साथ-साथ मुस्लिम और अल्पसंख्यक समाज के साथ ही अग्रणी जातियों के उन लोगों को जो कांग्रेस और भाजपा से पीडित हैं, उन्हें अपने साथ जोड़ते हुए बीएसपी का जनाधार बढ़ाना होगा। मायावती ने यह भी बताया कि वह मीडिया से रू-ब-रू साक्षात्कार इसलिए नहीं देतीं क्योंकि मीडिया उनकी बातों को तोड़-मरोड़ कर पेश कर देता है।
लखनऊ के रमाबाई अंबेडकर मैदान में 'राष्ट्रीय सावधान विशाल महारैली' को संबोधित करते हुए मायावती ने कहा कि ये कुर्सियों वाली नहीं दरी वाली रैली है। विपक्ष बीएसपी के खिलाफ साजिश रच रहा है। कांग्रेस का भविष्य अंधकार में है। जब बसपा ने पहली लोकसभा और कुछ राज्यों में खाता खोला तो पहली बार कांग्रेस सहित कुछ पार्टियों ने हमें संज्ञान में लिया। इससे कांग्रेस सकते में आ गई। उसे अहसास हो गया कि उसका बेस धीरे-धीरे खिसक कर रहा है। इससे पहले हमें अन्य राजनीतिक दल हल्के में लेते थे। बीजेपी 2004 के लोकसभा चुनाव में 80 में से 60 सीटें चाहती थीं। यदि हमने दे दिया होता तो बीएसपी खत्म हो जाती। मैं बहुत स्वाभिमानी लड़की हूं। मैं किसी के आगे झुक नहीं सकती।
(दलित नेता मायावती को पसंद है 'चरण वंदना', देखें तस्वीरें)
"2011 में विकिलीक्स द्वारा किए गए खुलासे में यह बात सामने आई थी कि मायावती को जब भी नए सैंडल की आवश्यकता होती तो वे अपना खाली निजी जेट मुंबई भेज देती थी।
इसी के साथ ही यह भी खुलासा किया गया था कि उन्होंने अपना खाना चखने के लिए एक कर्मचारी भी रखा हुआ है। इतना ही नही विकिलिक्स ने यह भी खुलासा था कि मायावती ने अपने घर से ऑफिस तक एक निजी रोड बनवा रखा है। उनका काफिला जब भी वहां से गुजरने वाला होता है, तब रोड की सफाई की जाती है।
बसपा के संस्थापक कांशीराम की मौत के बाद पार्टी में मायावती का राज है। चाहे पार्टी का कार्यकर्ता हो या उनके मुख्यमंत्रित्व काल में काम कर रहे अफसर सभी उनके आगे दंडवत करते रहें हैं। (देखिए तस्वीरें) विपक्षी पार्टियां मायावती को तानाशाह का दर्जा देती रही हैं। माया के शासन काल में लोगों को कई जगह देखने को मिला, जब माया के मंत्री जनता के सामने उनके चरणों में शीश नवाते दिखे, तो कई उनके सैंडल पर जमे धूल को अपने रुमाल से पोंछते नजर आए।
शाही अंदाज और अपने विरोधियों पर बेबाक शब्दों का प्रहार मायावती को एक अलग ही स्थान देता है। विशाल काफिला और हमेशा अपने गार्डों से घिरी रहने वाली मायावती तक वही पहुंच सकता है, जिसे वह स्वंय मिलने की अनुमति देती हैं। उनके तेवर ऐसे कि माया के नाम से अधिकारियों के पसीने छूट जाते हैं।"
सुरक्षा
(मायावती ने अपनी सुरक्षा व्यवस्था को हमेशा ही प्राथमिकता दी है, लिहाजा देश के इतिहास में शायद ही कोई ऐसा मुख्यमंत्री रहा हो, जिसकी सुरक्षा इस तरह की जाती हो। बंगले में 20 फीट से ज्यादा ऊंची बाउंड्री पर कांटों के तार लगाए गए हैं। यही नहीं, चौबीसों घंटे निगरानी के लिए वॉच टॉवर भी बनाए गए हैं। मेन एन्ट्रेंस से लेकर कई जगहों पर सीसीटीवी इंस्टॉल किए गए हैं। ये सीसीटीवी सिर्फ आगंतुकों पर नजर रखने के लिए ही नहीं हैं। ये आवास में तैनात कर्मचारियों और पुलिसकर्मियों पर भी नजर रखते हैं। बंगले में कर्मचारियों और सुरक्षाकर्मियों की पूरी फौज तैनात की गई है।)
लाइफ स्टाइल
(ऑटोबायोग्राफी लिखने में उन्होंने इन्हीं नोट्स का इस्तेमाल किया। आवास में ही मायावती का अपना सचिवालय भी चलता है। इसमें संगठन से जुड़े तमाम निर्णयों, शिकायतों का निपटारा आदि किया जाता है और आदेश जारी किए जाते हैं। बहनजी से मिलने का अधिकार सिर्फ उनके पर्सनल स्टाफ को ही है। इसके अलावा, चाहे वह पार्टी का ही कितना ही बड़ा नेता क्यों न हो, बिना अनुमति के मुलाकात नहीं कर सकता। पिछले साल जब प्रणब मुखर्जी राष्ट्रपति चुनाव के सिलसिले में लखनऊ आए तो उनका मायावती के बंगले पर भी आगमन हुआ। यहां की भव्यता देख उन्होंने भी इसकी जमकर तारीफ की। )
आस्था
(मायावती का परिवार अब इसी गांव में 96 बीघे में बने शानदार महल में रहता है। 100 करोड़ से भी ज्यादा कीमत के इस महल में दो भव्य मकान और एक बौद्ध मंदिर बनाया गया है। 96 में से 50 बीघा जमीन महल के बाहर हरित पट्टी के लिए छोड़ी गई है। जिस जमीन पर महल और मंदिर का निर्माण किया गया, वह मायावती के पिता प्रभुदयाल के नाम है। बाकी 50 बीघा जमीन के दस्तावेज उनके कुछ खास लोगों के नाम पर हैं। महल में राजस्थान, महोबा, अरावली और इटली से मंगवाकर मार्बल लगाए गए हैं। खास बात यह है कि महल के चारों तरफ बहुजन समाज पिकनिक स्पॉट बनाने के लिए बादलपुर, सादोपुर, अच्छैजा और विश्नुली गांवों की 670 हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण उत्तर प्रदेश सरकार ने किया था।)
(अचल संपत्ति की बात करें तो मायावती के पास दिल्ली के कनॉट प्लेस में दो व्यावसायिक संपत्ति है, जिसकी कीमत उन्होंने 18 करोड़, 84 लाख रुपए बताई है। यही नहीं, उनके नाम नई दिल्ली के सरदार पटेल मार्ग पर एक बंगला है, जिसकी कीमत 61 करोड़, 86 लाख रुपए है। यही नहीं, उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के 9 माल एवेन्यू के बंगले की कीमत 15 करोड़, 68 लाख रुपए हैं। उनके पास 1 किलो, 34 ग्राम सोना और 380 कैरेट हीरे के जवाहरात हैं। सोने और हीरे के आभूषणों की कीमत 96 लाख, 53 हजार रुपए है।)
बुत
ताज प्रकरण मामले में बीजेपी सीबीआई का इस्तेमाल करके परेशान करती रही। मैंने तय किया था कि भले ही सीबीआई के जरिए मुझे उम्र भर के लिए जेल में डाल दिया जाए, लेकिन मैं अपना आंदोलन नहीं रोकूंगी। मुझे बाद में आखिरकार इंसाफ मिला। कोर्ट ने मामले में क्लिनचिट दे दी।
2007 में बसपा ने यूपी में पूर्ण बहुमत से सरकार बनाई। इसके बाद सभी पार्टियों ने आपस में मिलकर बसपा का विरोध करना शुरू कर दिया। 'यूपी हुई हमारी है और दिल्ली में हमारी बारी है' इस नारे के साथ जब हम आगे पढ़े तो सभी पार्टियों ने बसपा को खतरे की घंटी समझ कर केंद्र में जाने से रोकना शुरू कर दिया। जब एक दलित लड़की ने पूरे बहुमत से यूपी में सरकार बनाई, इसके बाद जातिवादी मानसिकता रखने वाली पार्टियां एक हो गईं। सभी दलों ने सोचा कि मायावती एक दलित जाति से हैं। यदि इस लड़की को हमने आगे बढ़ने से नहीं रोका और यह केंद्र में चली गई तो हमारे लिए मुश्किल हो जाएगी। इसलिए सभी पार्टियां बीएसपी के खिलाफ एक हो गईं।
इसका जीता जागता उदाहरण तब देखने को मिला जब 2009 के लोकसभा चुनाव का रिजल्ट आया। इस समय सारी पार्टियां हमारे खिलाफ एक हो गईं। जहां बीएसपी जीत रही थी वहां उसके खिलाफ मजबूत दूसरे दल के प्रत्याशी के लिए सभी दल एक होकर वोट किए ताकि बीएसपी हार जाए। उस समय हर सीट हमारी सीधी फाइट हुई थी। उस समय हम 80 में से 20 सीट जीते। 47 सीटों पर हम दूसरे नंबर पर रहे।
मायावती ने दलित महापुरुषों को याद करते हुए वहां उपस्थित जनसमूह को नव वर्ष की बधाई दी। अपने जन्मदिन पर बधाई देने वालों को भी धन्यवाद करते हुए मायावती ने कहा कि उनका जन्मदिन उनके कार्यकर्ता बड़े पैमाने पर मनाते रहे। हर साल आज के दिन मेरे द्वारा लिखी गई पुस्तक का विमोचन किया जाता है। इसी क्रम में मैंने एक पुस्तक 'मेरा जीवन, मेरा संघर्ष' हिन्दी और अंग्रेजी भाषा में लिखी है। जो आने वाले पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्रोत रहेगी।
यूपी बना क्राइम प्रदेश
मायावती ने कहा कि यूपी अब क्राइम प्रदेश बन गया है। मुजफ्फरनगर दंगों के दौरान यूपी सरकार पूरी तरह फेल रही है। दंगे में शामिल लोगों को सम्मानित किया गया। कांग्रेस का दंगे पर बेतुका बयान देती रही। यहां राष्ट्रपति शासन लगना चाहिए। सपा द्वारा मुस्लिम समाज के अधिकारियों डीजीपी और मुख्य सचिव बनाकर भी इस समाज का शोषण किया जा रहा है। इसका ताजा उदाहरण मुजफ्फरनगर दंगा है। जबकि हमारी सरकार ने इन बड़े पदों पर हिन्दू अधिकारियों को रखकर भी मुस्लिम समाज पर कोई आंच नहीं आने दिया था। सपा सरकार ने दलित और मुस्लिम के बीच भी दंगा कराने की कोशिश की है। लेकिन मैं यूपी के दलित समाज की सराहना करती हूं कि वे ऐसे समय में भी धैर्य रखा। यहां सिर्फ वफादार यादव जाति के लोगों को ही फायदा दिया जाता है।
हाईटेक रैली
बीएसपी की सावधान रैली इस बार हाईटेक है। इसमें 7 कैमरे, इक्वीपमेंट से लैस वैन, स्विचर, मिक्सचर, दो मॉनिटर सिस्टम आदि सब कुछ मौजूद है। प्रदेश में समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी की हाइटेक रैलियों का असर माया की इस रैली में भी दिख रहा है।
'आप' इफेक्ट
इस रैली में 'आप' का असर भी दिख रहा है। आम आदमी पार्टी की ही तरह इस बसपा की इस रैली में भी लोगों को टोपियां पहनाई जा रही हैं, यह टोपी बसपा के रंग यानि नीले रंग की है। रैली में लगे एक स्टॉल से यह टोपी लोगों को दी जा रही है।
रैली की वजह से लगा लंबा जाम
रैली के चलते लखनऊ-वाराणसी राष्ट्रीय राजमार्ग पर रात 3 बजे से ही लंबा जाम लग गया। लखनऊ-कानपुर राष्ट्रीय राजमार्ग का भी यही हाल है। रास्ते में वाहनों की लम्बी कतारें देखी जा सकती हैं। लखनऊ से गोरखपुर, रायबरेली और सीतापुर जाने वाले राष्ट्रीय मार्गों पर भी कमोबेश यही स्थिति बनी हुई है। जाम में फंसे बसपा समर्थकों ने पुलिस और प्रशासन द्वारा रैली को विफल बनाए जाने के लिए इसे 'सरकारी' जाम बताया है।
58 की हुई मायावती, जानिए उनके जीवन की 58 खास बातें
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लखनऊ. मायावती अपने जन्मदिन के मौके पर लखनऊ में विशाल सावधान रैली से मैदान में उतर चुकी हैं। हालांकि वह पिछले कई जन्मदिन पर अलग-अलग कारणों से चर्चा में रही हैं, लेकिन इस बार वह मुजफ्फरनगर दंगा पीड़ितों को देखते हुए अपना 58वां जन्मदिन बड़ी ही सादगी से मना रही हैं।
इसके लिए उन्होंने खासतौर पर अपने कार्यकर्ताओं को भी चेता दिया है कि उनका जन्मदिन बेहद साधारण तरीके से मनाया जाए। मायावती के 58 वें जन्मदिन पर भास्कर.कॉम आपको उनके जीवन से जुड़ी 58 ख़ास बाते बता रहा है...
1- यूं तो मायावती को उनके समर्थक बहन जी के नाम से जानते हैं वहीं आम जनता के बीच वह मायावती के नाम से मशहूर हैं, लेकिन बहुत ही कम लोग जानते होंगे कि उनका पूरा नाम मायावती नैना कुमारी है। 15 जनवरी 1956 को दिल्ली के सरकारी अस्पताल श्रीमती सुचेता कृपलानी में उनका जन्म हुआ था।
2- मायावती के पिता दिल्ली में सरकारी करमचारी थे। वह दूरसंचार विभाग में क्लर्क के पद पर तैनात थे। बहुत कम लोग जानते हैं कि जिस तरह से मायावती को आइरन लेडी का नाम दिया गया उसी तरह उनकी माता रामरती भी आइरन लेडी से कम नहीं थी। वह अनपढ़ जरूर थी, लेकिन समझदारी में किसी से कम नहीं थी। दिल्ली जैसे शहर में वह अपने दम पर भैंसों के बलबूते एक दूध की डेयरी चलाती थी, जो परिवार को आर्थिक मदद देती थी।
3- चार बार प्रदेश की मुख्यमंत्री रहने के बावजूद, वह अपने परिवार के साथ नहीं रहती हैं। आज भी उनका परिवार दिल्ली में अलग रहता है जबकि बसपा सुप्रीमो के पास लखनऊ और दिल्ली में अपने बंगले हैं। यही नहीं माया कभी कभार अपनी छोटी बहन मुन्नी गौतम के घर पर जाकर रूकती हैं। जब कांशीराम जिंदा थे तब वह भी कभी-कभी उनके साथ वहां जाते थे और उनके खाने का इंतजाम भी दोनों बहने मिलकर करती थी।
4- मायावती अपने परिवार के साथ एक जगह पर नहीं रहती, उनका परिवार के साथ मिलना जुलना भी काफी कम होता है। साल में बस एक बार खुद के जन्मदिन पर वह परिवार वालों के साथ रहती हैं। अपने जन्मदिन को वह परिवार वालों के साथ मनाना पसंद करती हैं। जानकारो का मानना है कि वह किसी भी विवाद से बचने के लिए यह एहतियात बरतती हैं।
5- हर चेतना संपन्न दलित की तरह मायावती में भी दलित आंदोलन की पहली समझ बाबा साहब अंबेडकर की जीवनी और उनकी किताबें पढ़कर आई। इन किताबों से मायावती का पहला परिचय उनके पिता ने कराया। मायावती अपनी आत्मकथा में लिखा है कि, 'तब मैं आठवीं में पढ़ती थी। एक दिन पिताजी से पूछा कि अगर मैं भी डॉ. अंबेडकर जैसे काम करूं तो क्या वे मेरी भी पुण्यतिथि बाबा साहब की तरह ही मनाएंगे?'
6- जानकार बताते हैं कि दिल्ली में उनके पिता डॉ अंबेडकर जयंती यानि 14 अप्रैल के दिन पूरे परिवार को संसद प्रांगड़ में लगी बाबा अंबेडकर की मूर्ति पर पुष्प चढ़ाने के लिए ले जाते थे। जहां बुद्धिजीवियों और नेताओं की बाते सुनकर और बाबा अंबेडकर द्वारा लिखी गई किताबें पढ़कर उन्हें अंबेडकर के संघर्षों और देश में दलितों की स्थिति का ज्ञान हुआ। यही नहीं जब वह अपने परिवार के साथ रिश्तेदारी में जाती थी तो वह देखती थी कि दलितों कि एक अलग ही बस्ती बनी होती थी जहां सवर्ण लोग आना भी नहीं पसंद करते थे।
आगे स्लाइड में जाने मायावती से जुड़ी बाकि 52 खास बातें...
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