अवाम शायद राजनितिकों से निराश हो चुकी है !
जब कभी राजनीती में जाना सम्मानजनक था और 'जन सेवा' का भाव था तब शायद किसी की ये लालसा नहीं होती थी की उसका बेटा,बेटी,भाई,बहन या पत्नी .......! राजनीती में आये बल्कि उनके स्थान पर अच्छे कार्यकर्ता को मौक़ा मिलता था. पर अब अपनी निक्कमी पीढ़ी के लिए "चारागाह" बनाने में सर्वाधिक राजनितिक मशगुल हैं !
क्या हम नए "साम्राज्यवाद" की तरफ मुखातिब हो रहे हैं ?
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आइये लोकतंत्र को बचाने की पहल करें ! अवाम शायद हमारा इंतज़ार कर रही है !
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जब कभी राजनीती में जाना सम्मानजनक था और 'जन सेवा' का भाव था तब शायद किसी की ये लालसा नहीं होती थी की उसका बेटा,बेटी,भाई,बहन या पत्नी .......! राजनीती में आये बल्कि उनके स्थान पर अच्छे कार्यकर्ता को मौक़ा मिलता था. पर अब अपनी निक्कमी पीढ़ी के लिए "चारागाह" बनाने में सर्वाधिक राजनितिक मशगुल हैं !
क्या हम नए "साम्राज्यवाद" की तरफ मुखातिब हो रहे हैं ?
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आइये लोकतंत्र को बचाने की पहल करें ! अवाम शायद हमारा इंतज़ार कर रही है !
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