CBI को आशंका थी कि शाह अपनी राजनीतिक ताकत और प्रभाव का इस्तेमाल करके जांच को प्रभावित कर सकते थे। इसीलिए, सुप्रीम कोर्ट ने निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करने के लिए अक्टूबर 2010 में उन्हें गुजरात से बाहर रहने का आदेश दिया। यह प्रतिबंध सितंबर 2012 तक लागू रहा। हालांकि, 2014 में सीबीआई की एक विशेष अदालत ने सबूतों के अभाव में उन्हें सभी आरोपों से बरी कर दिया।
इस तरह, सोहराबुद्दीन शेख एनकाउंटर केस के चलते अमित शाह को गुजरात से प्रदेश बदर (तड़ीपार) किया गया था।
सोहराबुद्दीन शेख एनकाउंटर केस के सिलसिले में अमित शाह, जो उस समय गुजरात के गृह मंत्री थे, को काफी विवादों का सामना करना पड़ा था। यह मामला 2005 में सोहराबुद्दीन शेख की कथित फर्जी मुठभेड़ से जुड़ा था, जिसमें गुजरात पुलिस पर गंभीर आरोप लगे थे। इस केस की जांच सीबीआई ने की थी, और 2010 में अमित शाह पर हत्या, अपहरण और साजिश जैसे आरोप लगाए गए थे।
सीबीआई की चार्जशीट के बाद, सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर अमित शाह को गुजरात से बाहर रहने का आदेश दिया गया था, जिसे आम भाषा में "प्रदेश बदर" या "तड़ीपार" कहा जाता है। उन्हें 2010 में गुजरात छोड़कर दिल्ली में रहना पड़ा था, और यह प्रतिबंध करीब दो साल तक लागू रहा। बाद में, 2014 में इस केस में उन्हें अदालत से राहत मिली, जब विशेष सीबीआई कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया।
यह मामला भारतीय राजनीति में लंबे समय तक चर्चा का विषय रहा और इसे लेकर कई तरह के दावे-प्रतिदावे सामने आए।
हां, अमित शाह पर हत्या, अपहरण और साजिश जैसे आरोप लगाए गए थे, खास तौर पर सोहराबुद्दीन शेख फर्जी एनकाउंटर केस के संदर्भ में। यह मामला 2005 का है, जब सोहराबुद्दीन शेख और उनकी पत्नी कौसर बी की कथित तौर पर गुजरात पुलिस द्वारा फर्जी मुठभेड़ में हत्या कर दी गई थी। बाद में 2006 में सोहराबुद्दीन के सहयोगी तुलसीराम प्रजापति की भी एनकाउंटर में मौत हुई थी। इन मामलों की जांच सीबीआई को सौंपी गई थी, और 2010 में सीबीआई ने अमित शाह, जो उस समय गुजरात के गृह मंत्री थे, पर हत्या, अपहरण, जबरन वसूली और साजिश जैसे गंभीर आरोप लगाए थे। सीबीआई ने दावा किया था कि शाह इस एनकाउंटर के पीछे की साजिश में शामिल थे। इसके चलते उन्हें गिरफ्तार किया गया और कुछ समय जेल में भी रहना पड़ा, साथ ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर उन्हें गुजरात से बाहर रहने का निर्देश दिया गया था।
हालांकि, 2014 में मुंबई की एक विशेष सीबीआई कोर्ट ने सबूतों के अभाव में अमित शाह को इस मामले में बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि उनके खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं मिले और यह मामला "राजनीति से प्रेरित" लगता है। सीबीआई ने इसके बाद इस फैसले के खिलाफ अपील भी नहीं की। इसके अलावा, इशरत जहां एनकाउंटर केस (2004) में भी शाह का नाम आया था, लेकिन 2014 में सीबीआई की विशेष अदालत ने उनके खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य न होने के कारण उन्हें आरोपी बनाने से इनकार कर दिया।
क्या जांच फिर शुरू हो सकती है?
कानूनी तौर पर, किसी मामले की जांच दोबारा शुरू करना संभव है, लेकिन इसके लिए कुछ शर्तें पूरी करनी होती हैं:
1. **नए सबूत**: अगर कोई नया और ठोस सबूत सामने आता है, जो पहले कोर्ट में पेश नहीं किया गया था, तो जांच फिर से शुरू करने की मांग की जा सकती है।
2. **उच्च न्यायालय का हस्तक्षेप**: सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के पास यह अधिकार है कि वह किसी मामले को दोबारा खोलने का आदेश दे, अगर उन्हें लगे कि न्याय नहीं हुआ या जांच में खामियां थीं।
3. **सीबीआई की पहल**: सीबीआई या कोई अन्य जांच एजेंसी, सरकार के निर्देश पर, नए आधार पर जांच शुरू कर सकती है, बशर्ते पर्याप्त कारण और सबूत हों।
फिलहाल, अप्रैल 2025 तक, इन मामलों में अमित शाह के खिलाफ कोई नई जांच शुरू होने की खबर नहीं है। 2014 में बरी होने के बाद ये मामले कानूनी रूप से बंद माने जाते हैं, और सीबीआई या अन्य पक्षों ने इसे दोबारा खोलने की कोई औपचारिक पहल नहीं की है। हालांकि, अगर भविष्य में कोई नया सबूत या राजनीतिक दबाव आता है, तो सैद्धांतिक रूप से जांच फिर शुरू हो सकती है, लेकिन यह काफी हद तक परिस्थितियों और कानूनी प्रक्रिया पर निर्भर करेगा।
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